Saturday, June 8th, 2019

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Posted by: | Posted on: June 8, 2019

सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा आयोजित मानवता-फेस्ट-२०१९9

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) | सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा अपने ही विशाल परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में मानवता-फेस्ट २०१९9, का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न भागों से आए युवाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। फेस्ट के आयोजको के अनुसार यह फेस्ट भौतिकता के प्रसार के कारण, नैतिक रूप से पथभ्रष्ट हो रहे बाल-युवाओं को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर, सद्मार्ग पर लाने का एक अभूतपूर्व प्रयास है। सबकी जानकारी हेतु इस फेस्ट में खेल-कूद, मौज-मस्ती, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जूमबा, पावर योगा, रेन डांस, कुकिंग, टेलन्ट हंट इत्यादि का भी समुचित प्रबन्ध किया गया है।

फेस्ट के आरंभ में ट्रस्ट के मार्गदर्शक सजन जी ने कहा कि यह जीवन परमात्मा की अद्भुत देन है और इसका वास्तविक आधार स्थूल शरीर नहीं अपितु वह आत्मा है। अत: इस तथ्य के दृष्टिगत अपने अन्दर विद्यमान जीवन शक्ति यानि आत्मा को पहचानो और उसका बोध करने हेतु, अपने जीवन का अध्ययन करने वाले विज्ञानी बनो। आशय यह है कि शारीरिक भाव स्वभाव अपनाने के स्थान पर आत्मिक भाव-स्वभाव अपनाओ और अपनी मानवीय विशिष्टताओं के अनुरूप निर्विकारी, जीवन जीना आरमभ कर दो। जानो यह अपने आप में वह जीवनदायक बात है जिसका पालन करने पर आपका, उस जीवनदाता के साथ अटूट संयोग बना रह सकता है और आप च्च्ईश्वर है अपना अठसज्ज्, इस विचार पर सुदृढ़ता से खड़े हो अपना यथार्थता अनुरूप समुचित विकास कर श्रेष्ठ मानव बन सकते हो।तत्पश्चात् उन्होंने युवाओं को समझाया कि कुछ भी बुरा देख या पढ़-सुन, बुराई को ग्रहण कदापि न करो यानि अपने जीवन को आप संकट में न ड़ालो अपितु वेद-शास्त्रों में विदित ब्राहृ श4द विचारों के ग्रहण द्वारा, अपने जीवन की रक्षा आप करते हुए अपना जीवन चरित्र पावन, उज्ज्वल व परम पवित्र बनाओ। इस तरह अपने आप को उस चैतन्य का सूक्ष्म अंश मानते हुए, काल्पिनक जगत के साथ जुडऩे की भूल न करो तथा इसके स्थान पर जीवन दाता को ही परम प्रिय मानते हुए सदा उस जीवन आधार परमात्मा के ही संरक्षण में समर्पित भाव से बने रहो। निश्चित रूप से सजनों ऐसा करने पर आपके अन्दर स्वत: ही जीवन समबन्धी विचार पनपेंगे और आत्मनिर्भरता का भाव जाग्रत होगा। यही नहीं तभी आप परोपकार के निमित्त सेवा भाव से जीवन जीते हुए अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की जीवन यात्रा को सुखकारी बना सकोगे।उन्होंने कहा कि हकीकत में यही अपने प्राणाधार यानि जीवन के स्वामी के मार्गदर्शन में सही ढंग से जीवन जीने की विधि है जिसका पालन करने पर इंसान परम पुरुषार्थ द्वारा जीवन के सार तत्त्व को जान यानि जीवन दशा में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर, जन्म-मरण के बंधन से छूट परमानन्द को पा जाता है।