दिल्लीवासियों ने जिस लाहौर नै वेख्या ओ जम्याइ नै नाटक का आनन्द उठाया

Vinod Vaishnav :कला विशिष्ट संस्था से जुड़ी एक पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट,नाद फाउंडेशन द्वारा श्री सत्य साईं ऑडिटोरियम भीष्म पितामह मार्ग लोदी रोड न्यू दिल्ली में एक भव्य शाम का आयोजनकिया गया। जहां अस्मिता थियेटर ग्रप ने अरविंद गौर द्वारा निर्देशित जिस लाहौर नै वेख्या ओ जम्याइ नै, असगर वजाहत का एक नाटक प्रस्तुत किया।अभिनेता काकोली गौर, राहुल खन्ना, सवेरे गौर, ईश्वर सिंह, अमित रावल, दविंदर कौर, गिरीश पाल और शशांक वर्मा, शिवम् भसीन, दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी, श्रीराजीव शुक्ला एवं डीजी बीएसएफ श्री केके शर्मा जैसे कई नामी चेहरे इस अवसर पर मौजूद रहे। नाद फाउंडेशन की मैनेजमेंट ट्रस्टी निशी सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत कर उन्हेंअपना धन्यवाद व्यक्त किया।जिस लाहौर नै वेख्या ओ जम्याइ नै, एक नाटक है जो कि असगर वजाहत द्वारा लिखित है, पिछले 25 वर्षों से यह नाटक विश्वभर में रूपांतरित और प्रस्तुत किया जा रहा है पर इसकीलोकप्रियता फीकी होने से इसे इनकार कर दिया गया। इसके पीछे का कारण इसकी सार्वभौमिक मानवीय भाईचारे जैसे धर्म बाधाओं में कटौती को लेकर कि गई अपील थी। नाटक का कथानक विभाजन के बाद एक परिवार लखनऊ से लाहौर जाता है। शरणार्थी शिविर में रहने के बाद उसे एक बड़ा मकान ऐलॉट होता है। लेकिन जब वो वहां पहुंचते हैं तो देखते हैं कि एकबूढ़ी औरत रह गई है। उन्हें लगता है कि जब तक ये रहेगी मकान हमारा नहीं हो सकता। वो बूढ़ी औरत भी चाहती है कि ये लोग चले जाएं। तो नाटक एक संघर्ष की स्थिति से शुरुहोता है। लेकिन ये बूढ़ी औरत स्वभाव से बड़ी मददगार है और धीरे धीरे दोनों के बीच एक रिश्ता बनने लगता है। जब शहर के गुंडों को पता चलता है तो कि हिन्दू बुढिय़ा रह गई है तोउनकी कोशिश होती है कि उसे निकालें। लेकिन वही परिवार उसे बचाता है। बाद में जब वो मरती है तो सवाल उठता है कि इसका क्रिया कर्म कैसे किया जाए। स्थानीय मौलवी कीराय पर उसका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से किया जाता है। उसके शव को राम नाम सत्त कहते हुए ले जाते हैं और रावी के किनारे जला देते हैं। इसकी प्रतिक्रिया में शहर के गुंडेमौलवी की हत्या कर देते हैं। असगर वजाहत को कहां से मिली प्रेरणा दिल्ली में मेरे एक पत्रकार दोस्त हैं संतोष कुमार। वो विभाजन के बाद लाहौर से दिल्ली आए थे। उन्होने एक किताब लिखी लाहौर नामा जिसमें एक बूढ़ी औरत का जिक्र था जो लाहौरमें ही रह गई थी और भारत नहीं आ पाई थी। इस विचार को लेकर मैंने आगे का ताना बाना बुना और धीरे-धीरे बहुत से रोचक पात्र निकलकर सामने आए। यह नाटक दो बातों परटिका है एक है क्रॉस कल्चरल समझ यानि लखनऊ का परिवार पंजाब की औरत से इंटरैक्शन करता है। दोनों एक दूसरे की भाषा नहीं समझते हैं लेकिन भावनाएं भाषा की सीमाएंतोड़ देती हैं। दूसरी बात धार्मिक सहिष्णुता की है। वास्तव में हर धर्म सिखाता है कि दूसरे का सम्मान करो और अच्छे संबंध बनाओ। पाकिस्तान में जब ये नाटक खेला गया था तोउसकी समीक्षा छपी थी जिसमें लिखा था कि इस नाटक का महत्व ही ये है कि यह धार्मिक सहिष्णुता का संदेश देता है। नाद फाउंडेशन  के बारे में: नाद फाउंडेशन,एक पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट है जिसका लक्ष्य मानव पीड़ा को कम करना एवं दलितों के लिए नए अवसर विकसित करना है। जिससे की वेअपने जीवन को बेहतर बना सकें और शिक्षा प्रसार, विभिन्न धर्मार्थ कार्यक्रमों का आयोजन करके जैसे स्वास्थ्य शिविर, शैक्षणिक व चिकित्सा शिविर, विभिन्न प्रतियगिताओं एवम् सलाहव परामर्श सेवाओं के माध्यम से खुद को स्वतंत्र बनाने के लिए अपने दम पर खड़े हो सकें ।

फैंस और दोस्तों ने मनाया उभरते सितारे सौरव पंडित का जन्मदिन

फरीदाबाद Vinod Vaishnav। रौहतक वाली हरियाणवी सांग से अपने इंटरटेनमेंट सफर की शुरूआत करने वाले फरीदाबाद के सौरव पंडित का…

पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना के 61वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य जनसभा का आयोजन

फरीदाबाद, Vinod Vaishnav । फरीदाबाद के पूर्व सांसद एवं भाजपा विधायक अवतार सिंह भड़ाना ने कहा है कि देश व…

मानव रचना यूनिवर्सिटी के पहले दीक्षांत समारोह में प्रदान की गई डिग्रियां

फरीदाबाद Vinod Vaishnav |  मानव रचना यूनिवर्सिटी (एमआरयू) ने आज अपने कैम्‍पस में पहले दीक्षांत समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर…

मोबाइसी ने मानव रचना यूनि​वर्सिटी के कैम्पस में अपनी स्मार्ट साइकिलों की शुरुआत की

फरीदाबाद, 16 दिसंबर, 2017: गुडगांव की ग्रीन टेक स्टार्टअप मोबाइसी ने फरीदाबाद के मानव रचना यूनिवर्सिटी कैम्पस में अपनी डॉकलेस, स्मार्ट साइकिल्स की…