Vinod Vaishnav | सात्विक व संतुलित पौष्टिक आहार के सेवन के प्रति आज के युवा दमपतियों को जागरूक करने हेतु, दिनाँक ३ दिसमबर २०१७ को फरीदाबाद स्थित, सतयुग दर्शन ट्रस्ट (रजि0) द्वारा अपने विशाल परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में एक विशेष आयोजन किया गया जिसमें विवाहित दमपतियों ने बड़े ही उत्साह से भाग लिया। इस आयोजन के दौरान उन्हें सात्विक आहार के सेवन की महत्ता, उसे पकाने व परोसने की कला के साथ- साथ व्यावहारिक तौर पर पारिवारिक एकता में बने रहने के आवश्यक सूत्र भी बताए गए। इस अवसर पर उपस्थित समस्त दमपतियों ने मिलजुल कर बताई युक्ति अनुसार विभिन्न स4िजयाँ, सूप, पुलाव, मिष्ठान इत्यादि स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और घर सतयुग बनाने का दृढ़ निश्चय लिया।
सतयुग दर्शन ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने अपने समबोधन के दौरान उपस्थित समस्त सजनों को बताया कि जीवन भगवान कि सर्वोात्म भेंट है और निरोग रहना सबसे बड़ा वरदान है। निरोगी रहने के लिए आवश्यक है कि सब सात्विक एवं पौष्टिक भोजन का सेवन करें और प्राकृतिक नियमों के अनुकूल अपना खान-पान व रहन-सहन का ढंग अपनाएं। इस तरह सब अपने शरीर को स्वस्थ, दृढ़ और बलशाली बनाए रखें। आगे उन्होंने समझाया कि मनुष्य के लिए सबसे उपयोगी भोजन वह है जो या तो अपनी प्राकृतिक अवस्था और स्वरूप में हो या उसकी अवस्था और स्वरूप में कम से कम परिवर्तन हुआ हो। आगे उन्होंने आहार का दूसरा अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि — च्इन्द्रियों द्वारा विषयों का भोगनाज् भी आहार कहलाता है। इस तरह सद् आहार का अर्थ होता है च्इन्द्रियों को ज्ञान द्वारा स्वार्थ से हटा कर आत्मा के अधीन करनाज् । इन्द्रियों का यह सद् आहार हमें प्रेरित करता है कि जो गुण अपने अन्दर विराजमान हैं, उन्हें उन्नत करें।.जो गुण नहीं हैं, उन्हें प्राप्त करने का यत्न करें। जो अवगुण अपने अन्दर हों, उन्हें छोड़ दें व जो अवगुण अभी नहीं आये हैं उनसे दूर रहें। इस प्रकार मनुष्य को चाहिए कि वे शारीरिक और मानसिक रूप से उस पदार्थ या विषय को अपने अन्दर स्थान दे जिससे शरीर की उन्नति और मन को पवित्रता प्राप्त हो 1योंकि ऐसे भोजन सेवन से मन व बुद्धि की शुद्धि होती है। आगे उन्होंने कहा कि इच्छाओं और आवश्यकताओं के मध्य भेद जानने वाली एक सुघड़ गृहिणी यह भली भांति जानती है कि उसके व उसके परिवार के लिए कौन सी चीज़ अच्छी है व आवश्यक है। इसलिए वह अपने पारिवारिक सदस्यों के लिए ऐसे भोजन का चयन करती है जो सादा और स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ सार तत्वों से भरपूर हो। इस प्रकार वह व्यर्थ की जटिलताओं से रहित ऐसे भोजन का स्वाद अपने पारिवारिक सदस्यों को डालती है जो मात्र रसना के सुखों को तृप्त करने का साधन न होकर, शरीर को सबल और स्वस्थ बनाने वाला हो। इस तरह वह महज़ पेट को भरने वाले व उसमें भारीपन लाने वाले भोज्य पदार्थों से परहेज़ रखती है और अपनी इस बुद्धिमता द्वारा पारिवारिक समस्त सदस्यों को लोभ और पेटुपन का शिकार बनाने के स्थान पर अपनी भूख के अनुसार खाना खाने के लिए प्रेरित करती है। अंत में श्री सजन जी ने सबको एकता के सूत्र में बाँधने हेतु कहा कि इस परिवर्तनशील सत्ता के पीछे विद्यमान अपरिवर्तनीय चिरंतन सत्ता की धारणा को अपना यथार्थ मानो और उस महान सत्य के आलोक में विकसित मानव धर्म को समभाव से स्वीकारने हेतु उसके प्रति अपने आप को मन-वचन-कर्म से समर्पित कर दो। इस प्रकार सर्वकल्याण हेतु अपनी मनोवृति, दृष्टिकोण और स्वभाव उसी अनुसार ढालो। इस प्रयोजन सिद्धि हेतु आत्मिक ज्ञान प्राप्ति द्वारा अपने मन के दर्पण में आत्मसाक्षात्कार कर अपने आचार-विचार को परिष्कृत करो और सजन-भाव अनुरूप व्यवहार दर्शा कर सत्य के युक्तिपूर्ण, व्यवहारिक व क्रियाशील वाहक बनो। इस प्रकार विचार, सत् ज़बान, एक दृष्टि, एकता व एक अवस्था में सुदृढ़ता से बने रह परम पवित्र समाज का निर्माण कर, समपूर्ण विश्व में सत्य-धर्म का परचम लहरा शांति स्थापित कर दो