Wednesday, July 24th, 2019
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नरक जैसे हालात में जी रहे सेक्टर आठ सीही गांव के लोग- सिंगला
फरीदाबाद( विनोद वैष्णव )।स्मार्ट सिटी हो या न हो लेकिन यहां के लोग पढ़े लिखे लोग हैं जो सरकारें बनाना और गिराना जानते हैं। इनके साथ प्रशासन व शासन गलत रवैया अपना रहा है। यह लोग नरक जैसे हालात में रह रहे हैं। यह बात हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य लखन कुमार सिंगला ने सेक्टर आठ सीही गांव के लोगों के बीच कही।लोगों के बुलावे पर यहां पहुंचे लखन कुमार सिंगला ने कहा कि यहां लोगों को गंदगी के अंदर रहने को मजबूर किया जा रहा है। यहां महीनों तक सफाई नहीं होती है। जिससे लोग बीमार पड़ रहे हैं। लोगों को पीने के लिए सीवर का पानी आपूर्ति किया जा रहा है, उस पानी से आप पौंछा भी नहीं लगा सकते हैं। सिंगला ने कहा कि उद्योग मंत्री विपुल गोयल लोगों से कहते हैं कि फरीदाबाद स्मार्ट सिटी बन गया है। लेकिन वास्तव में यह पहले से अधिक बर्बाद हो गया है। वास्तव में जनता त्रस्त है लेकिन उद्योग मंत्री मस्त हैं। जनता मंत्री से, उनके रिश्तेदारों और नगर निगम अधिकारियों से गुहार लगा चुकी, लेकिन कोई राहत नहीं मिली।मौके पर लखन कुमार सिंगला ने नगर निगम के मुख्य अभियंता को भी फोन कर मामले की जानकारी दी। जिस पर उन्हें जल्द समस्या का समाधान देने का वादा किया गया। लोगों ने नगर निगम और हरियाणा सरकार के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाए। सिंगला ने समस्या का शीघ्र समाधान न मिलने पर नगर निगम आयुक्त के कार्यालय पर धरना देने की चेतावनी दी।इस अवसर पर बीर सिंह तेवतिया, मास्टर रामकिशन, संदीप वर्मा, बंटी ठाकुर, सूरज चौधरी, ललित चौधरी, कपूरचंद अग्रवाल आदि ने कहा कि अब बर्दाश्त से बाहर की बात हो गई है। हमारे यहां घरों में पानी घुस जाता है। सडक़ों पर पानी जमा रहता है। गंदगी इतनी है कि यहां रहना मुश्किल हो रहा है। अब हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे।
एमवीएन विश्वविद्यालय स्कूल आफ फार्मास्यूटिकल साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ तरुण विरमानी ने अप्रयुक्त दवाओं के सुरक्षित डिस्पोजल एवं जेनेरिक दवाओं के भ्रांतियों के विषय में व्याख्यान दिया
पलवल (विनोद वैष्णव ) | एमवीएन विश्वविद्यालय स्कूल आफ फार्मास्यूटिकल साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ तरुण विरमानी ने वैश्य फार्मेसी कॉलेज,रोहतक में हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल द्वारा प्रायोजित कॉन्टिनयिंग फार्मेसी एजुकेशन प्रोग्राम में अप्रयुक्त दवाओं के सुरक्षित डिस्पोजल एवं जेनेरिक दवाओं के भ्रांतियों के विषय में व्याख्यान दिया उन्होंने बताया कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग में आने वाली दवाइयों के प्रयोग के बाद कैसे उसको डिस्पोज किया जाए। सरकारी अस्पतालों में आधुनिक उपकरण इंसीनरेटर तो लगे हैं परंतु बायो मेडिकल वेस्ट का उत्पादन इतना ज्यादा है कि सारे बायो मेडिकल वेस्ट का डिस्पोजल नहीं हो पाता।
दवाइयों को पानी में फेंकने से जलीय जीव-जंतुओं के ऊपर भारी खतरा मंडरा रहा है और अगर उसे जलाया जाए तो वायु प्रदूषण का खतरा है। उपचार में सरकार की तरफ से एक बॉक्स प्रत्येक मेडिकल स्टोर पर लगाना चाहिए जिससे लोग अपनी अप्रयुक्त दवाइयां वापस कर सकें एवं इंसीनरेटर के द्वारा उसका सुरक्षित निस्तारण किया जा सके।भारत सरकार की जन औषधि परियोजना के तहत और मॉडल प्रिसक्रिप्शन एक्ट के अनुसार किसी भी डॉक्टर को जेनेरिक दवा लिखना जरूरी है। लेकिन जेनेरिक दवाओं के संदर्भ में आम लोगों में दो गलत धारणाएं प्रचलित हैं, जिनके अनुसार जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं इसलिए वह प्रभावी रूप से कारगर नहीं है। इस समस्या पर डॉ विरमानी ने कहा कि किसी भी बीमारी की दवाई बनाने के लिए सबसे पहले प्रयोग करने पड़ते हैं, उसके बाद उसका क्लीनिकल ट्रायल करना पड़ता है। तब कहीं किसी दवा का सॉल्ट बनता है। किसी भी बीमारी की दवा के सॉल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है। इस सॉल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से पेटेंट कराती है। आमतौर पर डॉक्टर्स महंगी दवाएं लिखते हैं, इससे ब्रांडेड दवा कंपनियां मुनाफाखोरी करती है। महंगी दवा और उसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम 5 से 10 गुना का अंतर होता है, कई बार जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं की कीमत में 90 परसेंट तक का भी अंतर देखा गया है। जेनेरिक दवाएं सस्ती इसलिए होती है क्योंकि उनका पेटेंट अधिकार समाप्त हो जाता है और क्लिनिकल ट्रायल पहले ही हो चुका होता है। जिससे उसका खर्चा कम हो जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार अगर डॉक्टर जेनेरिक दवाएं प्रिसक्राइब करें तो किसी भी देश का स्वास्थ्य खर्च 70 परसेंट तक कम किया जा सकता है।हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल के इस कदम को कुलपति प्रो डॉ जे बी देसाई एवं कुलसचिव डॉ राजीव रतन ने अत्यंत ही सराहनीय बताया एवं आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय सदैव समाज के प्रगति में अपना योगदान देगा।