डिजिटल प्रणाली शिक्षा के लाभ और नुकसान

बदलते दौर में जहाँ सब कुछ डिजिटल हो रहा है, वहीँ शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। असल में देखा जाये तो इंटरनेट, मोबाइल फोन, मोबाइल एप्लिकेशन, टैबलेट, लैपटॉप और अन्य आधुनिक उपकरणों के विकास होने के बाद आज की दुनिया ही डिजिटल हो गई है। वहीँ भारत में भी कई शहरों की शिक्षा प्रणाली भी आधुनिकीकृत हो रही हैं, जिससे डिजिटलीकरण के लिए रास्ता बन गया है। देखा जाये तो डिजिटल शिक्षा भारत की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में अपनी जगह बना चुकी है।

डिजिटल शिक्षा और कक्षा की शिक्षा के बीच अंतर- :प्रतिभा चौहान

भारी भरकम बस्ते और ढेर सारी किताबों के साथ स्कूल जाना अब बीते दिनों की बात हो गई है। वह दिन अब गुजर चुके हैं, जब स्कूलों में किताबों द्वारा बच्चों को पढ़ाया जाता था। और शिक्षक अपनी बातों को समझाने के लिए ब्लैकबोर्ड का इस्तेमाल करते थे। इन सब पारम्परिक चीजों को पीछे छोड़ते हुए अब ज्यादातर स्कूलों में डिजिटल शिक्षण और अन्य डिजिटल पद्धतियों का उपयोग किया जा रहा है.

डिजिटल शिक्षा का छात्रों को लाभ :मनप्रीत कौर (डायरेक्टर )ngf college of engineering and technology palwal
यहाँ पर एक सवाल यह उठता है की पारम्परिक शिक्षा के बीच शुरू हो रही डिजिटल शिक्षा से बच्चों को लाभ कैसे मिलता है? तो इस सवाल के जवाब में हमें कई तर्क दिए जाते हैं। मसलन पहला तर्क है, संवादात्मक।

रुचिरा (प्रोफेसर )
डिजिटल शिक्षा के जरिए कक्षाओं का शिक्षण अधिक मजेदार और संवादात्मक बनाया जा रहा है। जिससे बच्चे इस पर अधिक से अधिक ध्यान दे। जिसके लिए वह न केवल इसे सुने बल्कि इसे स्क्रीन पर देखे भी। जिससे उनकी नई नई चीजे सीखने की क्षमता में काफी इजाफा भी हो रहा है।

डिजिटलिजेशन का यहाँ एक यह फायदा भी है की संवादात्मक ऑनलाइन प्रस्तुतीकरण या संवादात्मक स्क्रीन के माध्यम से व्यावहारिक सत्र में शैक्षणिक सामग्री छात्रों को विवरणों पर और अधिक ध्यान देने में मदद करती है। जिससे वह गतिविधियों को अपनी झमता पर पूरा करने में सक्षम बनते हैं।

समय पर काम को पूरा करने के लिए बच्चों को आज ऐसे साधन चाहिए जो उनके काम में उनकी मदद करे। ऐसे में पेन और पेंसिल की बजाय आधुनिक उपकरणों का उपयोग करने पर बच्चो का जहाँ समय बचता है। वहीँ बच्चे अपने कार्यों को कम समय में पूरा कर लेते हैं।

अक्सर ऐसा देखने को मिलता है की किताबों को पास रख पढ़ते समय बच्चे उन पर इतना ध्यान नहीं देते, जिससे उनकी शब्दावली अधूरी और कमजोर रह जाती है। दरअसल हमारी किताबें भरपूर ज्ञान तो देती हैं, पर बच्चों को पूरी तरह से अपनी ओर खींच नहीं पाती। जिसका एक कारण किताबों का मनोरंजक तरीके से प्रस्तुतिकरण का न होना है। तो दूसरी तरफ ऑनलाइन स्क्रीन की सहायता से छात्र अपनी भाषा कौशल में सुधार कर लेते हैं। जिसमे उन्हें कठिन शब्दों के अर्थ तुरंत मिल जाते हैं। वहीँ ई-बुक से या ऑनलाइन अध्ययन सामग्री के जरिए वे नए शब्द सीखकर अपनी शब्दावली का विस्तार भी कर लेते हैं।

ज्योत्स्ना (प्रोफेसर )

कई बार ऐसी शिकायत मिलती है की छात्र कई कारणों के चलते अपने शिक्षकों से कक्षा में प्रश्न पूछने से झिझकते हैं। जिस कारण किसी भी विषय विशेष पर उनकी जानकारी या तो अधूरी रह जाती है, या फिर हो ही नहीं पाती। लेकिन डिजिटल शिक्षा के माध्यम से छात्र अपनी दुविधा को तुरंत मिटा सकते है, बल्कि उससे जुड़ी कई अन्य जानकारी भी पा सकते हैं। जिस पर हम कह सकते हैं की डिजिटल शिक्षा के माध्यम से छात्रों को उनकी योग्यता के अनुसार सीखने में मदद मिलती है।

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शिक्षा के माध्यमों का बेहतर विकल्प बनती जा रही डिजिटल शिक्षा के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह उपयोगकर्ता के अनुकूल है। जिसे कोई भी, कहीं भी और कभी भी इस्तेमाल कर अपने पाठ्यक्रम को आसानी से पढ़ सकता हैं। मसलन यात्रा के दौरान या फिर किसी कारणवश अवकाश लेने पर छूटे हुए विषयों को हम आसानी से पा सकते हैं।
डिजिटल शिक्षा का सबसे बड़ा फायदा यह है की इसके माध्यम से हमे ऑनलाइन अध्ययन सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती है। हालाँकि अभी पूरी शिक्षा प्रणाली डिजिटल रूप में नहीं हुई है, फिर भी छात्र अपनी जरूरतों के आधार पर डिजिटल सामग्री का लाभ उठा सकते हैं। जिसके लिए छात्रों को अपनी सोच और झमता को बढ़ाना पड़ेगा, क्यूंकि यहाँ उन्हें शिक्षक के बिना ही अपने ज्ञान को बढ़ाना होता है।

डिजिटल शिक्षा के तहत ऑनलाइन शिक्षा के साथ-साथ छात्र दूर बैठे सलाहकारों से मार्गदर्शन भी प्राप्त कर सकते हैं। जो हर समय उनकी समस्याओं को हल करने के लिए मौजूद रहते हैं।

डिजिटल शिक्षा का छात्रों को नुकसान:
बदलते ज़माने में समय के साथ चलने के लिए बच्चों के लिए डिजिटल शिक्षा जितनी जरुरी हैं, वहीँ डिजिटल शिक्षा के अपने कई नुकसान भी हैं। जैसे-

डिजिटल शिक्षा को पाने के लिए लोगों को कई उपकरणों को लेना होता है। जो काफी महंगे होते हैं। यही कारण है कि डिजिटल शिक्षा देने वाले अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय स्कूल और विद्यालय नियमित स्कूलों की तुलना में अधिक महँगें होते हैं। इसी कारण डिजिटल शिक्षा पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती।

पारम्परिक किताबी शिक्षा से हम घर हो या स्कूल कही भी पढ़ाई कर सकते हैं। जबकि डिजिटल शिक्षा के लिए न केवल स्कूल में बल्कि घर में भी सस्ते ब्रॉडबैंड में उचित आधारभूत संरचना की आवश्यकता होती है।

समय का पाबंद होना आज के समय में बहुत जरुरी है। वहीँ डिजिटल शिक्षा के तहत सीखने के लिए बेहतर प्रबंधन और कठोर योजनाओं की जरुरत होती है, जबकि पारंपरिक रूप में कक्षा में बैठ कर पढ़ने में सब कुछ एक निश्चित समय सारिणी के अनुसार होता है।

यूँ तो इंटरनेट पर सभी जवाब आसानी से प्राप्त हो जाते हैं, जिससे छात्रों को कभी किसी विषय पर पढ़ते हुए ज्यादा सोच विचार करने की जरुरत नहीं होती। जिस कारण छात्रों की बुद्धि एक दायरे में ही सीमित हो जाती है। जिससे बच्चों की रचनात्मक क्षमता में कमी आती है।

डिजिटल शिक्षा चाहे कितनी ही सुविधा छात्रों को उपलब्ध करा दे। लेकिन इस सुविधा के कारण छात्रों में अध्ययन की ख़राब आदतों को बढ़ावा मिल रहा है। जो छात्रों में आलसी दृष्टिकोण को धीरे धीरे विकसित कर रहा है। जिससे छात्र अपंनी सोच और झमताओं को छोड़ पूरी तरह से इस पर निर्भर हो रहे हैं। देखा जाये तो डिजिटल शिक्षा छात्रों में शिक्षा के बुनियादी तरीके को भुला रही है। यहाँ तक कि अब बच्चे मामूली समस्याओं और होमवर्क के लिए भी डिजिटल साधनों की सहायता ले रहे हैं।

डिजिटलाइजेशन के तहत सबसे ख़राब बात यह सामने आती है की यहाँ पर कई प्रकार की सामग्री होती है, जो छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं होती। इसमें बहुत सारी चीजे ऐसी है, जो बच्चों के लिए अच्छी नहीं होती, यदि इस सामग्री पर छात्रों की पहुँच होती है, तो यह उनका भविष्य बर्बाद कर सकती हैं।

अंत में उपर्युक्त पाठ का यही सार निकलता है की आज के समय में डिजिटल शिक्षा जरुरी तो है, लेकिन इसका उपयोग एक हद तक और किसी की देख रेख में ही होना चाहिए। जिससे इस तकनीक का छात्रों को पूरा पूरा लाभ मिले, वहीँ उनका मानसिक, शारीरिक और चारित्रिक हनन भी न हो।

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