Wednesday, April 25th, 2018

now browsing by day

 
Posted by: | Posted on: April 25, 2018

भगवान का नाम जपने वाला कभी मुसीबत में नहीं पड़ता: श्री करुण दास जी महाराज

फरीदाबाद( विनोद वैष्णव ) | राधा कृष्ण परिवार के संस्थापक श्री करुण दास जी महाराज ने कहा कि जो भगवान का नाम हमेशा जपता है। उस पर किसी तरह की मुसीबत नहीं आती है । हर क्षण हर पल भगवान का नाम जपते रहना चाहिए भगवान का नाम है। इससे संसारिक और भौतिक जीवन को पार लगाता है। वे सेक्टर 17 स्थित मंदिर में मंदिर में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे ।उन्होंने अपने भजनों के माध्यम से भगवान की महिमा का गुणगान किया। उन्होंने बताया कि अपराधों से बचते हुए निष्काम भाव से निरंतर भगवान की सेवा में जुटा रहना चाहिए। इससे ही सांसारिक मोह माया से दूर रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य का स्वभाव सर्वधर्म स्वभाव है। इस से विमुख नहीं होना चाहिए तीनों लोकों में एक ही धर्म है ।और वह धर्म हमें एक दूसरे से प्यार इंसानियत इंसानियत से जोड़ता है ।संतों ने भी यही शिक्षा दी है। सभी को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए ईर्ष्या द्वेष से परे होना चाहिए। एक आस्तिक मनुष्य बनना चाहिए जिसका ईश्वर पर संपूर्ण विश्वास हो ईश्वर अपने भक्तों का हर हाल में रक्षा करता है। सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है ।इसलिए हर क्षण उन्हें याद करते रहे उन्होंने एक से बढ़कर एक भजन के माध्यम से जीवन में शांति भक्ति के लिए उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रेरित किया। इस अवसर पर वकील एस सी गोयल आदि उपस्थित थे

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

नैतिक शिक्षा के कमी के कारण

अगर किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्यों की आलोचना की जाए तो उसका सारा विकास अधूरा होता है। अनैतिक कार्यों के मामलों की संख्या में हाल ही में वृद्धि और वृद्ध लोगों की बढ़ती हुई संख्या समाज में उनकी मानसिकता और गलत दिशा की ओर बढ़ावे की तरफ इशारा करती है। अधिकांश लोगों में अपने से बड़ों और महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं रह गया है, लोगों की झूट बोलने की आदत बन गई है और हर जगह भ्रष्टाचार और ईर्ष्या (जलन) व्याप्त है यह सभी वांछित नैतिक मूल्यों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। लेकिन नैतिक मूल्य हैं क्या? क्या आपको यह लगता है कि जिस प्रकार के कपड़े हम पहनते हैं और जिस प्रकार से अपना जीवन व्यतीत करते हैं, नैतिक मूल्य इससे संबंधित हैं? मुझे ऐसा नहीं लगता है। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरा यह मानना है कि अगर आप किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं है, यदि आप अपने बुजुर्गों और महिलाओं का सम्मान करते हैं, यदि आप हर किसी से सच बोलते हैं और यदि आप एक नेक (सच्चे और अच्छे) नागरिक हैं तो आप एक नैतिक व्यक्ति हैं। हर विश्वास और विचार पर नैतिक होने के लिए व्यक्ति को मजबूत और दृढ़ होना चाहिए। हम लोगों में सही कार्य करने और सही कार्य के लिए लड़ने का साहस होना चाहिए।

किसी भी व्यक्ति को जीवन के प्रारंभ से ही नैतिक मूल्यों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इसलिए नैतिक मूल्यों को पढ़ाया जाना चाहिए और इसे हमारी शिक्षा प्रणाली का एक अनिवार्य अंग होना चाहिए। शिक्षकों को भविष्य की जिम्मेदारियों के लिए प्रत्येक बच्चे को प्रशिक्षित करना चाहिए। स्कूलों में शिक्षा के अलावा आपसी भाईचारे और प्रेम की भावना उत्पन्न करने के लिए गतिविधियों का आयोजन किया जाना चाहिए। स्कूलों को बच्चों के माध्यम से सामाजिक कार्यों में भाग लेना चाहिए।

अपने बच्चों के लिए नैतिक मूल्यों को पढ़ाने में स्कूलों के अलावा माता-पिता को भी इसमें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। हमारे चारों ओर का समाज काफी अनैतिक (बेईमान) है इसलिए संस्थानों से की जाने वाली बहुत सारी उम्मीदें इस समस्या का समाधान नहीं करेंगी। छात्रों को ईमानदारी, कड़ी मेहनत, दूसरों का सम्मान, सहयोग और माफी (क्षमा) के महत्व को सिखाया जाना चाहिए। उन्हें अनुशासित जीवन का उदाहरण प्रदर्शित और व्यवस्थित करना चाहिए। शिक्षा के द्वारा एक बच्चे के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाना चाहिए क्योंकि नैतिक मूल्य न केवल एक व्यक्ति के बल्कि पूरी मानवता के विकास में मदद करते हैं। यह व्यक्तियों को भविष्य में निभाई जाने वाली भूमिका के लिए तैयार करता है। यहाँ तक कि अगर सही से जाँच पड़ताल की जाए तो भ्रष्टाचार ही नैतिक मूल्य की कमी का एक मूल कारण है। जब हमारा अपना स्वार्थ सामाजिक अच्छाइयों को पार कर जाता है तब इस प्रकार के काम होते हैं। हमें तुरंत इसका पता लगाना होगा क्योंकि नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण पूरे समाज का पतन हो सकता है।

स्कूल प्रबंधन द्वारा शिक्षा प्रणाली को एक व्यवसाय नहीं बनाया जाना चाहिए। समाज की मानसिकता को बदलने के लिए शिक्षकों को कठोर मेहनत करनी चाहिए क्योंकि ये भविष्य का निर्माण करते हैं। इस प्रकार स्कूल शिक्षा प्रणाली में नैतिक और सामाजिक मूल्यों को शामिल किया जाना चाहिए।

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

MREI के प्रधान प्रशांत भल्ला और मंत्री विपुल गोयल ने किया उद्घाटन

 फरीदाबाद( विनोद वैष्णव )पलवल के सिविल अस्पताल में फरीदाबाद नवचेतना ट्रस्ट की ओर से महाराजा अग्रसेन स्नेहभोज कैंटीन की शुरुआत की गई है। इस कैंटीन में आम लोगों को 5 रुपये ओर 10 रुपये में पेट भर खाना मिलेगा। इस दौरान हरियाणा के उद्योग मंत्री विपुल गोयल और फरीदाबाद नवचेतना ट्रस्ट और मानव रचना शैक्षणिक संस्थान के चेयरमैन डॉ. प्रशांत भल्ला और वाईस प्रेजिडेंट डॉ. अमित भल्ला मौजूद रहे। विपुल गोयल और डॉ. प्रशांत भल्ला ने कैंटीन का उद्घाटन किया। आरएसएस के प्रांत संचालक पवन जिंदल ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।इस दौरान विपुल गोयल ने नवचेतना ट्रस्ट के इस कार्य की सराहना की ओर बताया कि इस कैंटीन में सिर्फ दोपहर भोज ही नहीं बल्कि यहाँ रात का खाना भी मिलेगा। यहां उन्होंने लोगों को मानव रचना शैक्षणिक संस्थान की ओर से मोरारी बापू जी द्वारा 26 मई से 3 जून तक करवाई जा रही श्री राम कथा का भी न्यौता दिया। उन्होंने कहा कि लोग ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में यहां पहुंचें और राम कथा का आनंद लें।डॉ प्रशांत भल्ला ने उम्मीद जताई कि इस तरह के कार्य होते रहें ताकि कोई भी भूखे पेट न सोए। उन्होंने इस दौरान मानव रचना के फाउंडर विज़नरी डॉ ओपी भल्ला को याद किया और बताया कि वो हमेशा चाहते थे कि फरीदाबाद में संतों का आना जाना लगा रहे,, इसलिए उन्होंने सैनिक कॉलोनी में शिव मंदिर की स्थापना की और अब संस्थान की ओर से 26 मई से 3 जून तक श्री राम कथा का आयोजन किया जा रहा है इसमें सभी बढ़चढ़कर हिस्सा लें।आपको बता दें, इस कार्यक्रम में पर्फेक्ट ब्रेड्स एचके बतरा के चेयरमैन, केसी लखानी ग्रुप के चेयरमैन और फरीदाबाद नवचेतना ट्रस्ट के एडवाइजर डीसी चौधरी भी मौजूद रहे।

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

सेक्स एजुकेशन क्यों ज़रूरी हैं बच्चो के लियें?

सेक्स हमारे देश में एक ऐसा विषय है जिसके बारे खुल कर बात करना तो दूर सोचना भी गन्दा काम माना जाता हैं जबकि हर कोई यह भूल जाता हैं कि इसी गंदे काम के कारण लोग इस दुनिया में आये हैं.

पहले के वक़्त में तो यह किसी पिशाच से कम नहीं था लेकिन अभी के समय में लोगो की सोच इस विषय को लेकर बदल रही हैं. अब सेक्स सिर्फ एक वासना पूर्ति के साधन के रूप में न लेकर एक शिक्षा के रूप में लोगो तक पहुचाया जा रहा हैं.

भारत में स्कूली शिक्षा के साथ ही सेक्स शिक्षा को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए कदम उठाएं गए, लेकिन आज भी देश के लोगों को सेक्स शिक्षा को अपनाना रास नहीं आया. इसलिए लोगों ने यौन शिक्षा का अच्छा खासा विरोध जताया.

बदलते भारत के साथ ही कई क्षेत्रों में भी परिवर्तन हुए है, इन्हीं परिवर्तनों के चलते कुछ परिवर्तन सही दिशा में हुए तो कुछ गलत दिशा में.इन्हीं परिवर्तनों के चलते सरकार ने हाल ही के दिनों में शिक्षा में भी अमूल-चूल परिर्वतन करने की कोशिश की.

इन परिवर्तनों के तहत सरकार स्कू्ली बच्चों की शिक्षा में छठीं क्लास से सेक्स शिक्षा को भी शामिल करना चाहती है, लेकिन भारत में सेक्स शिक्षा को लेकर खूब बवाल मचाया गया.

लोगों का मानना है कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन होने से भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

क्या आप जानते हैं आज के समय में सेक्स एजुकेशन का बहुत महत्व है.

यदि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन शुरू कर दी जाए तो इसका किशोरों को पथभ्रष्ट‍ होने से रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है बच्चों को सही रूप में पूर्ण सेक्स शिक्षा दी जाए. स्कूलों में यौन शिक्षा के माध्यम से न सिर्फ भविष्य में यौन संक्रमित बीमारियों से बचा जा सकता है बल्कि असुरक्षित यौन संबंधों से भी बचा जा सकता है.

बच्चों को सही उम्र में सेक्स एजुकेशन देने से उनके शारीरिक विकास के साथ ही मानसिक विकास भी पूरी तरह से होता है.

आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान में 27 से 30 फीसदी होने वाले एबॉर्शन किशोरी लड़कियां करवाती हैं, यदि उन्हें सही रूप में यौन शिक्षा दी जाएगी तो वे गर्भपात के जंजाल से आसानी से बच सकती हैं यानी बिन ब्याहें मां बनने से बच सकती हैं.

बढ़ती उम्र में बच्चे नई-नई चीजों को जानने के इच्छुक रहते हैं और आज के टैक्नोलॉजी वर्ल्ड़ में कुछ भी जानना नामुमकिन नहीं. यदि बच्चों को सही समय पर सही रूप में यौन शिक्षा नहीं दी जाएगी तो अपने प्रश्नों का हल ढूंढ़ने के लिए वे इधर-उधर के रास्ते अख्तियार करेंगे जो कि बच्चों के मानसिक विकास में बाधा डाल सकते हैं. भारत में सेक्स शिक्षा लागू होने के साथ-साथ अभिभावकों को भी इस ओर जागरूक होना होगा और अपने बच्चों को सही उम्र में यौन शिक्षा से सरोकार कराना होगा, तभी सेक्स शिक्षा का सकारात्मक प्रभाव दिखाई पड़ेंगे.

आज आप अपने परिवार या आसपास के लोगों को देखेंगे तो आप पाएंगे कि वे मैच्योर होने के बावजूद सेक्स के बारे में बात करने से कतराते हैं. इसका एकमात्र कारण यही है कि आज भी लोग सेक्स जैसे मुद्दे पर बात करने से कतराते हैं और उन्हें सेक्स के बारे में पूर्ण जानकारी भी नहीं है, ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अब तक भारत में सेक्स शिक्षा को स्कूलों में लागू करने के बारे में सोचा भी नहीं गया था.

इन सारी बातों से यह तो ज्ञात हैं कि सेक्स एजुकेशन हमारे लिए और हमारे समाज के लिए कितना ज़रूरी हैं लेकिन उससे कही अधिक वह हमारे बच्चों के लिए भी ज़रूरी हैं.

 

For More Info :- http://www.jkhealthworld.com/hindi/यौन-शिक्षा

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

कैसे बढ़े शिक्षा की गुणवत्‍ता : एक शिक्षक का दृष्टिकोण

शिक्षक समाज की सर्वाधिक संवदेनशील इकाई है। शिक्षक अपना काम ठीक तरह से नहीं करते- यह आरोप तो सर्वत्र लगाया जाता है। लेकिन यह विचार कोई नहीं करता कि उसे पढ़ाने क्यों नहीं दिया जाता ? आए दिन गैर-शैक्षिक कार्यों में इस्तेमाल करता प्रशासन, शिक्षकों की शैक्षिक सोच को, शैक्षिक कार्यक्रमों को पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। बच्चों को पढ़ाना-सिखाना सरल नहीं होता और न ही बच्चे फाईल होते हैं। प्रशासनिक कार्यालय और अधिकारीगण शिक्षा और शिक्षकों की लगातार उपेक्षा करते हैं। उन्हें काम भी नहीं करने देते। इसी कारण स्कूली शिक्षा में अपेक्षित सुधार सम्भव नहीं हो पा रहा है।

सुधार के लिए क्या करें
स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हमें स्कूलों के बारे में अपनी परम्परागत राय को बदलना होगा। अभी स्कूलों को कार्यालय समझकर, शिक्षकों को प्रतिदिन अनेक प्रकार की डाक बनाने और आँकड़े देने के लिए मजबूर किया जाता है। इससे बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान होता रहता है। बच्चे अपने शिक्षकों से सतत् जुड़े रहना चाहते हैं, विशेषकर प्राथमिक स्तर पर। अत: स्कूलों को कार्यालयीन कामकाज से वास्तव में मुक्त कर प्रभावी शिक्षण संस्थान बनाया जाना चाहिए।

विद्यालय बनाम सामुदायिक शिक्षण केन्द्र
हमारे शासकीय विद्यालय बाल शिक्षण (6-14 आयु वर्ग के बच्चों) के लिए कार्य कर रहे हैं। शिशु शिक्षण के लिए संचालित आँगनवाड़ी और प्रौढ़ शिक्षा के लिए कार्यरत सतत् शिक्षा केन्द्रों का सम्बंध विद्यालय से कहने भर को है। वास्तव में इन सभी के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है। यदि इन तीनों एजेंसियों को एकीकृत कर दिया जाए तो 3 से 50 वर्ष तक के लिए शिक्षण की बेहतर व्यवस्था सम्भव है|

यह भी जरूरी है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक और सतत शिक्षा केन्द्रों के प्रेरक को एक साथ मिल-बैठकर कार्य करने के लिए तैयार किया जाए। यदि तीनों एजेन्सी एकीकृत स्वरूप में कार्य करने लगे तो सम्भव है स्कूल की कार्यावधि 12 से 14 घण्टे प्रतिदिन तक हो जाए। साथ ही समुदाय के सभी वर्गों के लिए स्कूल में प्रवेश और सीखने के अवसर बढ़ सकते हैं।

अभी अधिकांश स्कूल अन्य सरकारी कार्यालयों की तर्ज पर  10 से 5 की अवधि में ही खुलते हैं। इस कारण से रोजगार में जुटे परिवारों के बच्चों के लिए वे अनुपयोगी सिध्द हो रहे हैं। स्कूल की समयावधि सरकारी नियंत्रण में होने के कारण बच्चों की उपस्थिति और सीखने का समय कमतर होता जा रहा है। स्कूली उम्र पार कर चुके किशोरों, युवाओं, महिलाओं और कामकाजी लोगों के लिए स्कूल के दरवाजे एक तरह से बन्द ही हैं। विद्यालय समाज की लघुतम इकाई के रूप में ”सामाजिक शिक्षण केन्द्र” के रूप में कार्य कर सकते हैं। इस परिकल्पना को साकार करने की दिशा में पहल किए जाने का दायित्व स्थानीय ”पालक शिक्षक संघ” पूरा कर सकते हैं। अगर समाज की जरूरत के चलते चिकित्सालय और थाने दिन-रात खुले रह सकते हैं, तो यह भी उतना ही आवश्यक है कि विद्यालय कम-से-कम 12-16 घण्टे जरूर खुलें।

 

शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक हो

शैक्षणिक सुधार में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। पाठयपुस्तकों और पाठयक्रम के अनुरूप प्रभावी शिक्षण, शिक्षकों की योग्यता, सक्रियता और पढ़ाने के कौशल पर निर्भर है। एक शिक्षक, एक साथ कितनी कक्षाओं के कितने बच्चों को भली-भाँति पढ़ा सकेगा, इस बारे में गम्भीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है।

आदर्श रूप में एक शिक्षक अधिकतम 20 बच्चों को ही ठीक प्रकार पढ़ा सकता है। वह भी तब, जब वे भी एक समान स्तर के हों। अभी व्यवस्था यह है कि एक शिक्षक 40 बच्चों को (और वे भी अलग-अलग स्तरों के हैं) पढ़ाएगा। अनेक स्कूलों में तो 70-80 से भी अधिक बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है। ऐसे में शिक्षक मात्र बच्चों को घेरकर ही रख पाते हैं पढ़ाई तो सम्भव ही नहीं। शिक्षक बच्चों को पढ़ा भी पाएँ, इस हेतु शिक्षक-छात्र अनुपात को व्यवहारिक बनाना होगा।

 

प्रशिक्षणशिक्षण और परीक्षण

स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षण विधियों, प्रशिक्षण और परीक्षण की विधियों में भी सुधार करने की जरूरत है। अभी शिक्षण की विधियाँ राज्य स्तर से तय की जाती हैं। कक्षागत शिक्षण कौशलों को या तो नकार दिया जाता है या उन्हें परिस्थितिजन्य मान लिया जाता है।

अच्छे प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण का दायित्व कर्तव्यनिष्ठ, योग्य और क्षमतावान प्रशिक्षकों को सौंपा जाना चाहिए। शिक्षकों के प्रशिक्षण को प्रभावी बनाने, शिक्षण में नवाचारी पध्दतियाँ विकसित करने सहित परीक्षण (मूल्यांकन) की व्यापक प्रविधियाँ तय कर उन्हें व्यवहारिक स्वरूप में लागू करने की दिशा में कारगर कदम उठाने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि हर प्रदेश में एक ”शैक्षिक संदर्भ एवं स्त्रोत केन्द्र” विकसित किया जाए।

 

शिक्षास्वास्थ्य और रोजगार मूलक परियोजनाएँ

शिक्षा के क्षेत्र में अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं। रोजगार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी शासकीय स्तर पर परियोजनाएँ और कार्यक्रम लागू किए गए हैं। मानव विकास के बुनियादी सूचकांक होते हुए भी इनमें तालमेल न होने के कारण इनकी गति अपेक्षित नहीं है। धन की गरीबी से ज्ञान की गरीबी का विशेष सम्बंध है। ग्रामीण दूरस्थ अँचलों में ज्ञान की गरीबी पसरी हुई है। जानकारी के अभाव में वे संसाधनों का उपयोग नहीं कर पाते। अनेक परियोजनाओं के बावजूद उनकी प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक चिकित्सा और बुनियादी रोजगार की प्रक्रियाएँ बाधित होती हैं। अब समय आ गया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए लागू परियोजनाओं को समेकित ढ़ंग से किसी सुनिश्चित क्षेत्र में लागू कर परिणामों की समीक्षा की जाए। अच्छे परिणाम आने पर उन्हें पूरे देश भर में लागू किया जाए। इस प्रकार हम अपने संसाधनों और मानवीय क्षमताओं का बेहतर उपयोग कर सकेंगे जिससे शिक्षा के गुणात्मक विकास की संभावनाएँ बढ़ेंगीं।

 

पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें

अभी वास्तव में यह ठीक प्रकार तय ही नहीं है कि किस आयु वर्ग के बच्चों को कितना सिखाया जा सकता है और सिखाने के लिए न्यूनतम कितने साधनों और सुविधाओं की आवश्यकता होगी। नई शिक्षा नीति 1986 लागू होने के बाद न्यूनतम अधिगम स्तरों को आधार मानकर पाठ्यपुस्तकें और पाठ्यक्रम तो लगातार बदले गए हैं, लेकिन उनके अनुरूप सुविधाओं और साधनों की पूर्ति ठीक से नहीं की गई है। यह सोच भी बेहद खतरनाक है कि पाठ्यपुस्तकों के जरिए हम भाषायी एवं गणितीय कौशलों और पर्यावरणीय ज्ञान को ठीक प्रकार विकसित कर सकते हैं। यथार्थ में पाठ्यपुस्तकें पढ़ाई का एक छोटा साधन मात्र होती हैं साध्य नहीं। कक्षाओं पर केन्द्रित पाठयपुस्तकों और पाठ्यक्रम को श्रेणीबध्द रूप में निर्धारित करना भी खतरनाक है। बच्चों की सीखने की क्षमता पर उनके पारिवारिक और सामाजिक वातावरण का भी विशेष प्रभाव पड़ता है, अत: सभी क्षेत्रों में एक समान पाठ्यक्रम और एक जैसी पाठ्यपुस्तकें लागू करना बच्चों के साथ नाइन्साफी है।

 

शैक्षिक उद्देश्य

स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए  हमें वर्तमान शैक्षिक उद्देश्यों को भी पुनरीक्षित करना होगा। शिक्षा, महज परीक्षा पास करने या नौकरी/रोजगार पाने का साधन नहीं है। शिक्षा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास, अन्तर्निहित क्षमताओं के विकास करने और स्वथ्य जीवन निर्माण के लिए भी जरूरी है। शिक्षा प्रत्येक बच्चे को श्रेष्ठ इंसान बनने की ओर प्रवृत्त करे, तभी वह सार्थक सिध्द हो सकती है। कहा भी गया है ”सा विद्या या विमुक्तये”। अभी पढ़े-लिखे और गैर पढ़े-लिखे व्यक्ति के आचरण और चरित्र में कोई खास अन्तर दिखाई नहीं देता। उल्टे पढ़-लिख लेने के बाद तो व्यक्ति श्रम से जी चुराने लगता है और अनेक प्रकार के दुराचरणों में लिप्त हो जाता है। यह स्थिति एक तरह से हमारी वर्तमान शैक्षिक पध्दति की असफलता सिध्द करती है। अतः यह जरूरी है कि शिक्षा के उद्देश्यों को सामयिक रूप से परिभाषित कर पुनरीक्षित किया जाए।

 

शिक्षकों को शिक्षक” के रूप में अवसर मिले

समान कार्य के लिए समान कार्य परिस्थितियाँ और समान वेतन की अनुशंसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में और मानव अधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 21, 22, और 23 में वर्णित होते हुए भी नाना नामधारी शिक्षक मौजूद हैं। एक ही विद्यालय में अनेक प्रकार के शिक्षकों के पदस्थ रहते सभी के मन में घोषित-अघोषित तनावों के कारण पढ़ाई में व्यवधान हो रहा है। इस परिस्थिति को गम्भीरता से समझे बगैर और परिस्थितियों में सुधार किए बगैर भला शिक्षण में सुधार कैसे होगा? शासन को सभी शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत शिक्षकों के लिए एक समान कार्यनीति, समान पदनाम, समान वेतनमान देने की नीति तय कर एक निश्चित कार्यावधि के बाद पदोन्नति देने का भी ऐलान करना चाहिए।

 

श्रेष्ठतम शैक्षिक कार्यकर्ता

शैक्षिक परिवर्तन के लिए शिक्षकों का मनोबल बनाए रखने और उत्साहपूर्वक कार्य करने की इच्छाशक्ति पैदा करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। अभी शिक्षा व्यवस्था में बालकों और पालकों की भागीदारी न्यूनतम है, इसलिए सभी शैक्षिक कार्यक्रम सफल नहीं हो पाते हैं। स्कूलों में भी जिस प्रकार समर्पित स्वयंसेवकों की आवश्यकता है, वे नहीं हैं। अत: यह आवश्यक है कि श्रेष्ठतम शैक्षिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जानी चाहिए।

 

शिक्षकों का मनोबल बढ़ाया जाए

समूची दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों में प्राथमिक शालाओं के शिक्षकों को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही ऐसी शिक्षा नीति बनाई जाती है जिसमें उनका मनोबल सदैव ऊँचा बना रहे। जब तक अनुभव जन्य ज्ञान, और कौशलों को महत्व नहीं दिया जाएगा तब तक ”बालकेन्द्रित शिक्षण” की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। बाल केन्द्रित शिक्षण के लिए कार्यरत शिक्षकों की दक्षता और मनोबल बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

यह आवश्यक है कि शिक्षकों को उनके व्यक्तित्व विकास की प्रक्रियाओं सहित ऐसे प्रशिक्षण संस्थानों में भेजा जाए जहाँ उन्हें अपने अन्दर झाँकने ,कुछ बेहतर कर गुजरने की प्रेरणा मिल सके। इस प्रशिक्षण उपरान्त उन्हें कार्यरत स्थलों पर ”ऑन द जॉब सपोर्ट” के रूप में ऐसे सहयोगी दिए जाएँ जो उनकी वास्तविक मदद करें। किसी ऐसी संस्था को इस दिशा में काम करने की जरूरत है जो सामाजिक बदलाव के लिए व्यापक दूरदृष्टि और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करने के लिए सहमत हो और उसके पास स्वयं के संसाधन भी उपलब्ध हों।

आज जरूरत इस बात की है कि किसी प्रकार पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया में परिवर्तन लाने के लिए विद्यालय प्रशासन, शिक्षकों और शैक्षिक कार्यक्रमों में तालमेल बनाया जाए। समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं को पहचान कर उनकी जरूरतों के अनुरूप निर्णय लेते हुए ऐसा वातावरण बनाने की आवश्यकता है जिसमें व्यवसायिक योग्यता में वृध्दि सुनिश्चित हो। शिक्षा के प्रशासन एवं प्रबन्धन में उत्तरदायी भूमिका निभाने वाले संस्था प्रधानों की नियुक्ति और प्रशिक्षण हेतु शिक्षा विभाग एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे अन्य संगठनों को शीघ्र कारगर कदम उठाना चाहिए। संस्था प्रधानों की भूमिका को सशक्त बनाए बगैर शिक्षा में सुधार की सम्भावनाएँ अत्यन्त क्षीण रहेंगी।

 

प्रशासनिक एवं प्रबन्धकीय व्यवस्थागत सुधार

शिक्षा प्रशासन की यह नियति बन गई है कि इसमें उच्च शिक्षा स्तर पर भी स्थायित्व नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर लागू राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और कार्ययोजना 1992 में स्वीकृत अखिल भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना आज तक नहीं हो पाई है। लगभग हर स्तर पर निर्णायक पदों पर नियुक्त प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शिक्षा क्षेत्र में आ रही गिरावट और असफलता के लिए उत्तरदायी नहीं माने जाते। हाँ, किसी छोटी-सी सफलता का श्रेय अवश्य हासिल करते नजर आते हैं। शिक्षा में सुधार के लिए कार्यरत शिक्षकों को समर्थन देने की दृष्टि से यह अत्यंत आवश्यक है कि शिक्षा के प्रबन्धन और प्रशासन को सुधारा जाए। म.प्र. शासन द्वारा वर्ष 2003 में गठित ”स्पेशल टास्क फोर्स” की अनुशंसाओं को लागू किए जाने की भी आज महती आवश्यकता है जो एक दस्तावेज में सिमट कर रह गई हैं। म.प्र. देशभर में सर्वप्रथम जन शिक्षा अधिनियम तैयार कर लागू करने वाले प्रदेश के रूप में है। क्रियान्वयन के स्तर पर जरूर अनेक कार्य अभी शेष हैं जिसमें प्रमुख कार्य सभी स्तरों पर कार्यरत शिक्षा केन्द्रों के संचालन हेतु मैनुअल (संचालन मार्गदर्शिकाओं) का सृजन और उन्हें लागू करना है, ताकि कार्यरत स्टाफ बेहतर प्रदर्शन कर सके। प्रदेश के सभी जनशिक्षा केन्द्रों को प्रबन्धन और प्रशासन के प्रति उत्तरदायी भूमिका सौंपते हुए जनशिक्षा केन्द्र प्रभारी को आहरण वितरण अधिकार दिए जाने चाहिए। यह अत्यंत आवश्यक है कि समग्रत: शिक्षा व्यवस्था को नियंत्रित किए जाने हेतु राज्य की शिक्षा नीति तैयार की जानी चाहिए। कार्यरत शिक्षकों की दक्षता का सम्मान और उनकी कार्यदक्षता का उपयोग किए जाने की दृष्टि से विभागीय दक्षता परीक्षा का आयोजन कर सभी को प्रन्नोत किया जाना चाहिए। अंतत: शैक्षिक सुधार के लिए अब हमें विचार करने की बजाय कर्तव्य की ओर बढ़ना होगा।

आज शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक सुधार की दृष्टि से शीघ्र सार्थक कदम उठाते हुए हमें ऐसी शिक्षण पध्दति और कार्यक्रम विकसित करने होंगे जो बच्चों के मन में श्रम के प्रति निष्ठा पैदा करें। समग्रत: एक ऐसा प्रभावी शैक्षिक कार्यक्रम बनाना होगा जिसमें –

  1. पाठ्यक्रम लचीला और गतिविधि आधारित हो, साथ ही बच्चों की ग्रहण क्षमता के अनुरूप भी।
  2. कक्षागत पाठ्य योजनाएँ, स्वयं शिक्षकों द्वारा तैयार की जाएँ और उन्हें पूरा किया जाए।
  3. राज्य की शिक्षा नीति निर्धारण में शिक्षाविदों और कार्यरत शिक्षकों को वास्तव में सहभागी बना कर सभी के विचारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए।
  4. जन भागीदारी समितियाँ (पालक शिक्षक संघ) प्रबन्धन का दायित्व स्वीकारें – शैक्षिक प्रशासन तंत्र भी शालाओं में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें। शिक्षण का अधिकार शिक्षकों को वास्तव में सौंपा जाए।
  5. शिक्षण विधियों में परिवर्तन करने का अधिकार शिक्षकों को हो, प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं।
  6. कक्षाओं में शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक किया जाए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में शैक्षिक सामग्री की पूर्ति और शिक्षकों की भर्ती की जाए।
  7. पाठ्यपुस्तकों की रचना स्थापित रचनाकारों की बजाय शिक्षकों और शिक्षा विशेषज्ञों के माध्यम से की जानी चाहिए, जो शैक्षिक दृष्टि से उपयुक्त हो।
  8. शैक्षिक सुधारों को लागू करने में संस्था प्रधानों और शिक्षकों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाए।
  9. शिक्षकों के सहयोग हेतु ”राज्य शिक्षक सन्दर्भ और स्त्रोत केन्द्र” स्थापित किए जाएँ।
  10.  विद्यालयों को सामुदायिक शिक्षण के लिए उत्तरदायी बनाया जाए।

By दामोदर जैन | जुलाई 27, 2012

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

भाकियू के साथ किसानों की लड़ाई में कूंदे अन्ना हजारे

 

फरीदाबाद ( विनोद वैष्णव )। केन्द्र और हरियाणा प्रदेश की भाजपा सरकार ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया। वर्ष 2014 में चुनावों से पहले बीजेपी के नेताओं ने पूरे देश के किसानों से जो वायदे किए थे, उनमें से एक भी पूरा नहीं किया। यह किसानों के साथ वायदा खिलाफी है। यदि अब ाी सरकार नहीं जागी, और किसानों की मांगे नहीं मानी, तो पूरे देश का किसान मिलकर ााजपा के खिलाफ सडकों पर उतरेगा।भारतीय किसान यूनियन (अ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. ऋषिपाल अ बावता ने उक्त शब्द यहां सैक्टर-19 में आयोजित हुई हरियाणा प्रदेशस्तरीय किसान सभा को संबोधित करते हुए कहे। उन्होने कहा समाजसेवी अन्ना हजारे ने भाकियू के साथ मिलकर किसानों की लडाई को मजबूत करने का ऐलान किया है। अब भाकियू पूरे देश में जहां ाी किसानों का आंदोलन होगा अन्ना हजारे उनके साथ होंगे। उन्होने कहा जल्द प्रदेश के 21 जिलों का किसान प्रतिनिधि मंडल मु यमंत्री मनोहर लाल से 31 मई को चण्डीगढ़ जाकर मिलेगा, और किसानों की जायज मांगों को रखेगा, और यदि सरकार ने यूनियन के नेताओं से मुलाकात करने में आनाकानी की तो 10 से 12 मई तक हरिद्वार में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में यूनियन भाजपा के खिलाफ आर-पार की लडाई का ऐलान कर देगी।अ बावता ने कहा भाकियू किसान हितों में कई बार अपनी इन मांगों को रख चुकी है जिसे पूरे देश के सैकडों किसान संगठनों ने माना हैं। इन मांगों में प्रमुख रूप से पूरे देश के किसान का कर्जा माफ हो। स्वामी नाथन आयोग का गठन हो। देश के किसान को 5 हजार रूपए पेशन मिले। किसान के बच्चों को निशुल्क शिक्षा मिले। खराब हुई फसल का मुआवजा 40 हजार प्रति ऐकड मिले। किसानों को बिजली, टयूबवैल कनैक्शन निशुल्क मिले। अबावता ने कहा प्रधानमंत्री देश को गर्त में ले जाने का काम कर रहे हंै। उन्होने कभी इस देश की जनता और किसानों से प्यार नहीं किया, इसीलिए वह गरीब, मजदूर और कमेरे वर्ग के लिए कुछ नहीं कर रहे। वह युवाओं को पकोडे बेचने की सलाह देते हैं जो युवाओ के लिए निराशा की बात है। प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ मदारी बनकर जनता को मूर्ख बनाकर ठगने का काम किया है। उन्होने कहा मोदी किसान विरोधी हैं, इसलिए उन्होने केवल चंद उद्योगपतियों को देश की पूरी संपत्ति का मालिक बना दिया है। उन्होने कहा देश में किसानों की हालत पहले से ज्यादा खराब है, आत्म हत्याएं रूकी नहीं हैं और किसानों की फसल का मुआवजा नहीं मिल रहा है।प्रदेशस्तरीय किसान बैठक में हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष शमशेर सिंह दहिया ने कहा प्रदेश की भाजपा सरकार हर मामले में फेल है। किसान पहले से ज्यादा दुखी है। इस अवसर पर ााकियू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बलविन्द्र सिंह बाजवा, पंजाब के अध्यक्ष सतनाम ङ्क्षसह बेहरू, दिल्ली अध्यक्ष सुरेश छिल्लर, महिला प्रदेश अध्यक्ष शालिनी मेहता, फरीदाबाद जिला अध्यक्ष ठाकुर राजकुमार छांयसा, पूर्व चेयरमैन सुनील भाटी, राजकुमार तौमर, मानसिंह डागर राष्ट्रीय प्रवक्ता, ललित त्यागी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सरदार सिंह भाटी, डॉ. वीरेन्द्र भाटी, दशरथ सिंह, प्रदेश सचिव नफेसिंह, स्वामी कटारिया, पलवल अध्यक्ष ऋषिपाल चौहान, पानीपत से आनंद सिंह, करनाल से दलजीत सिंह मट्टू, गुरूग्राम से पुष्पा धनखड़, कुरूक्षेत्र से बलबिन्द्र ङ्क्षसह, अ बाला से कुलबंत सिंह, कैथल से सुखदेव सिंह, झझर से प्रताप सिंह, रोहतक से अतरसिंह, रिवाडी से भजनलाल युवा नेता प्रवीण चौधरी सहित 21 जिलों के किसानों ने एक सुर में सरकार के खिलाफ कुरूक्षेत्र में विशाल महापंचायत करने का ऐलान किया।

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

‘संजू’ की कहानी सबसे रोमांचक : राजकुमार हिरानी

( विनोद वैष्णव )| ऐसा कहा जाता है कि बुरा विकल्प, अच्छी कहानियाँ बनाने में मददगार होता है। और यह एक ऐसा ही क्लासिक मामला है | बॉलीवुड के जानेमाने निर्देशक राजकुमारी हिरानी इस बार संजय दत्त की बायोपिक के साथ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए तैयार है। यह इस साल की बहुप्रतीक्षित फ़िल्म है और देश की जनता पलके बिछा कर फ़िल्म का बेसब्री से इंतेज़ार कर रही है।संजय दत्त पर आधारित इस बायोपिक में रणबीर कपूर संजू बाबा की भूमिका में नज़र आएंगे। रणबीर ने अपनी इस भूमिका के लिए कड़ी मेहनत की है और संजय दत्त के जीवन के हर पहलू को पूरी शिद्दत से निभाने की कोशिश की है।फ़िल्म में रणबीर कपूर के हेयरस्टाइल से लेकर, उनका हावभाव और चलने का स्टाइल, सब कुछ रणबीर ने हूबहू संजय दत्त के रंग में ढालने की कोशिश की है जिसे देखकर एक पल के आपकी आंखें भी धोखा खा जाएंगी। फ़िल्म संजू के बारे में बात करते हुए राजकुमार हिरानी ने कहा, “25 दिनों से अधिक के लिए अभिजात जोशी और मैं एक लंबे समय के लिए बैठे और संजू ने जो कुछ भी कहा, उसे रिकॉर्ड किया। हम नहीं जानते थे कि कोई फिल्म थी या नहीं, क्योंकि ज्यादातर उन्होंने वास्तविक बातें सुनाई थीं। मुझे नहीं पता था कि उन्हें एक साथ कैसे जोड़ना है। लेकिन हमने जो महसूस किया वह यह था कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने हर तरीके से पागलपन भरा जीवन व्यतीत किया है| “राजकुमार हिरानी विशेष रूप से अपनी मनोरंजक लेकिन पेचीदा कहानी के लिए जाने जाते है। वही इस फ़िल्म में यह देखना दिलचस्प होगा कि फिल्म निर्माता किस तरह से संजय दत्त के विवादास्पद जीवन  को बड़े पर्दे पर प्रस्तुत करते है।रणबीर कपूर, मनीषा कोइराला, परेश रावल, अनुष्का शर्मा, दीया मिर्जा, विक्की कौशल और सोनम कपूर जैसे कलाकारों से लैस यह फ़िल्म यकीनन साल की बहुप्रतीक्षित फ़िल्मो में से एक है।
फॉक्स स्टार द्वारा प्रस्तुत, यह फिल्म राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित है। वही विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी द्वारा निर्मित यह फ़िल्म 29 जून 2018 को रिलीज होगी।
Posted by: | Posted on: April 25, 2018

हरियाणा के उद्योग एवं पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल ने आज स्थानीय नागरिक अस्पताल में  खसरा व रूबेला टीकाकरण अभियान का शुभारंभ किया

पलवल ( विनोद वैष्णव )। हरियाणा के उद्योग एवं पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल ने आज स्थानीय नागरिक अस्पताल में खसरा व रूबेला टीकाकरण अभियान का शुभारंभ किया और बच्चों को खसरा व रूबेला और पोलियो की दवा पिलाई। उन्होंने कहा कि अभिभावक अपने 9 महीने से 15 वर्ष तक की आयु के बच्चों को रूबेला व खसरा के टीके अवश्य लगवाएं, जिससे उन्हें बीमारियों से बचाया जा सके। इस टीकाकरण से किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है, बल्कि हमारे बच्चे जीवन भर निरोगी व स्वस्थ रहेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने 9 महीने से 15 वर्ष तक की आयु के बच्चों को खसरा व रूबेला जैसी बीमारियों के संक्रमण से बचाने के लिए यह अभियान चलाया है। स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ आम जनमानस भी इस अभियान की पूर्ण सफलता सुनिश्चित करने की उद्देश्य से अपना सहयोग दे। अभिभावक जागरूक होकर अपने बच्चों को टीके लगवाएं तथा अपने मन में किसी भी प्रकार की भ्रांति न रखे। यह टीके पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। यह टीके जीवनभर बच्चे को रूबेला व खसरा के संक्रमण से बचाए रखेंगे। उन्होंने कहा कि इस अभियान को पूर्ण रूप से सफल बनाना जरूरी है तभी इसका अधिक से अधिक लोगों को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि यह अभियान पहले दो सप्ताह सभी स्कूलों व मदरसों में चलाया जाएगा और इसके बाद अगले दो सप्ताह सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को टीके लगाए जाएंगे। इस अवसर पर उपायुक्त मनीराम शर्मा, सिविल सर्जन डा. बीर सिंह सहरावत, हरियाणा भाजपा कोषाध्यक्ष नरेंद्र गुप्ता, हरियाणा श्रम बोर्ड के उपाध्यक्ष हरी प्रकाश गौतम, भाजपा जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह सौरोत, भाजपा नेता राजेश नागर, पूर्व विधायक रामरत्न, महाराज महंत कांता दास सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

म वी एन विश्वविद्यालय के तत्वाधान में इंटरनेट ऑफ थिंग्स् विषय पर कार्यशाला का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया

( विनोद वैष्णव )| इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग द्वारा एम वी एन विश्वविद्यालय के तत्वाधान में इंटरनेट ऑफ थिंग्स् (IoT) विषय पर कार्यशाला का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया।इस अवसर पर कार्यशाला के मुख्य अतिथि गण सचिन भयाना जी (नेटवर्क ऑपरेशन टेक्नॉलॉजी मैनेजर, S.P.P. Sub System, Gurugram) और  जी.डी. शर्मा (पी.सी.बी इंजीनियर, ए.ई.आर.एफ. नोएडा) थे।कार्यशाला के संयोजक  आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि 250 छात्र व छात्राओं ने इसमें भाग लिया और उन्होंने इंटरनेट औफ थिंग्स के बारे में सीखा। उन्होंने बताया कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स् (IoT) भविष्य की एक ऐसी तकनीक है जो वस्तुओं की काम करने की दक्षता व कम ऊर्जा से अधिक काम कैसे किया जा सकता है और करवाया जा सकता है। इससे उन वस्तुओं में कृत्रिम बुद्धि का निर्माण करके और कंप्यूटर नेटवर्किंग को मिलाकर, समाज को सुरक्षित और आरामदायक बनाया जा सकता है।इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री सचिन भयाना जी ने बताया कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां हम सब इस तकनीक से पिछले वर्षों का कृषि डाटा एकत्रित करके और मौसम विभाग से आने वाले समय में मौसम की जानकारी को एकत्रित करके बता सकते हैं कि किसान कब और कैसे फसलों की पैदावार को बढ़ाया सकता है।पुनः इस अवसर पर जी डी शर्मा  ने बताया कि हम इस तकनीक से समाज व व्यक्ति के जीवन में किसी भी क्षेत्र को संयमित और संतुलित कर सकते हैं, जैसे परिवहन किसी भी समाज की मुख्य व्यवस्था होती है और ज्यादातर हमारे यहां परिवहन में संतुलन नहीं है। IoT के प्रयोग से परिवहन के क्षेत्र में समय और लागत को एक चौथाई तक कम किया जा सकता है, जिससे परिवहन और ज्यादा तेज और सुरक्षित हो सकता है।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो. (डॉ.) जे.बी. देसाई जी ने विभाग की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस प्रकार के रोजगारपरक विषयों पर कार्यशाला करके बच्चों में नए और आधुनिक विचारों का जन्म होता है और यही बच्चे विश्व गुरु भारत की संकल्पना में अपना योगदान देते हैं।इस अवसर पर कुलसचिव  डॉ. राजीव रतन जी ने कहा IoT के माध्यम से हम दैनिक जीवन की छोटी से छोटी बातों को कम से कम समय में अधिक दक्षता से कर सकते हैं।कार्यशाला के अंत में ई.सी.ई विभाग की प्रवक्ता प्रियंका कौशिक  ने कार्यशाला में उपस्थित और सम्मिलित सभी अतिथियों,संकायाध्यक्षौं, विभागाध्यक्षों,अध्यापक गणों, छात्र छात्राओं व समस्त कर्मचारी गणों का धन्यवाद किया जिनके सहयोग से यह कार्यशाला की जा सफलतापूर्वक सम्पन्न की जा सकी