शिक्षा

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Posted by: | Posted on: April 25, 2018

सेक्स एजुकेशन क्यों ज़रूरी हैं बच्चो के लियें?

सेक्स हमारे देश में एक ऐसा विषय है जिसके बारे खुल कर बात करना तो दूर सोचना भी गन्दा काम माना जाता हैं जबकि हर कोई यह भूल जाता हैं कि इसी गंदे काम के कारण लोग इस दुनिया में आये हैं.

पहले के वक़्त में तो यह किसी पिशाच से कम नहीं था लेकिन अभी के समय में लोगो की सोच इस विषय को लेकर बदल रही हैं. अब सेक्स सिर्फ एक वासना पूर्ति के साधन के रूप में न लेकर एक शिक्षा के रूप में लोगो तक पहुचाया जा रहा हैं.

भारत में स्कूली शिक्षा के साथ ही सेक्स शिक्षा को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए कदम उठाएं गए, लेकिन आज भी देश के लोगों को सेक्स शिक्षा को अपनाना रास नहीं आया. इसलिए लोगों ने यौन शिक्षा का अच्छा खासा विरोध जताया.

बदलते भारत के साथ ही कई क्षेत्रों में भी परिवर्तन हुए है, इन्हीं परिवर्तनों के चलते कुछ परिवर्तन सही दिशा में हुए तो कुछ गलत दिशा में.इन्हीं परिवर्तनों के चलते सरकार ने हाल ही के दिनों में शिक्षा में भी अमूल-चूल परिर्वतन करने की कोशिश की.

इन परिवर्तनों के तहत सरकार स्कू्ली बच्चों की शिक्षा में छठीं क्लास से सेक्स शिक्षा को भी शामिल करना चाहती है, लेकिन भारत में सेक्स शिक्षा को लेकर खूब बवाल मचाया गया.

लोगों का मानना है कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन होने से भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

क्या आप जानते हैं आज के समय में सेक्स एजुकेशन का बहुत महत्व है.

यदि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन शुरू कर दी जाए तो इसका किशोरों को पथभ्रष्ट‍ होने से रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है बच्चों को सही रूप में पूर्ण सेक्स शिक्षा दी जाए. स्कूलों में यौन शिक्षा के माध्यम से न सिर्फ भविष्य में यौन संक्रमित बीमारियों से बचा जा सकता है बल्कि असुरक्षित यौन संबंधों से भी बचा जा सकता है.

बच्चों को सही उम्र में सेक्स एजुकेशन देने से उनके शारीरिक विकास के साथ ही मानसिक विकास भी पूरी तरह से होता है.

आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान में 27 से 30 फीसदी होने वाले एबॉर्शन किशोरी लड़कियां करवाती हैं, यदि उन्हें सही रूप में यौन शिक्षा दी जाएगी तो वे गर्भपात के जंजाल से आसानी से बच सकती हैं यानी बिन ब्याहें मां बनने से बच सकती हैं.

बढ़ती उम्र में बच्चे नई-नई चीजों को जानने के इच्छुक रहते हैं और आज के टैक्नोलॉजी वर्ल्ड़ में कुछ भी जानना नामुमकिन नहीं. यदि बच्चों को सही समय पर सही रूप में यौन शिक्षा नहीं दी जाएगी तो अपने प्रश्नों का हल ढूंढ़ने के लिए वे इधर-उधर के रास्ते अख्तियार करेंगे जो कि बच्चों के मानसिक विकास में बाधा डाल सकते हैं. भारत में सेक्स शिक्षा लागू होने के साथ-साथ अभिभावकों को भी इस ओर जागरूक होना होगा और अपने बच्चों को सही उम्र में यौन शिक्षा से सरोकार कराना होगा, तभी सेक्स शिक्षा का सकारात्मक प्रभाव दिखाई पड़ेंगे.

आज आप अपने परिवार या आसपास के लोगों को देखेंगे तो आप पाएंगे कि वे मैच्योर होने के बावजूद सेक्स के बारे में बात करने से कतराते हैं. इसका एकमात्र कारण यही है कि आज भी लोग सेक्स जैसे मुद्दे पर बात करने से कतराते हैं और उन्हें सेक्स के बारे में पूर्ण जानकारी भी नहीं है, ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अब तक भारत में सेक्स शिक्षा को स्कूलों में लागू करने के बारे में सोचा भी नहीं गया था.

इन सारी बातों से यह तो ज्ञात हैं कि सेक्स एजुकेशन हमारे लिए और हमारे समाज के लिए कितना ज़रूरी हैं लेकिन उससे कही अधिक वह हमारे बच्चों के लिए भी ज़रूरी हैं.

 

For More Info :- http://www.jkhealthworld.com/hindi/यौन-शिक्षा

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

कैसे बढ़े शिक्षा की गुणवत्‍ता : एक शिक्षक का दृष्टिकोण

शिक्षक समाज की सर्वाधिक संवदेनशील इकाई है। शिक्षक अपना काम ठीक तरह से नहीं करते- यह आरोप तो सर्वत्र लगाया जाता है। लेकिन यह विचार कोई नहीं करता कि उसे पढ़ाने क्यों नहीं दिया जाता ? आए दिन गैर-शैक्षिक कार्यों में इस्तेमाल करता प्रशासन, शिक्षकों की शैक्षिक सोच को, शैक्षिक कार्यक्रमों को पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। बच्चों को पढ़ाना-सिखाना सरल नहीं होता और न ही बच्चे फाईल होते हैं। प्रशासनिक कार्यालय और अधिकारीगण शिक्षा और शिक्षकों की लगातार उपेक्षा करते हैं। उन्हें काम भी नहीं करने देते। इसी कारण स्कूली शिक्षा में अपेक्षित सुधार सम्भव नहीं हो पा रहा है।

सुधार के लिए क्या करें
स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हमें स्कूलों के बारे में अपनी परम्परागत राय को बदलना होगा। अभी स्कूलों को कार्यालय समझकर, शिक्षकों को प्रतिदिन अनेक प्रकार की डाक बनाने और आँकड़े देने के लिए मजबूर किया जाता है। इससे बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान होता रहता है। बच्चे अपने शिक्षकों से सतत् जुड़े रहना चाहते हैं, विशेषकर प्राथमिक स्तर पर। अत: स्कूलों को कार्यालयीन कामकाज से वास्तव में मुक्त कर प्रभावी शिक्षण संस्थान बनाया जाना चाहिए।

विद्यालय बनाम सामुदायिक शिक्षण केन्द्र
हमारे शासकीय विद्यालय बाल शिक्षण (6-14 आयु वर्ग के बच्चों) के लिए कार्य कर रहे हैं। शिशु शिक्षण के लिए संचालित आँगनवाड़ी और प्रौढ़ शिक्षा के लिए कार्यरत सतत् शिक्षा केन्द्रों का सम्बंध विद्यालय से कहने भर को है। वास्तव में इन सभी के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है। यदि इन तीनों एजेंसियों को एकीकृत कर दिया जाए तो 3 से 50 वर्ष तक के लिए शिक्षण की बेहतर व्यवस्था सम्भव है|

यह भी जरूरी है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक और सतत शिक्षा केन्द्रों के प्रेरक को एक साथ मिल-बैठकर कार्य करने के लिए तैयार किया जाए। यदि तीनों एजेन्सी एकीकृत स्वरूप में कार्य करने लगे तो सम्भव है स्कूल की कार्यावधि 12 से 14 घण्टे प्रतिदिन तक हो जाए। साथ ही समुदाय के सभी वर्गों के लिए स्कूल में प्रवेश और सीखने के अवसर बढ़ सकते हैं।

अभी अधिकांश स्कूल अन्य सरकारी कार्यालयों की तर्ज पर  10 से 5 की अवधि में ही खुलते हैं। इस कारण से रोजगार में जुटे परिवारों के बच्चों के लिए वे अनुपयोगी सिध्द हो रहे हैं। स्कूल की समयावधि सरकारी नियंत्रण में होने के कारण बच्चों की उपस्थिति और सीखने का समय कमतर होता जा रहा है। स्कूली उम्र पार कर चुके किशोरों, युवाओं, महिलाओं और कामकाजी लोगों के लिए स्कूल के दरवाजे एक तरह से बन्द ही हैं। विद्यालय समाज की लघुतम इकाई के रूप में ”सामाजिक शिक्षण केन्द्र” के रूप में कार्य कर सकते हैं। इस परिकल्पना को साकार करने की दिशा में पहल किए जाने का दायित्व स्थानीय ”पालक शिक्षक संघ” पूरा कर सकते हैं। अगर समाज की जरूरत के चलते चिकित्सालय और थाने दिन-रात खुले रह सकते हैं, तो यह भी उतना ही आवश्यक है कि विद्यालय कम-से-कम 12-16 घण्टे जरूर खुलें।

 

शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक हो

शैक्षणिक सुधार में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। पाठयपुस्तकों और पाठयक्रम के अनुरूप प्रभावी शिक्षण, शिक्षकों की योग्यता, सक्रियता और पढ़ाने के कौशल पर निर्भर है। एक शिक्षक, एक साथ कितनी कक्षाओं के कितने बच्चों को भली-भाँति पढ़ा सकेगा, इस बारे में गम्भीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है।

आदर्श रूप में एक शिक्षक अधिकतम 20 बच्चों को ही ठीक प्रकार पढ़ा सकता है। वह भी तब, जब वे भी एक समान स्तर के हों। अभी व्यवस्था यह है कि एक शिक्षक 40 बच्चों को (और वे भी अलग-अलग स्तरों के हैं) पढ़ाएगा। अनेक स्कूलों में तो 70-80 से भी अधिक बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है। ऐसे में शिक्षक मात्र बच्चों को घेरकर ही रख पाते हैं पढ़ाई तो सम्भव ही नहीं। शिक्षक बच्चों को पढ़ा भी पाएँ, इस हेतु शिक्षक-छात्र अनुपात को व्यवहारिक बनाना होगा।

 

प्रशिक्षणशिक्षण और परीक्षण

स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षण विधियों, प्रशिक्षण और परीक्षण की विधियों में भी सुधार करने की जरूरत है। अभी शिक्षण की विधियाँ राज्य स्तर से तय की जाती हैं। कक्षागत शिक्षण कौशलों को या तो नकार दिया जाता है या उन्हें परिस्थितिजन्य मान लिया जाता है।

अच्छे प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण का दायित्व कर्तव्यनिष्ठ, योग्य और क्षमतावान प्रशिक्षकों को सौंपा जाना चाहिए। शिक्षकों के प्रशिक्षण को प्रभावी बनाने, शिक्षण में नवाचारी पध्दतियाँ विकसित करने सहित परीक्षण (मूल्यांकन) की व्यापक प्रविधियाँ तय कर उन्हें व्यवहारिक स्वरूप में लागू करने की दिशा में कारगर कदम उठाने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि हर प्रदेश में एक ”शैक्षिक संदर्भ एवं स्त्रोत केन्द्र” विकसित किया जाए।

 

शिक्षास्वास्थ्य और रोजगार मूलक परियोजनाएँ

शिक्षा के क्षेत्र में अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं। रोजगार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी शासकीय स्तर पर परियोजनाएँ और कार्यक्रम लागू किए गए हैं। मानव विकास के बुनियादी सूचकांक होते हुए भी इनमें तालमेल न होने के कारण इनकी गति अपेक्षित नहीं है। धन की गरीबी से ज्ञान की गरीबी का विशेष सम्बंध है। ग्रामीण दूरस्थ अँचलों में ज्ञान की गरीबी पसरी हुई है। जानकारी के अभाव में वे संसाधनों का उपयोग नहीं कर पाते। अनेक परियोजनाओं के बावजूद उनकी प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक चिकित्सा और बुनियादी रोजगार की प्रक्रियाएँ बाधित होती हैं। अब समय आ गया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए लागू परियोजनाओं को समेकित ढ़ंग से किसी सुनिश्चित क्षेत्र में लागू कर परिणामों की समीक्षा की जाए। अच्छे परिणाम आने पर उन्हें पूरे देश भर में लागू किया जाए। इस प्रकार हम अपने संसाधनों और मानवीय क्षमताओं का बेहतर उपयोग कर सकेंगे जिससे शिक्षा के गुणात्मक विकास की संभावनाएँ बढ़ेंगीं।

 

पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें

अभी वास्तव में यह ठीक प्रकार तय ही नहीं है कि किस आयु वर्ग के बच्चों को कितना सिखाया जा सकता है और सिखाने के लिए न्यूनतम कितने साधनों और सुविधाओं की आवश्यकता होगी। नई शिक्षा नीति 1986 लागू होने के बाद न्यूनतम अधिगम स्तरों को आधार मानकर पाठ्यपुस्तकें और पाठ्यक्रम तो लगातार बदले गए हैं, लेकिन उनके अनुरूप सुविधाओं और साधनों की पूर्ति ठीक से नहीं की गई है। यह सोच भी बेहद खतरनाक है कि पाठ्यपुस्तकों के जरिए हम भाषायी एवं गणितीय कौशलों और पर्यावरणीय ज्ञान को ठीक प्रकार विकसित कर सकते हैं। यथार्थ में पाठ्यपुस्तकें पढ़ाई का एक छोटा साधन मात्र होती हैं साध्य नहीं। कक्षाओं पर केन्द्रित पाठयपुस्तकों और पाठ्यक्रम को श्रेणीबध्द रूप में निर्धारित करना भी खतरनाक है। बच्चों की सीखने की क्षमता पर उनके पारिवारिक और सामाजिक वातावरण का भी विशेष प्रभाव पड़ता है, अत: सभी क्षेत्रों में एक समान पाठ्यक्रम और एक जैसी पाठ्यपुस्तकें लागू करना बच्चों के साथ नाइन्साफी है।

 

शैक्षिक उद्देश्य

स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए  हमें वर्तमान शैक्षिक उद्देश्यों को भी पुनरीक्षित करना होगा। शिक्षा, महज परीक्षा पास करने या नौकरी/रोजगार पाने का साधन नहीं है। शिक्षा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास, अन्तर्निहित क्षमताओं के विकास करने और स्वथ्य जीवन निर्माण के लिए भी जरूरी है। शिक्षा प्रत्येक बच्चे को श्रेष्ठ इंसान बनने की ओर प्रवृत्त करे, तभी वह सार्थक सिध्द हो सकती है। कहा भी गया है ”सा विद्या या विमुक्तये”। अभी पढ़े-लिखे और गैर पढ़े-लिखे व्यक्ति के आचरण और चरित्र में कोई खास अन्तर दिखाई नहीं देता। उल्टे पढ़-लिख लेने के बाद तो व्यक्ति श्रम से जी चुराने लगता है और अनेक प्रकार के दुराचरणों में लिप्त हो जाता है। यह स्थिति एक तरह से हमारी वर्तमान शैक्षिक पध्दति की असफलता सिध्द करती है। अतः यह जरूरी है कि शिक्षा के उद्देश्यों को सामयिक रूप से परिभाषित कर पुनरीक्षित किया जाए।

 

शिक्षकों को शिक्षक” के रूप में अवसर मिले

समान कार्य के लिए समान कार्य परिस्थितियाँ और समान वेतन की अनुशंसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में और मानव अधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 21, 22, और 23 में वर्णित होते हुए भी नाना नामधारी शिक्षक मौजूद हैं। एक ही विद्यालय में अनेक प्रकार के शिक्षकों के पदस्थ रहते सभी के मन में घोषित-अघोषित तनावों के कारण पढ़ाई में व्यवधान हो रहा है। इस परिस्थिति को गम्भीरता से समझे बगैर और परिस्थितियों में सुधार किए बगैर भला शिक्षण में सुधार कैसे होगा? शासन को सभी शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत शिक्षकों के लिए एक समान कार्यनीति, समान पदनाम, समान वेतनमान देने की नीति तय कर एक निश्चित कार्यावधि के बाद पदोन्नति देने का भी ऐलान करना चाहिए।

 

श्रेष्ठतम शैक्षिक कार्यकर्ता

शैक्षिक परिवर्तन के लिए शिक्षकों का मनोबल बनाए रखने और उत्साहपूर्वक कार्य करने की इच्छाशक्ति पैदा करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। अभी शिक्षा व्यवस्था में बालकों और पालकों की भागीदारी न्यूनतम है, इसलिए सभी शैक्षिक कार्यक्रम सफल नहीं हो पाते हैं। स्कूलों में भी जिस प्रकार समर्पित स्वयंसेवकों की आवश्यकता है, वे नहीं हैं। अत: यह आवश्यक है कि श्रेष्ठतम शैक्षिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जानी चाहिए।

 

शिक्षकों का मनोबल बढ़ाया जाए

समूची दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों में प्राथमिक शालाओं के शिक्षकों को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही ऐसी शिक्षा नीति बनाई जाती है जिसमें उनका मनोबल सदैव ऊँचा बना रहे। जब तक अनुभव जन्य ज्ञान, और कौशलों को महत्व नहीं दिया जाएगा तब तक ”बालकेन्द्रित शिक्षण” की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। बाल केन्द्रित शिक्षण के लिए कार्यरत शिक्षकों की दक्षता और मनोबल बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

यह आवश्यक है कि शिक्षकों को उनके व्यक्तित्व विकास की प्रक्रियाओं सहित ऐसे प्रशिक्षण संस्थानों में भेजा जाए जहाँ उन्हें अपने अन्दर झाँकने ,कुछ बेहतर कर गुजरने की प्रेरणा मिल सके। इस प्रशिक्षण उपरान्त उन्हें कार्यरत स्थलों पर ”ऑन द जॉब सपोर्ट” के रूप में ऐसे सहयोगी दिए जाएँ जो उनकी वास्तविक मदद करें। किसी ऐसी संस्था को इस दिशा में काम करने की जरूरत है जो सामाजिक बदलाव के लिए व्यापक दूरदृष्टि और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करने के लिए सहमत हो और उसके पास स्वयं के संसाधन भी उपलब्ध हों।

आज जरूरत इस बात की है कि किसी प्रकार पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया में परिवर्तन लाने के लिए विद्यालय प्रशासन, शिक्षकों और शैक्षिक कार्यक्रमों में तालमेल बनाया जाए। समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं को पहचान कर उनकी जरूरतों के अनुरूप निर्णय लेते हुए ऐसा वातावरण बनाने की आवश्यकता है जिसमें व्यवसायिक योग्यता में वृध्दि सुनिश्चित हो। शिक्षा के प्रशासन एवं प्रबन्धन में उत्तरदायी भूमिका निभाने वाले संस्था प्रधानों की नियुक्ति और प्रशिक्षण हेतु शिक्षा विभाग एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे अन्य संगठनों को शीघ्र कारगर कदम उठाना चाहिए। संस्था प्रधानों की भूमिका को सशक्त बनाए बगैर शिक्षा में सुधार की सम्भावनाएँ अत्यन्त क्षीण रहेंगी।

 

प्रशासनिक एवं प्रबन्धकीय व्यवस्थागत सुधार

शिक्षा प्रशासन की यह नियति बन गई है कि इसमें उच्च शिक्षा स्तर पर भी स्थायित्व नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर लागू राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और कार्ययोजना 1992 में स्वीकृत अखिल भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना आज तक नहीं हो पाई है। लगभग हर स्तर पर निर्णायक पदों पर नियुक्त प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शिक्षा क्षेत्र में आ रही गिरावट और असफलता के लिए उत्तरदायी नहीं माने जाते। हाँ, किसी छोटी-सी सफलता का श्रेय अवश्य हासिल करते नजर आते हैं। शिक्षा में सुधार के लिए कार्यरत शिक्षकों को समर्थन देने की दृष्टि से यह अत्यंत आवश्यक है कि शिक्षा के प्रबन्धन और प्रशासन को सुधारा जाए। म.प्र. शासन द्वारा वर्ष 2003 में गठित ”स्पेशल टास्क फोर्स” की अनुशंसाओं को लागू किए जाने की भी आज महती आवश्यकता है जो एक दस्तावेज में सिमट कर रह गई हैं। म.प्र. देशभर में सर्वप्रथम जन शिक्षा अधिनियम तैयार कर लागू करने वाले प्रदेश के रूप में है। क्रियान्वयन के स्तर पर जरूर अनेक कार्य अभी शेष हैं जिसमें प्रमुख कार्य सभी स्तरों पर कार्यरत शिक्षा केन्द्रों के संचालन हेतु मैनुअल (संचालन मार्गदर्शिकाओं) का सृजन और उन्हें लागू करना है, ताकि कार्यरत स्टाफ बेहतर प्रदर्शन कर सके। प्रदेश के सभी जनशिक्षा केन्द्रों को प्रबन्धन और प्रशासन के प्रति उत्तरदायी भूमिका सौंपते हुए जनशिक्षा केन्द्र प्रभारी को आहरण वितरण अधिकार दिए जाने चाहिए। यह अत्यंत आवश्यक है कि समग्रत: शिक्षा व्यवस्था को नियंत्रित किए जाने हेतु राज्य की शिक्षा नीति तैयार की जानी चाहिए। कार्यरत शिक्षकों की दक्षता का सम्मान और उनकी कार्यदक्षता का उपयोग किए जाने की दृष्टि से विभागीय दक्षता परीक्षा का आयोजन कर सभी को प्रन्नोत किया जाना चाहिए। अंतत: शैक्षिक सुधार के लिए अब हमें विचार करने की बजाय कर्तव्य की ओर बढ़ना होगा।

आज शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक सुधार की दृष्टि से शीघ्र सार्थक कदम उठाते हुए हमें ऐसी शिक्षण पध्दति और कार्यक्रम विकसित करने होंगे जो बच्चों के मन में श्रम के प्रति निष्ठा पैदा करें। समग्रत: एक ऐसा प्रभावी शैक्षिक कार्यक्रम बनाना होगा जिसमें –

  1. पाठ्यक्रम लचीला और गतिविधि आधारित हो, साथ ही बच्चों की ग्रहण क्षमता के अनुरूप भी।
  2. कक्षागत पाठ्य योजनाएँ, स्वयं शिक्षकों द्वारा तैयार की जाएँ और उन्हें पूरा किया जाए।
  3. राज्य की शिक्षा नीति निर्धारण में शिक्षाविदों और कार्यरत शिक्षकों को वास्तव में सहभागी बना कर सभी के विचारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए।
  4. जन भागीदारी समितियाँ (पालक शिक्षक संघ) प्रबन्धन का दायित्व स्वीकारें – शैक्षिक प्रशासन तंत्र भी शालाओं में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें। शिक्षण का अधिकार शिक्षकों को वास्तव में सौंपा जाए।
  5. शिक्षण विधियों में परिवर्तन करने का अधिकार शिक्षकों को हो, प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं।
  6. कक्षाओं में शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक किया जाए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में शैक्षिक सामग्री की पूर्ति और शिक्षकों की भर्ती की जाए।
  7. पाठ्यपुस्तकों की रचना स्थापित रचनाकारों की बजाय शिक्षकों और शिक्षा विशेषज्ञों के माध्यम से की जानी चाहिए, जो शैक्षिक दृष्टि से उपयुक्त हो।
  8. शैक्षिक सुधारों को लागू करने में संस्था प्रधानों और शिक्षकों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाए।
  9. शिक्षकों के सहयोग हेतु ”राज्य शिक्षक सन्दर्भ और स्त्रोत केन्द्र” स्थापित किए जाएँ।
  10.  विद्यालयों को सामुदायिक शिक्षण के लिए उत्तरदायी बनाया जाए।

By दामोदर जैन | जुलाई 27, 2012

Posted by: | Posted on: April 25, 2018

म वी एन विश्वविद्यालय के तत्वाधान में इंटरनेट ऑफ थिंग्स् विषय पर कार्यशाला का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया

( विनोद वैष्णव )| इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग द्वारा एम वी एन विश्वविद्यालय के तत्वाधान में इंटरनेट ऑफ थिंग्स् (IoT) विषय पर कार्यशाला का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया।इस अवसर पर कार्यशाला के मुख्य अतिथि गण सचिन भयाना जी (नेटवर्क ऑपरेशन टेक्नॉलॉजी मैनेजर, S.P.P. Sub System, Gurugram) और  जी.डी. शर्मा (पी.सी.बी इंजीनियर, ए.ई.आर.एफ. नोएडा) थे।कार्यशाला के संयोजक  आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि 250 छात्र व छात्राओं ने इसमें भाग लिया और उन्होंने इंटरनेट औफ थिंग्स के बारे में सीखा। उन्होंने बताया कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स् (IoT) भविष्य की एक ऐसी तकनीक है जो वस्तुओं की काम करने की दक्षता व कम ऊर्जा से अधिक काम कैसे किया जा सकता है और करवाया जा सकता है। इससे उन वस्तुओं में कृत्रिम बुद्धि का निर्माण करके और कंप्यूटर नेटवर्किंग को मिलाकर, समाज को सुरक्षित और आरामदायक बनाया जा सकता है।इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री सचिन भयाना जी ने बताया कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां हम सब इस तकनीक से पिछले वर्षों का कृषि डाटा एकत्रित करके और मौसम विभाग से आने वाले समय में मौसम की जानकारी को एकत्रित करके बता सकते हैं कि किसान कब और कैसे फसलों की पैदावार को बढ़ाया सकता है।पुनः इस अवसर पर जी डी शर्मा  ने बताया कि हम इस तकनीक से समाज व व्यक्ति के जीवन में किसी भी क्षेत्र को संयमित और संतुलित कर सकते हैं, जैसे परिवहन किसी भी समाज की मुख्य व्यवस्था होती है और ज्यादातर हमारे यहां परिवहन में संतुलन नहीं है। IoT के प्रयोग से परिवहन के क्षेत्र में समय और लागत को एक चौथाई तक कम किया जा सकता है, जिससे परिवहन और ज्यादा तेज और सुरक्षित हो सकता है।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो. (डॉ.) जे.बी. देसाई जी ने विभाग की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस प्रकार के रोजगारपरक विषयों पर कार्यशाला करके बच्चों में नए और आधुनिक विचारों का जन्म होता है और यही बच्चे विश्व गुरु भारत की संकल्पना में अपना योगदान देते हैं।इस अवसर पर कुलसचिव  डॉ. राजीव रतन जी ने कहा IoT के माध्यम से हम दैनिक जीवन की छोटी से छोटी बातों को कम से कम समय में अधिक दक्षता से कर सकते हैं।कार्यशाला के अंत में ई.सी.ई विभाग की प्रवक्ता प्रियंका कौशिक  ने कार्यशाला में उपस्थित और सम्मिलित सभी अतिथियों,संकायाध्यक्षौं, विभागाध्यक्षों,अध्यापक गणों, छात्र छात्राओं व समस्त कर्मचारी गणों का धन्यवाद किया जिनके सहयोग से यह कार्यशाला की जा सफलतापूर्वक सम्पन्न की जा सकी

Posted by: | Posted on: April 24, 2018

विश्व पुस्तक दिवस एक वार्षिक उत्सव है, जो प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण विश्व में २३ अप्रैल को मनाया जाता है

( विनोद वैष्णव )| विश्व पुस्तक दिवस एक वार्षिक उत्सव है, जो प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण विश्व में २३ अप्रैल को मनाया जाता है | इस दिवस को यूनेस्को ने पुस्तकों के पठन के रूप में  विश्वस्तरीय उत्सव के रूप में मनाया, जिससे प्रत्येक विद्यार्थी/बच्चा पढ़कर खोज और अन्वेषण कर सके | “पठन” कल्पना को बढ़ाने के साथ विश्व की समस्याओं को समझकर नई दृष्टिकोण स्थापित कर विविध सम्भावनाएं जगाने का कार्य करती है | इसलिए यह दिवस महत्वपूर्ण है ताकि प्रत्येक विद्यार्थी और युवक वर्ग अपनी पसंद की किताबों को पढ़ने और उनका आनन्द लेने में सक्षम हों |इस साल विश्व पुस्तक दिवस  मेड इज़ी स्कूल, बंधवाडी, गुरुग्राम ने बंधवाडी गाँव में स्थित आंगनबाड़ी को तोफे के रूप में एक “पठन स्थान/कार्नर” दिया | मेड इज़ी स्कूल बंधवाडी के विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक और स्वेच्छा से अपना सहयोग दिया | यह पठन स्थान/कार्नर छोटे बच्चों की रूचि को ध्यान में रखते हुए बनाया गया हैं, जिसमें हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओँ की किताबें बहुतायत में हैं | विद्यार्थी प्रत्येक दिन इन पुस्तकों का आनन्द ले सकते हैं | मेड इज़ी विद्यालय से प्रत्येक सप्ताह एक शिक्षिका इस आंगनबाड़ी में जाकर एक किताब इन बच्चों के साथ पढ़ेंगी |आंगनबाड़ी की शिक्षिका ने अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए कहा कि “यह सबसे अच्छा उपहार  है और यह पठन कार्नर विद्यार्थियों की पठन से सम्बन्धित ख़ुशी,खोज और जिज्ञासा को अवश्य बढ़ावा देगा |इस उत्सव की मुख्यातिथि “ ज्योति सिंह” जो की मेड इज़ी ग्रुप की प्रबंध संचालिका हैं, इन्होंने बच्चों के साथ कहानी का एक रुचिपूर्ण सत्र लिया | श्री मती ज्योति सिंह ने कहा “हम सदैव ही इन बच्चों को सहयोग करते रहेंगे और यह आवश्यक है कि ये बच्चे भी दूसरे अन्य बच्चों की तरह अध्ययन में आनन्द ले सकें “|  मेड इज़ी स्कूल ने हाल में ही एक स्वास्थ्य जागरूकता कैम्प का आयोजन किया था, जो बंधवाडी गाँव की महिलाओं और बच्चों से सम्बन्धित था | यह आयोजन विश्व स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष्य के रूप में  किया गया था

Posted by: | Posted on: April 23, 2018

बी.एन.शिक्षण संस्थान में आयोजित की गयी चित्रकला प्रतियोगिता

फरीदाबाद ( विनोद वैष्णव )। गढ़वाल सभा द्वारा संचालित बी .एन. पब्लिक स्कूल की प्रमुख शाखा के प्रांगण में ‘पृथ्वी बचाओ व जल बचाओ’ को लेकर चित्रकला प्रतियोगिता का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें विद्यालय की सभी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता का आयोजन प्रधानाचार्या  बी के यादव तथा समस्त अध्यापकों के नेतृत्व में किया गया। इस अवसर पर गढवाल सभा के अध्यक्ष श्री देव सिंह गुंसाई, महासचिव सुरेन्द्र रावत, उपाध्यक्ष एम एस असवाल, कोषाध्यक्ष योगेश बुढाकोटि, राजू रावत, महिन्द्र बिष्ठ, सहित दिग्विजय सिंह रणावत मु�य रूप से उपस्थित रहे और सभी ने बच्चो का उत्साह बढाया। इस अवसर पर अध्यक्ष  देव सिंह गुंसाई ने कहा कि बी.एन.शिक्षण संस्थान बच्चो के सर्वागीण विकास के लिए प्रयासरत है और उनकी सभी शिक्षण संस्थाओ में बच्चो को शिक्षा के साथ साथ खेेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों सहित अन्य तरह की गतिविधियों का प्रशिक्षण अनुभवी शिक्षकों द्वारा दिया जाता है ताकि स्कूल से जाने वाले छात्र-छात्राएं हर मुकाम पर कामयाब बन सके।
प्रधानाचार्या  बी.के.यादव ने बताया कि इस प्रतियोगिता के माध्यम से सभी बच्चों ने जल एवं पृथ्वी के बिना जीवन संभव नही है का संदेश दिया और अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया। श्री यादव ने बताया कि इस प्रतियोगिता में पांचवी कक्षा की कोमल सिंह, आठवी की मनोरमा व दसवी के दिपंाशु ने प्रथम स्थान व बारहवी कक्षा की दिखा ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी तरह द्वितीय स्थान पर चौथी कक्षा की यांशिका, सातवी की रिफत, नौकव की स्नेहा आहूजा तथा 11वीं की प्रेरणा नासवा रही। उन्होंने बताया कि इसी तरह तृतीय स्थान पर चौथी कक्षा की भूमि, सातवी कक्षा की खुशी सिंह, नौवी कक्षा की चरणजीत कौर तथा बाहरवी कक्षा की जागृति रही। तीसरी कक्षा की जैनप सैफी औरे दूसरी कक्षा की दीपिका कुमारी को अध्यक्ष श्री देव सिंह गुंसाई, दिग्विजय सिंह राणावत द्वारा सांत्वना पुरस्कार से स�मानित किया गया। यह प्रतियेागिता चित्रकला अध्यापिका कल्पना सिंह के सहयोग से स�पन्न हुई। इस अवसर पर प्रधानाचार्या डा. बी के यादव ने सभी अध्यापकगण व विद्यार्थियों को मुबारकबाद दी।

Posted by: | Posted on: April 22, 2018

सतयुग दर्शन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान में पहला आशीर्वाद समारोह आयोजित किया गया

( विनोद वैष्णव ) |सतयुग दर्शन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान में इस सप्ताह के अंत में अपने परिसर में अविस्मरणीय उत्सव आयोजित हुआ । आशीर्वाद समारोह शनिवार, 21 अप्रैल, 2018 को आयोजित किया गया , जहां स्नातक छात्रों को डिग्री प्रदान की गई । समारोह के मुख्य अतिथि माननीय  साजन जी, सलाहकार, सतयुग दर्शन ट्रस्ट (रजिस्टर्ड ) थे ।मुख्य अतिथि और स्नातक छात्रों का स्वागत करने के लिए कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक, डॉ भूपेश कुमार सिंह और डीन(ऐकेडमिक) डॉ एन जे डेम्बी उपस्थित थे। उद्घाटन समारोह दीपक प्रज्वलन के साथ शुरू हुआ । सजन जी ने छात्रों को डिग्री प्रदान की और उन्हें अपने आशीर्वचन के साथ लाभान्वित किया। उन्होंने छात्रों को सच्चाई के मार्ग का पालन करने और कभी भी अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं खोने के लिए प्रोत्साहित किया । उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे करियर की तलाश में नैतिक मूल्यों को ना खोएं।अपने स्वागत भाषण में, डॉ भूपेश कुमार सिंह ने छात्रों और संकाय के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने अपनी दयामयी उपस्थिति के लिए मुख्य अतिथि का धन्यवाद किया। अध्यक्ष कैलाश ढिंगरा  ने भी छात्रों की सराहना की और उनके सफल भविष्य के लिए कामना की।

Posted by: | Posted on: April 18, 2018

मुकबधिर विद्यार्थियों को स्कूल बैग, कापियां, पेंसिल आदि स्टेशनरी वितरित की गई

फरीदाबाद ( विनोद वैष्णव )। मानव जनहित एकता परिषद ने डबुआ कॉलोनी में एसोसिएशन फॉर द हैंडीकैप के मुक बधिर विद्यार्थियों को स्कूल बैग, कॉपी, पेंसिल, रबड़, शॉपनर बिस्कुट आदि वितरित किए। कार्यक्रम के आयोजक सचिन तंवर ने कहा कि जरूरतमंदों की मदद करना बहुत बड़ा पुण्य का कार्य है। अगर हमारी थोड़ी सी मदद से किसी की जिंदगी बन जाए इससे बड़ा कोई परोपकार नहीं हो सकता। कार्यक्रम में मुख्य रूप से संजीव कुशवाहा, अंकुर सिंह, एस. एन. सिंह, मनीष शर्मा, धर्मेंद्र पटेल, मनोज पटेल, मनजीत सिंह, विनोद सिंह, सुदेश ओबराय, किशन जीत डंग, संजीव तंवर, वीरेंद्र जयसवाल, हन्नी बख्शी, गीता मोर्य आदि उपस्थित थे।
Posted by: | Posted on: April 17, 2018

ड्रैगन लर्न.इन कॉम्पिटिशन की ओलंपियाड प्लस प्रतियोगिता दिल्ली-एनसीआर में  

फरीदाबाद ( विनोद वैष्णव )|ड्रैगन लर्न.इन   ने ओलंपियाड  “प्लस”, 16 अप्रैल को डीपीएस फरीदाबाद में एक संक्षिप्त सांस्कृतिक प्रोग्रामर के  साथ   शुभारंभ किया।   इसके बाद सम्मानित  अतिथि ने एक इंटरएक्टिवव्हाइटबोर्ड पर ‘शुरुआत’ बटन दबाया, देश भर के सभी उपकरणों पर प्रतियोगिता शुरू कर दिया। नई ओलंपियाड प्लस में खेल के रूप में मजेदार और इंटरैक्टिव कार्य होते हैं। यह प्रतियोगिता  छात्रों को आउट ऑफ़ द बॉक्स सोचने के लिए प्रेरित करेगी।    अद्वितीय ऑनलाइन प्रारूप प्रत्येक बच्चे को उनके स्तर के ज्ञान, सामाजिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि के बावजूद भाग लेने की अनुमति देता है।इस प्रतियोगिता के आयोजन का मकसद गणित में सामान्य दिलचस्पी जगाना था। तर्कपूर्ण सोच, एकाग्रचित्त होने और कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के मकसद से प्रतियोगिता के इंटरएक्टिव टास्क को बच्चों को पसंद आने वाले गेम के फॉर्मेट में बनाया गया है, जिससे बच्चों की मैथ्स में दिलचस्पी पैदा हो और उनमें रचनात्मक  सोच का विकास हो।ड्रैगन लर्न.इन  की वेबसाइट पर छात्र प्रतियोगिता में एंट्री कर सकते हैं। यह पूरी तरह निशुल्क है। इस एंट्री की स्कूल टीचर जांच सकेंगे। लॉगिन और पासवर्ड चेक कर सकेंगे और छात्रों की ओर से दी गई दूसरी जानकारी का भी परीक्षण करेंगे। मेन राउंड में किसी भी दिन प्रतियोगिता अवधि में छात्रों के पास टास्क पूरे करने के लिए कुल 60 मिनट का समय होगा। सिस्टम अपने आप रिजल्ट कैलकुलेट कर लेगा। स्टूडेंट और टीचर प्रोफाइल में प्रतियोगिता के बाद रिजल्ट अपने आप जारी कर दिया जाएगा। मेन राउंड पूरा होने के बाद अगले दिन पुरस्कार दिए जाएंगे। सभी छात्र मेन राउंड में भाग ले सकेंगे। उन्हें केवल कंप्यूटर या मोबाइल की जरूरत होगी, जिसमें इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध हो।डॉ. इंदु कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, एच ओ डी- आईसीटी-आईसीटी  और प्रशिक्षण विभाग  सी आई ई टी,  एन सी ई आर टी,   इस अवसर के लिए मुख्य  अतिथि थे। उन्होंने बच्चों के साथ बातचीत करने के महत्व पर बल दिया उन्होंने यह भी कहा कि ”   ओलंपियाड प्लस में भाग लेने वाले  बच्चों  के लिए गणित   एक गेम की तरह बन जाएंगे  । उन्होंने बच्चों को इस प्रतियोगिता में सफल होने के लिए  कामना की”प्रोफेसर ए.के. राजपूत, सम्मानित अतिथि ने आगे कहा कि ओलंपियाड प्लस केवल सीखने के लिए एक मंच प्रदान नहीं करेगा बल्कि बच्चों को और अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुकाबले अपनी क्षमता का आकलन करने का मौका भी देगा।

 ड्रैगन लर्न.इन  के बारे में

ड्रैगन लर्न.इन  सबके अनुकूल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हैजहां पूरे भारत के छात्र गणित की इंटरएक्टिव स्टडी करते हैं। सीखने की यह प्रक्रिया इंटरएक्टिव अभ्यास को पूरा करने पर आधारित है, जो स्कूल के सिलेबस के अनुसार हो और जो छात्र की किसी भी चीज को रटने की जगह विषय का कॉन्सेप्ट समझने पर आधारित हो। छात्रों को दिए जाने वाले टास्क वास्तविक जिंदगी से मिलते-जुलते हैं। ड्रैगन लर्न.इन  छात्रों के साथ लगातार संवाद कायम करता है। यह सिस्टम छात्रों की क्रियाओं के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देता है। छात्रों के सही उत्तर देने पर यह उसकी प्रशंसा करता है और उन्हें नए टास्क का सुझाव देता है,जबकि गलत उत्तर देने पर वह उनके सवालों पर लगातार स्पष्टीकरण देता है और स्टूडेंट को अपने आप सही फैसला करने में मदद देता है। इस कोर्स में पहली से पांचवी कक्षा तक का कॉन्टेंट शामिल किया गया है।

Posted by: | Posted on: April 16, 2018

अग्रवाल वैश्य समाज स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन एवं अग्रवाल वैश्य समाज युवा इकाई की बैठक

रानियां( विनोद वैष्णव )। युवा वर्ग राजनीति को हीन दृष्टि से न देखकर उसमें ज्यादा से ज्यादा भागीदारी करें क्योंकि राजनीति देश व समाजसेवा ही बल्कि कैरियर का अच्छा माध्यम भी है। ये बात आज अग्रवाल वैश्य समाज स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन एवं अग्रवाल वैश्य समाज युवा इकाई की बैठक में आर्गेनाईजेशन के प्रदेश अध्यक्ष नवदीप बंसल ने कही। उन्होंने कहा कि देश की तरक्की के लिए युवाओं को सकारात्मक ढंग से राजनीति के प्रति सोच बदली होगी ताकि राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका तय हो सकें। श्री बंसल ने कहा कि अगर छात्र जीवन से ही बच्चों के मन में राजनीति के गुण पैदा किए जाएं तो वास्तव में राजनीति के क्षेत्र में बड़े होकर वह काफी आगे बढ़ सकते हैं। नवदीप बंसल ने इस दौरान आरक्षण के मुद्दें पर बोलते हुए कहा कि आरक्षण जातिगत न होकर आर्थिक आधार पर होना चाहिए। बैठक में अपना संबोधन देते हुए सिरसा लोकसभा के युवा अध्यक्ष पुनीत बंसल ने अपना संबोधन देते हुए कहा कि जब भी बदलाव आता है तो युवा ही लेकर आते हैं और आज वैश्य समाज के युवा वर्ग को राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने का काम करना होगा। पुनीत बंसल ने कहा कि युवा अतीत और वर्तमान की कड़ी होती है, अगर हम इस बात को मान लें, तो युवावर्ग की भाषा को समझना आसान हो जायगा। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपनी जिम्मेवारी समझते हुए अच्छा नागरिक बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी दलों की युवा इकाईयों में अब वैश्य समाज के युवा नजर आने लगे हैं, यह अच्छी बात है। इस मौके पर पुनीत बंसल ने अपनी युवा लोकसभा इकाई का विस्तार व रानियां विधानसभा टीम का गठन भी किया। उन्होंने बताया कि सिरसा लोकसभा इकाई में लविस बंसल को उपाध्यक्ष, रोहित गर्ग नरवाना को महासचिव, कशिश गुप्ता को सहसचिव नियुक्त किया गया है। इसके अलावा रानियां विधानसभा टीम का गठन करते हुए भिवानी बंसल को अध्यक्ष, नरेश गोयल व अमन बंसल को उपाध्यक्ष, कुनाल सिंगला को महासचिव, तपिन जिंदल को संयुक्त सचिव तथा मुकेश बंसल को कोषाध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई है। इस अवसर पर आकाश चाचाण बंसल, आशुतोष बंसल, सचिन गोयल, गगन सिंगला, देवी लाल गोयल, हिमांशु गोयल, हैन्नी जिंदल, दीपांशु जिंदल, भरत गर्ग सहित अनेक युवा उपस्थित थे।

Posted by: | Posted on: April 16, 2018

श्री सिद्धदाता आश्रम और उद्योग मंत्री विपुल गोयल की तरफ से संत नगर में चलाया सफाई अभियान

फरीदाबाद( विनोद वैष्णव ) :  फरीदाबाद सही मायनों में स्मार्ट सिटी तभी बन पाएगा जब हम स्वच्छ फरीदाबाद का निर्माण कर पाएंगे। ये विचार युवा बीजेपी नेता अमन गोयल ने संतनगर कॉलोनी में व्यक्त किए जहां उन्होने श्री सिद्धदाता आश्रम और उद्योग मंत्री विपुल गोयल की तरफ से चलाए गए सफाई अभियान का शुभारंभ किया। उन्होने इस मौके पर संतनगर में सफाई अभियान चलाने के लिए सिद्धदाता आश्रम लक्ष्मी नारायण दिव्य धाम की नारायणी सेना का आभार व्यक्त किया। उन्होने कहा कि सरकार और जनभागेदारी के साथ फरीदाबाद को स्वच्छ और स्मार्ट सिटी बनाने के प्रयास युद्ध स्तर पर जारी हैं। उन्होने कहा कि फरीदाबाद विधानसभा के सभी पार्कों के सौंदर्यकरण का कार्य जारी है। अमन गोयल ने सभी से प्लास्टिक का इस्तेमाल ना करने की भी अपील की । उन्होने कहा कि पॉलिथीन हमारे लिए सुविधा से ज्यादा भक्षासुर बन गया है ,जिससे मुक्ति के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। उन्होने कहा कि इस तरफ के सफाई अभियान चलाने के साथ हर नागरिक को खुद भी स्वच्छता सिपाही की तरह काम सफाई का ध्यान रखने की जरूरत है । इस मौके पर पार्षद छत्रपाल, सतपाल शर्मा, पवन शर्मा, राहुल चावला, रोहित सिंधवानी, नितिन गोंसाई, ज्ञानेंद्र शर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।