हरियाणा सरकार हरियाणा बिल्डिंग कोड 2017 में बदलाव करने जा रही है।जिसके तहत अब 200 वर्ग मीटर तक के भवन के नक्शा डिप्लोमा धारक एवं ड्राफ्टमैन भी बना सकेंगे और पास करवा सकेंगे जबकि ये लोग आर्किटेक्ट नहीं हैं। इनके पास आर्किटेक्ट की डिग्री नहीं होती। सरकार इन
डिप्लोमाधारकों को सुपरवाइजर के पद से नवाजना चाहती है। भवन का डिजाइजन आर्किटेक्ट का काम होता है क्योंकि आर्किटेक्ट ने इसके लिए पांच साल की डिग्री कर के काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर में अपना पंजीकरण कराया हुआ है। यह आर्किटेक्ट एक्ट 1972 के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक है। आर्किटेक्टस एक्ट 1972 अार्किटेक्ट के पेशे को निर्धारित रूप से चलाने के लिए दिशा निर्देश देता है। डिप्लोमा होल्डर ड्राफ्टमैन और सिविल इंजीनियर काउंसिल ऑफ आर्किेटेक्चर से पंजीक़ृत नहीं होते। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है कि आर्किटेक्ट का काम केवल आर्किटेक्ट को ही करना चाहिए। कोड में प्रस्तावित इस बदलाव का पूरे प्रदेश के आर्किटेक्टस विरोध कर रहे हैं। विरोध स्वरूप 300 से अधिक आपत्तियां सरकार के पास दर्ज कराई जा चुकी हैं। आर्किटेक्टों का कहना है कि एक कंपाउंडर या स्टाफ नर्स कैसे सर्जरी कर सकते हैं। इसी प्रकार एक डिप्लोमा धारक ड्राफ्टमैन कैसे आर्किटेक्ट का काम कर सकता है। यदि ऐसा कर दिया गया तो भवन के नक्शों में कई प्रकार की खामियां होने लगेंगी। इन कमियों वाले नक्शों से ही भवन बनना शुरू हो जाएंगे जिससे जानमाल की हानि होने की आशंका बनी रहेगी। इसलिए आर्किटेक्ट सरकार के इस कदम का जनहित में खतरा बता रहे हैं और विरोध कर रहे हैं।सरकार को नॉन आर्किअैक्ट को नक्शे बनाना ओर पास कराने का प्रावधान बिल्कुल नहीं करना चाहिए। यह प्रदेश की जानता से सीधा-सीधा खिलवाड़ होगा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्टस हरियाणा चैपटर के चेयरमैन पुनीत सेठी,इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ आर्किटेक्टस हरियाणा चैप्टर के संयुक्त सचिव सुरेंद्र सिंह, आइआइए फरीदाबाद सेंटर के चेयरमैन आर्किटेक्ट शिव सिंगला,आइआइए फरीदाबाद सेंटर के संयुक्त सचिव आर्किटेक्ट निर्मल मखीजा, दिल्लीसे आए आर्किटेक्ट बलबीर वर्मा, आइआइए गुरुगा्रम सेंटर के चेयरमैन आर्किटेक्ट विवेक लोगानी, दिल्ली से आए आर्किटेक्ट शमित मनचंदा, नगर निगमके पूर्व वरिष्ठ नगर योजनाकार रवि सिंगला के अनुसार वह सभी आर्किटेक्टस काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर से लाइसेंस प्राप्त हैं और इसके संबंध में अपनीआपत्ति दर्ज कराते हैं। बता दें सरकार ने 2017 में भी कुछ ऐसा ही करने का प्रयास किया था। आर्किटेक्टों के विरोध के बाद सरकार ने जनहित में अपना निर्णय वापस ले लिया था। इसलिए उनकी सरकार से मांग है कि इस बार भी इस निर्णय को वापस ले और उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाने को मजबूर न करें।