Thursday, October 8th, 2020

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Posted by: | Posted on: October 8, 2020

सिविल सर्जन डॉ ब्रह्मदीप की अध्यक्षता में बुधवार को नागरिक अस्पताल पलवल क्वालिटी के सुधार के लिए मीटिंग का आयोजन किया गया

पलवल(योगेश शर्मा /बबलू )| सिविल सर्जन डॉ ब्रह्मदीप की अध्यक्षता में बुधवार को नागरिक अस्पताल पलवल क्वालिटी के सुधार के लिए मीटिंग का आयोजन किया गया। बैठक में मुख्य रूप से एसएमओ डॉ अजय माम, डिप्टी सिविल सर्जन डॉक्टर राजीव बातिश,डॉक्टर मनोज शर्मा सहित मीटिंग में सभी कार्यरत ओथोपेडिक सर्जन, जनरल सर्जन, आई सर्जन, जनरल फिजिशियन आदि डॉ सहित अस्पताल के अन्य डाक्टर भी मौजूद रहे।
बैठक में सिविल सर्जन द्वारा ई-उपचार को अच्छी तरह से उपयोग करने के लिए जोर दिया। उन्होंने सभी डॉक्टर को एक्स-रे और लैब द्वारा की जाने वाली जांचों की रिक्वेस्ट ई-उपचार पोर्टल के माध्यम से करने को कहा। सिविल सर्जन द्वारा डिजिटाइजेशन को प्रमोट करने पर जोर दिया गया । सभी डाक्टरों को कड़े निर्देश दिए गए हैं कि अपना कार्य अधूरा ना छोड़े और अपना पूरा कार्य उसी दिन कंप्यूटर में फीड करवाकर जाए।
सिविल सर्जन डा ब्रह्मदीप द्वारा वहाँ उपस्थित चिकित्सको को आँख डोनेट करने के लिए प्रोत्साहित किया गया व अपने पास आने वाले सभी मरीजों को प्रोत्साहित करने के लिए कहा। उन्होने इस मीटिंग में ये भी बताया कि अब से आँखों के डॉ हर पीएचसी और सीएचसी पर भी वीक में एक दिन उपलब्ध रहेगे। बैठक में उन्होंने सभी की समस्या को हल करने के लिए आश्वासन दिया और सभी को मिलकर पूरी निष्ठा व इमानदारी से काम करने के निर्देश दिए।

Posted by: | Posted on: October 8, 2020

जिला परिषद् पलवल वार्ड न 3 से भावी उम्मीदवार सुनील देवी उर्फ़ सुनील डागर जोकि वरिष्ठ समाजसेवी दीपक घर्रोट की धर्मपत्नी है उनसे पॉजिटिव न्यूज़ के संपादक विनोद वैष्णव की खास बातचीत

जीवन परिचय :- सुनील देवी उर्फ़ सुनील डागर पत्नी दीपक घर्रोट (हथीन विधानसभा क्षेत्र )की स्थायी निवासी हे | राजनीतिक विरासत कुछ नहीं है हमारे पास एवं योग्यता (M.A.,B.Ed) एवं के साधारण किसान परिवार की महिला है |इनके ससुर स्वर्गीय सोहनलाल मोरगेज बैंक के डायरेक्टर भी रह चुके है

पृश्न :-समाज सेवा एवं राजनीती में क्या अंतर् है |
उत्तर :-बड़े बूढ़ो और विद्वानों,धर्म का साथ देने वाले लोगो ने कहा है कि समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करना ही समाज सेवा कहलाता है | शांति प्राप्त करने का केवल एक ही मार्ग है निस्वार्थ ,निष्काम सेवा करना | राजनीति का अर्थ है (राज करने की नीति ) राज के द्वारा लोगो की सेवा करना |

पृश्न :-सुनील देवी आप पलवल जिला पार्षद पद वार्ड न 3 का चुनाव क्यों लड़ना चाहती है |
उत्तर :- मै यह निवेदन करना चाहती हूँ कि सेवा तो बिना चुनाव लड़े भी हो सकती है लेकिन मै यह बताना चाहती हूँ यदि अधिकार के साथ, जिम्मेवारी के साथ ,उत्तर दायीतत्व मिलता है तो सेवा करने का आनंद बढ़ जाता है | लेकिन कुछ कार्य ऐसे होते जो की किसी पद पर बैठ कर ही किये जा सकते है जैसे की विकास कार्यो के लिए सरकारी ग्रांट आदि |

पृश्न :-पलवल जिला परिषद् वार्ड न 3 में क्या प्रमुख समस्याओ को दूर करने का कार्य करेंगे |
उत्तर :- शिक्षा , चिकित्सा एवं कानून व्यवस्था , पानी निकासी , स्वच्छ पानी पीने की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में करना , स्वच्छता एवं युवाओ के लिए खेल
के लिए आधुनिक ओपन जिम आदि करवाना |

पृश्न :-अगर आपको जनता वोट देकर पार्षद बना देती है तो वार्ड न 3 सबसे पहले क्या कार्य करेंगे |
उत्तर :- सर्व प्रथम कार्य होगा सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण क्योंकि महिलाए ही इस सृष्टि ,परिवार , समाज , शिक्षा ,संस्कार की नीव होती है | यदि उनके बारे में हम राजनीतिक नीतिया बनाने के बारे में नहीं सोचेंगे तो कौन पहल करेगा | मै नहीं हम महिलाओ की सुरक्षा के लिहाज से वार्ड के सभी गावों के मुख्य चौक ,चौराहो पर कैमरे लगवाने का कार्य करेंगे ताकि हमारी बहन – बेटिया सुरक्षित रह सके |

पृश्न :- वार्ड न 3 वोटर्स ,महिलाओ , युवाओ आदि को कोई सन्देश या अपील करना चाहेंगे |
उत्तर :- वार्ड न 3 की जनता से अपील है घर में रहे सुरक्षित रहे क्योंकि यह कोरोना काल है | ऐसे व्यक्ति को चुने जो आपके साथ हमेशा सुख दुःख में रहता हो | वैसे तो यह महिला आरक्षित वार्ड है और हमें महिलाओ को भी बढ़ावा देना चाहिये | अगर आगे महिला वार्ड आरक्षित रहता है तो मेरी धर्मपत्नी संध्या शर्मा वार्ड से चुनाव लड़ेंगी एवं क्षेत्र की जनता के आशीर्वाद से विजयी होंगी, धन्यवाद

Posted by: | Posted on: October 8, 2020

शिक्षा के स्तर को कैसे सुधारा जाये कोरोना काल में जानिए शिक्षाविद टीकाराम शर्मा एवं संध्या शर्मा से

पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें
अभी वास्तव में यह ठीक प्रकार तय ही नहीं है कि किस आयु वर्ग के बच्चों को कितना सिखाया जा सकता है और सिखाने के लिए न्यूनतम कितने साधनों और सुविधाओं की आवश्यकता होगी। नई शिक्षा नीति 1986 लागू होने के बाद न्यूनतम अधिगम स्तरों को आधार मानकर पाठ्यपुस्तकें और पाठ्यक्रम तो लगातार बदले गए हैं, लेकिन उनके अनुरूप सुविधाओं और साधनों की पूर्ति ठीक से नहीं की गई है। यह सोच भी बेहद खतरनाक है कि पाठ्यपुस्तकों के जरिए हम भाषायी एवं गणितीय कौशलों और पर्यावरणीय ज्ञान को ठीक प्रकार विकसित कर सकते हैं। यथार्थ में पाठ्यपुस्तकें पढ़ाई का एक छोटा साधन मात्र होती हैं साध्य नहीं। कक्षाओं पर केन्द्रित पाठयपुस्तकों और पाठ्यक्रम को श्रेणीबध्द रूप में निर्धारित करना भी खतरनाक है। बच्चों की सीखने की क्षमता पर उनके पारिवारिक और सामाजिक वातावरण का भी विशेष प्रभाव पड़ता है, अत: सभी क्षेत्रों में एक समान पाठ्यक्रम और एक जैसी पाठ्यपुस्तकें लागू करना बच्चों के साथ नाइन्साफी है।

शैक्षिक उद्देश्य
स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए हमें वर्तमान शैक्षिक उद्देश्यों को भी पुनरीक्षित करना होगा। शिक्षा, महज परीक्षा पास करने या नौकरी/रोजगार पाने का साधन नहीं है। शिक्षा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास, अन्तर्निहित क्षमताओं के विकास करने और स्वथ्य जीवन निर्माण के लिए भी जरूरी है। शिक्षा प्रत्येक बच्चे को श्रेष्ठ इंसान बनने की ओर प्रवृत्त करे, तभी वह सार्थक सिध्द हो सकती है। कहा भी गया है ”सा विद्या या विमुक्तये”। अभी पढ़े-लिखे और गैर पढ़े-लिखे व्यक्ति के आचरण और चरित्र में कोई खास अन्तर दिखाई नहीं देता। उल्टे पढ़-लिख लेने के बाद तो व्यक्ति श्रम से जी चुराने लगता है और अनेक प्रकार के दुराचरणों में लिप्त हो जाता है। यह स्थिति एक तरह से हमारी वर्तमान शैक्षिक पध्दति की असफलता सिध्द करती है। अतः यह जरूरी है कि शिक्षा के उद्देश्यों को सामयिक रूप से परिभाषित कर पुनरीक्षित किया जाए।

शिक्षकों को ”शिक्षक” के रूप में अवसर मिले
समान कार्य के लिए समान कार्य परिस्थितियाँ और समान वेतन की अनुशंसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में और मानव अधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 21, 22, और 23 में वर्णित होते हुए भी नाना नामधारी शिक्षक मौजूद हैं। एक ही विद्यालय में अनेक प्रकार के शिक्षकों के पदस्थ रहते सभी के मन में घोषित-अघोषित तनावों के कारण पढ़ाई में व्यवधान हो रहा है। इस परिस्थिति को गम्भीरता से समझे बगैर और परिस्थितियों में सुधार किए बगैर भला शिक्षण में सुधार कैसे होगा? शासन को सभी शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत शिक्षकों के लिए एक समान कार्यनीति, समान पदनाम, समान वेतनमान देने की नीति तय कर एक निश्चित कार्यावधि के बाद पदोन्नति देने का भी ऐलान करना चाहिए।

श्रेष्ठतम शैक्षिक कार्यकर्ता
शैक्षिक परिवर्तन के लिए शिक्षकों का मनोबल बनाए रखने और उत्साहपूर्वक कार्य करने की इच्छाशक्ति पैदा करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। अभी शिक्षा व्यवस्था में बालकों और पालकों की भागीदारी न्यूनतम है, इसलिए सभी शैक्षिक कार्यक्रम सफल नहीं हो पाते हैं। स्कूलों में भी जिस प्रकार समर्पित स्वयंसेवकों की आवश्यकता है, वे नहीं हैं। अत: यह आवश्यक है कि श्रेष्ठतम शैक्षिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जानी चाहिए।

शिक्षकों का मनोबल बढ़ाया जाए
समूची दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों में प्राथमिक शालाओं के शिक्षकों को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही ऐसी शिक्षा नीति बनाई जाती है जिसमें उनका मनोबल सदैव ऊँचा बना रहे। जब तक अनुभव जन्य ज्ञान, और कौशलों को महत्व नहीं दिया जाएगा तब तक ”बालकेन्द्रित शिक्षण” की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। बाल केन्द्रित शिक्षण के लिए कार्यरत शिक्षकों की दक्षता और मनोबल बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
यह आवश्यक है कि शिक्षकों को उनके व्यक्तित्व विकास की प्रक्रियाओं सहित ऐसे प्रशिक्षण संस्थानों में भेजा जाए जहाँ उन्हें अपने अन्दर झाँकने ,कुछ बेहतर कर गुजरने की प्रेरणा मिल सके। इस प्रशिक्षण उपरान्त उन्हें कार्यरत स्थलों पर ”ऑन द जॉब सपोर्ट” के रूप में ऐसे सहयोगी दिए जाएँ जो उनकी वास्तविक मदद करें। किसी ऐसी संस्था को इस दिशा में काम करने की जरूरत है जो सामाजिक बदलाव के लिए व्यापक दूरदृष्टि और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करने के लिए सहमत हो और उसके पास स्वयं के संसाधन भी उपलब्ध हों।
आज जरूरत इस बात की है कि किसी प्रकार पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया में परिवर्तन लाने के लिए विद्यालय प्रशासन, शिक्षकों और शैक्षिक कार्यक्रमों में तालमेल बनाया जाए। समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं को पहचान कर उनकी जरूरतों के अनुरूप निर्णय लेते हुए ऐसा वातावरण बनाने की आवश्यकता है जिसमें व्यवसायिक योग्यता में वृध्दि सुनिश्चित हो। शिक्षा के प्रशासन एवं प्रबन्धन में उत्तरदायी भूमिका निभाने वाले संस्था प्रधानों की नियुक्ति और प्रशिक्षण हेतु शिक्षा विभाग एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे अन्य संगठनों को शीघ्र कारगर कदम उठाना चाहिए। संस्था प्रधानों की भूमिका को सशक्त बनाए बगैर शिक्षा में सुधार की सम्भावनाएँ अत्यन्त क्षीण रहेंगी। हिमाचल प्रदेश में अध्यापको को खास टूर से राजनितिक गलियारों में मास्टर शब्दों से संबोधन से अध्यापक को समाज हीन भावना से देखता है। इस प्रकार के प्रयोगों से राजनेताओं और अधिकारीयों को बचना होंगा।
कहते हे जिस राज्य में गुरु जनों का आदर नही होता वह राज्य कभी उन्नत नही होता।

यह सभी जानकारी सोशल मीडिया से जुटाई गयी है