वृन्दावन – एक दिव्य दैविक धाम :-डॉ मीनाक्षी पांडेय

वृन्दावन एक ऐसा पावन पवित्र और आध्यात्म से परिपूर्ण धाम है जहाँ पहुंचते ही व्यक्ति का मन भक्तिमय ,कृष्णमय और राधामय हो जाता जाता है जिसकी अभिव्यक्ति शब्दों से नही की जा सकती है , श्री वृन्दावन धाम में कृष्ण का बचपन बीता ,जहाँ उन्होंने गोपियों के साथ नृत्य किया, श्री वृन्दावन धाम को गोलोक धाम भी कहते हैं क्योकि वो श्री क्रृष्ण का निज धाम है। गोलोक का मतलब है श्री भगवान की नितसँगी गोपियाँ ,गोलोक का मतलब है श्री कृष्ण की परमप्रिय गायें और गोलोक का मतलब है ग्वालवाल तो इसका अभिप्राय ये है जहाँ कि भगवान श्री कृष्ण की परमप्रिय गायें ,ग्वालवाल और गोपियां विराजमान हैं वही वृन्दावन धाम है।

श्री वृन्दावन धाम को चिन्तामणि धाम भी कहते हैं क्यूँकि उस धाम के परिसर में पहुंचते ही व्यक्ति के जीवन की सारे दुःख ,बाधाएं और परेशानियां स्वतः विलुप्त हो जाती हैं और बस व्यक्ति का मन भक्तिरस में डूब जाता है, इसलिए श्री वृन्दावन धाम को आनंद धाम भी कहते हैं क्योंकि इस भूमि पर व्यक्ति को एक अनोखे सुख का एहसास होता है इस सबका एक प्रत्यक्ष प्रमाण है ब्रजधाम में रहने वाले लोग और संपूर्ण विश्व से ब्रजधाम पहुंचने वाले लोगों का अनुभव इस बात का प्रमाण देता है। श्री वृन्दावन वो तपोवन है जहाँ का एक एक घर मंदिर है ,वहां पेड़ ,पत्ते ,लता पताओं में सकती। वृन्दावन वह स्थान है जहाँ भगवान सिर्फ श्री कृष्ण और श्रीमती राधारानी की गूँज सुनायी देती है.

मथुरा मंडल में साढ़े बीस योजन में फैले हुए भूभाग को ऋषियों और मुनियों ने दिव्य ” ब्रजधाम” की उपाधि दी है ,श्री ब्रज वृन्दावन धाम श्री कृष्ण और राधा रानी की क्रीड़ास्थली भी है जो साक्षात् बैकुंठ से भी परम उत्कृष्ट है। जहाँ साक्षात यमुना हैं ,गोवर्धन गिरिराज हैं ,जहाँ बरसाना है नंदीश्वर गिरिराज हैं ,सुन्दर और अद्भुत मंदिर हैं, कई घाट हैं ,हरे भरे उपवन हैं ,वृंदा (तुलसी) वाटिकाएँ हैं ,देवपुष्प परिजात आदि के कुञ्ज हैं ,जहाँ सूंदर गायें स्वछंद विचरण करती रहती हैं ,जहाँ पवित्रता है ,सुगंध है ,असीम शांति है ,घर घर में मंदिर हैं ,निधिवन की सुन्दर लता पताएं हैं और छोटे छोटे तुलसी के पेड़ हैं और यहाँ तुलसी का हर पौधा जोड़े में है। मान्यता है की जब श्री कृष्ण और राधारानी रासलीला करते हैं तो ये तुलसी के पौधे गोपियाँ बन जाती हैं और हर सुबह होने पर तुलसी का पौधा बन जाती हैं। वृन्दावन -निधिवन की रहस्यमयी कहानियों से शायद ही कोई अपरिचित हो। इसके अलावा ,निधिवन के पेड़ मनुष्य के आकर के दिखाई देते हैं जो अलग अलग मुद्राओं में खड़े रहते हैं। यहाँ की सबसे बड़ी खासियत ये है की यहाँ लगे वृक्षों की शाखाएं ऊपर की ओर से ना विकसित होकर नीचे की ओर से बढ़ती हैं। वहाँ के स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि शाम के बाद कोई इस वन की और नही देखता। जिन लोगों ने भी इसे उत्सुकता वश देखने का प्रयास किया वो या तो अंधे हो गए या पागल हो गए। वृन्दावन के बुजुर्ग लोग इस वन से जुडी कई रहस्यमयी कहानियाँ बताते हैं।
“वृन्दावनं परित्यज्य सा कवासिन नैवा गच्छेति” – चैतन्य चरितमृत, श्री कृष्ण ने वृंदावन को कभी नहीं छोड़ा।ब्रज का कण कण श्री कृष्ण चरणों से चिन्हित है, यह हमें नित्य ही श्री कृष्ण की याद दिलाता है । श्री कृष्ण को भला कोई ब्रज में कैसे भूल सकता है. श्री वृन्दावन धाम श्रीमती राधा रानी को प्राण से भी ज्यादा प्रिय है इसकी चर्चा निम्न लिखित कथा में है साक्षात् परिपूर्ण तम भगवन श्री कृष्ण जो असंख्य ब्रम्हाण्डों के अधिपति और “गोलोक ” के नाथ हैं जब पृथ्वी का भार उतारने स्वयं इस भूतल पर आने लगे तब श्री कृष्णा ने श्री राधा रानी से भूतल पर साथ चलने को कहा इस पर श्री राधा रानी बोलीं ” कि हे कृष्ण जहाँ वृन्दावन नही है ,जहाँ कालिंदी यमुना का किनारा नही ,जहाँ यमुना के घाट न हों और जहाँ गोवर्धन पर्वत नहीं ,वहां मेरे मन को शांति नही मिलती है. श्री राधारानी की यह बात सुनकर श्री कृष्णा ने अपने धाम से चौरासी कोस विस्तृत भूमि ,गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी को भूतल पर भेजा और तब गोलोक भूमि २४ वनों के साथ ,चौरासी कोस विस्तार के साथ भूतल पर अवतरित हुई। इस प्रकार वृन्दावन एक ऐसा देवधाम है जिसकी व्याख्या करने के लिए शब्द भी काम पड़ते हैं जिसे समस्त देवता भी पसंद करते हैं। वृन्दावन की खासियत वहां के हरे भरे पेड़ ,लता पताएं , वृक्ष ,स्वछन्द बहती यमुना नदी ,वह का पवित्र वातावरण ,चहचहाते पक्षी ,पुराने वृन्दावन स्थित वंशीवट ,सुदामा कुटी ,यमुना रानी,गोपेश्वर मंदिर गौशालाओं में

वृन्दावन धाम वो पवित्र स्थल है जो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुडा हुआ है। यहाँ पर श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिरों की विशाल संख्या है। यहाँ स्थित बांके विहारी जी का मंदिर, श्री गरुड़ गोविंद जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का मंदिर प्राचीन है। इसके अतिरिक्त यहाँ श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, निधि वन आदि दर्शनीय स्थान है।यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि सभी ग्रंथों में वृन्दावन की महिमा का वर्णन है कि श्री वृन्दावन – एक दिव्य दैविक धाम है, वृन्दावन की खासियत वहां के हरे भरे पेड़ ,लता पताएं , वृक्ष ,स्वछन्द बहती यमुना नदी ,वहाँ का पवित्र वातावरण ,चहचहाते पक्षी ,पुराने वृन्दावन स्थित वंशीवट ,सुदामा कुटी ,यमुना रानी,गोपेश्वर मंदिर, गौशालाओं में सुन्दर गायें , यहाँ के सघन कुंजों में तरह तरह के रंग बिरंगी पुष्प और ऊँचे ऊँचे घने वृक्ष मन को उल्लास से भर देता है और आँखों को शीतलता प्रदान करते हैं वृन्दावन का कण कण रसमय है इसे गोलोक धाम से अधिक मन जाता है।

यही कारण है कि जिसने एक बार वृन्दावन धाम में भक्तिरस का पान कर लिया फिर वो वृन्दावन के बगैर नही रह सकता क्योकि उन्हें वृन्दावन धाम में जगह जगह ठाकुर जी के दर्शन करके अद्भुत शांति मिलती है वहाँ उन्हें नकारात्मकता से दूर प्रतिदिन एक खुला वातावरण ,पक्षियों का कलरव ,साधू संतों का दर्शन ,हरिनाम संकीर्तन ,भागवत ,वेदों ,शास्त्रों ,पुराणों का हर पल पाठों में सम्मिलित होना , मंदिरों की सुबह शाम संध्या आरती में सम्मिलित होना एक आंतरिक शक्ति देता है और उनके ह्रदय मेंन,शरीर में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करता है। छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़ी उम्र के लोग भी भागवत महापुराड़ का पाठ करते हैं।

श्री कृष्ण और राधारानी के बिना वृन्दावन की कल्पना अधूरी है श्री कृष्ण का अवतार एक पूर्ण अवतार माना जाता है। ये कितने गर्व की बात है की असंख्य ब्रह्माण्डों के स्वामी श्री कृष्ण गोलोक धाम में विराजते हैं श्री कृष्ण भगवन एक पूर्ण अवतार हैं। जिनके पास नौ रसों की अभिव्यक्ति है बल और पराक्रम में जिनसे कोई जीत नही सकता ,जो परम पराक्रमी हैं और सोलह कलाओं में निपुड़ हैं उन ठाकुर कृष्ण चंद्र के चरणों में मेरा बारम्बार प्रणाम है और भगवान के इस अवतार को हम ‘पूर्णावतार’ मानते हैं क्योंकि श्री कृष्ण ने एक कार्य के उद्देश्य से अवतार लेकर अनेकों शुभ कार्य सम्पादित किये। गोविन्दम् आदि पुरुषं तम् अहं भजामि

“गोविन्दम् आदि पुरुषं तम् अहं भजामि,वेनणुम् क्वणन्तारविन्द दलायताक्षम्,बार्हावतंसम् असिताम्बुद सुन्दरााङ्गम्कन्दर्प कोटि कमनीय विश्ऽएष श्ऽओभम्”

“हे गोविन्द आप ही आदि पुरुष हो , आप ही पुरुषोत्तमोत्तम एवं परात्पर पुरुष परमेश्वर हो। भगवान श्री कृष्ण गोलोक वृन्दावन के स्वामी हैं समस्त ब्रजमंडल के स्वामी हैं, ठाकुर श्री कृष्ण को श्री वृन्दावन धाम ह्रदय से भी ज्यादा प्यारा है इसलिए उन्हें वहां के ब्रजवासियों से भी बहुत प्रेम था इसके बहुत से रोचक तथ्य पुराणों में उपलब्ध है जैसे ब्रजवासियों को इंद्र के क्रोध और वर्षा से बचाने के लिए गोवर्धन पहाड़ को अपनी ऊँगली पे धारण किया था और इसी प्रकार ब्रजवासियों की कई बार ठाकुर कृष्णा ने रक्षा की।

भगवान श्रीकृष्ण एक राजनीतिक, आध्यात्मिक और योद्धा ही नहीं थे वे हर तरह की विद्याओं में पारंगत थे। श्रीकृष्ण ने धर्म, राजनीति, समाज और नीति-नियमों का व्यवस्थीकरण किया था। था। प्रचलित जनश्रुति अनुसार माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण शरीर से मादक गंध निकलती रहती थी और श्रीकृष्‍ण के शरीर से निकलने वाली खुशबु गोपिकाचंदन और कुछ-कुछ रातरानी की सुगंध से मिलती जुलती थी।इसके अलावा भगवन श्री कृष्ण एक महायोगी भी थे। भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहकर हासिल की थी। कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था जिसे युद्ध में सबसे घातक हथियार माना जाता था। श्री कृष्ण के मिट्टीखाने पर जब यशोदा माँ ने उनसे नाराज होकर उन्हें मुँह खोल के दिखने को कहा तो भगवन ने अपनी माया द्वारा माता यशोदा को अपने मुंह के भीतर ब्रह्मांड के दर्शन कराया था , वहीं उन्होंने महाभारत युद्ध में अर्जुन को अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराकर उसका मोह भ्रम दूर किया था। दूसरी ओर उन्होंने कौरवों के दरबार में द्रौपदी के चीरहरण के समय उसकी लाज बचाई थी। इस तरह कृष्ण के चमत्कार और माया के कई किस्से हैं, एक योगी होने के कारण ,वे योग में पारगत थे ,और कई बार घंटों योग में लीं हो जाते थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियां उन्हें स्वत: ही उन्हें प्राप्त हो जाती थी।

श्री कृष्ण के पास यूं तो कई प्रकार के दिव्यास्त्र थे। लेकिन सुदर्शन चक्र मिलने के बाद सभी ओर उनकी साख बढ़ गई थी। शिवाजी सावंत की किताब ‘युगांधर अनुसार’ श्रीकृष्ण को भगवान परशुराम ने सुदर्शन चक्र प्रदान किया था, तो दूसरी ओर वे पाशुपतास्त्र चलाना भी जानते थे। पाशुपतास्त्र शिव के बाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास ही था। इसके अलावा उनके पास प्रस्वपास्त्र भी था, जो शिव, वसुगण, भीष्म के पास ही था।

इस प्रकार हम कह सकते हैं की श्री कृष्ण का बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाव, बरसाना आदि जगहों पर बीता। द्वारिका को उन्होंने अपना निवास स्थान बनाया और सोमनाथ के पास स्थित प्रभास क्षेत्र में उन्होंने देह छोड़ दी। दरअसल भगवान कृष्ण इसी प्रभाव क्षेत्र में अपने कुल का नाश देखकर बहुत व्यथित हो गए थे। वे तभी से वहीं रहने लगे थे। महाभारत का युद्द समाप्त होने पर एक दिन वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तभी किसी बहेलिये ने उनको हिरण समझकर तीर मार दिया। यह तीर उनके पैरों में जाकर लगा और तभी उन्होंने देह त्यागने का निर्णय ले लिया। एक दिन वे इसी प्रभाव क्षेत्र के वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे योगनिद्रा में लेटे थे, तभी ‘जरा’ नामक एक बहेलिए ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर देह त्याग दी। जनश्रुति अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने जब देहत्याग किया तब उनकी देह के केश न तो श्वेत थे और ना ही उनके शरीर पर किसी प्रकार से झुर्रियां पड़ी थी। अर्थात वे 119 वर्ष की उम्र में भी युवा जैसे ही थे।

इस प्रकार श्री ब्रजधाम के विषय में चर्चा इतनी अनंत है जिसे थोड़े से शब्दों से अभिव्यक्ति नही की जा सकती इसलिए मई इसी प्रकार बीच बीच में श्री वृन्दावन धाम से जुडी हुई कृष्णा कथाएं, ब्रज धाम के प्रसिद्ध मंदिर ,वहाँ के मंदिरों से जुड़े कुछ रहस्यों के साथ एक बार फिर लौटूंगी।

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राधे राधे !
डॉ. मीनाक्षी पाण्डेय
प्रोफेसर, हेड
स्कूल ऑफ़ कॉमर्स एंड मैनेजमेंट,
लिंगयास यूनिवर्सिटी
Email: kaushikmeenakshi36@gmail.com

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