हरियाली तीज एवं रक्षाबंधन पर घेवर का क्या महत्त्व है / जानिए क्यों है बीकानेर मिष्ठान भंडार का घेवर अन्य घेवर से स्वादिष्ट :- संचालक विक्रम सिंह

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव): सावन के महीने में सावन की प्रसिद्ध मिठाई घेवर की सोंधी -सोंधी महक हलवाईयों की दुकानों की तरफ खींच ही ले जाती है। सावन का महीना आते ही बाजारों की रौनक बढ़ने लगी है। घेवर व अन्य पकवानों की दुकानें सज गई हैं। सावन का पर्व शुरू होते ही लोग भी घेवर व अन्य मिष्ठान खरीदने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके चलते ही लोग इस माह में ज्यादातर घेवर की मिठाईयों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और इनका स्वाद चख कर आनंद लेने से पीछे नहीं हट रहे हैं। सावन का महीना शुरू होते ही एक ओर जहां लोगों को गर्मी व लु से निजात मिलती है वहीं घेवर का भी स्वाद लेते हैं। तीज का पर्व होने के कारण यह महीना विशेष महत्व रखता है। तीज पर लोग अपने सगे संबधियों व लडकियों को संधार में घेवर भेज कर उनकी खुशियों में शामिल होते हैं। वहीं बहने भी अपने भाईयों को तीज देने पर उनकी दीर्घायु की मंगलकामनाएं करते हैं। वहीं बाजारों में भी तीज की रौनक लौट आती है। बाजार फिरनी व घेवर की दुकानों से सज जाते हैं। लोग सहज ही इन दुकानो की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।

विक्रम सिंह ने बताया कि क्यों सावन में घेवर बनता है ?

सावन का मौसम सबसे बरसाती का मौसम होता है जिसके कारण मौसम में नमी होती है इसलिए घेवर भी बहुत नमी वाला बनता है। बस सावन में ही घेवर बनता है अगर और मौसम में घेवर बनाया गया तो घेवर ज्यादा हार्ड बनेगा और वो खाया नहीं जाएगा टेस्ट भी नहीं आएगा ।

घेवर कई प्रकार के होते है :-

  • प्लेन घेवर
  • दूध घेवर
  • खोया घेवर
  • मलाई रबड़ी घेवर
  • केसर घेवर

वही बात करे सिंपल घेवर की तो ये 500 रुपए किलो है और खोया खोया घेवर 540 रुपए किलो।

कैसे बनाया जाता है घेवर :

घेवर को शुद्ध देसी घी और मैदे में मिलाकर पकाया जाता है और इसे बनाने में अनोखी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। जब भी वह ठंडा हो जाता है तो उसे चासनी में डुबोया जाता है और फिर इसे इस पर कटे हुए मेवे और केसर से सजाया जाता है।

बीकानेर मिष्ठान भंडार में लगभग हर सीजन में 300 किलो तक घेवर की बिक्री देखी गई है।

घेवर का नाम घेवर क्यों है ?

मुनि राज महाराज का कहना है कि पहले 3,4 दिन मेदा रखी होती थी। और उसमे पॉजिटिव वाले कीड़े पड़ जाते थे घर में कुछ मीठा न होने पर लोग उस मेदा और घी व चासनी का घोल बनाते थे उस घोल का नाम खमीरा था तो लोगो ने घी और चासनी के बनने के बाद जो तैयार हुआ उसे घेवर का नाम दे दिया। और उसकी की बड़ी बड़ी गोल आकर में रोटियां बना कर सभी बहन अपने भाइयो के लिए वो ही लेकर जाती थी।

घेवर को कभी फ्रीज में ना रखें :

आपको बता दें कि घेवर को कभी घर पर ले जाकर फ्रिज में नहीं रखना चाहिए क्योंकि उसमें नमी आने का डर रहता है। घेवर को आप लगभग 7 दिनों तक खा सकते हैं। अगर घेवर खाने पर आपको खट्टापन आता है तो आप समझ जाए कि घेवर खराब हो चुका है।

बीकानेर मिष्ठान भंडार का घेवर अन्य घेवरो से क्यों स्वादिष्ट है :-

विक्रम सिंह का कहना है कि उनके वहा शुद्ध देसी घी मे बनाया जाता है ताकि उसके स्वाद में किसी प्रकार की कोई कमी न रहे तो इसलिए किसी प्रकार की कोई मिलावट नहीं की जाती है। कई बार जांच करने पर भी हमारा घेवर सही पाया गया है।

सफाई व शुद्धता हमारी प्राथमिकता में शामिल हैं, ग्राहक की संतुष्टि ही हमारा लक्ष्य है। सावन की मिठाई घेवर बरसात होने पर अधिक स्वादिष्ट लगता है व इसकी बिक्री में भी इजाफा हो जाता है। ज्यों-ज्यों तीज का त्यौहार निकट आता जाएगा, त्यों-त्यों घेवर की बिक्री बढती जाएगी। क्योकि फरीदाबाद शहर के आस-पास ग्रामीण एरिया है, ऐसे में तीज के अवसर पर घेवर की जमकर बिक्री होती है।

विक्रम सिंह : बीकानेर मिष्ठान भंडार ( सोहना रोड,गौछी सेक्टर-55, नियर पेट्रोल पंप ,बल्लबगढ़ )

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