वसुन्धरा परिसर में आहारोत्सव मनाया गया

(विनोद वैष्णव ) | भुपानी लालपुर रोड स्थित सतयुग दर्शन वसुन्धरा जो हाथ में आता है वह खा लेता ह परन्तु उसका हमारीे दैनिक दिनचर्या एवं शरीर पर 1या असर होगा? इससे बेखबर हैं। परिणामस्वरूप मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इसी समस्या को दृष्टिगत रखते हुए सतयुग दर्शन वसुन्धरा में परिसर ऐसे आयोजन आयोजित किये जाते हैं जिसमें सात्विक आहार की महत्ता के साथ-साथ पारिवारिक एकता को भी मजबूत बनाए रखने के प्रति सजनों को जागरुक किया जाता है। ऐसा ही एक आयोजन आहारोत्सव के रूप में रविवार को मनाया गया जिसमें दिल्ली शहर के लोगों को सात्विक भोजन बनाने एवम सपरिवार भोजन खाने के बारे में अवगत कराया गया। आज के युग में किस तरह का सात्विक एवम पौष्टिक भोजन उपयोगी है, यह जानकारी हंसते-खेलते दी गयी। लगभग 300 सजनों ने इस पारिवारिक आहारोत्सव में भाग लिया।अन्त में सतयुग दर्शन ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने अपने वक्तव्य में बताया कि हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में आहार की अहम भूमिका है। एक पुरानी कहावत भी है कि च्च्जैसा खाए अन्न वैसा बने मनज्ज् यानी हम जिस प्रकार का खाना खाएंगे, हमारा मन वैसा ही बनेगा। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि मन पर नियन्त्रण रखने के लिए आहार का ठीक होना अत्यन्त आवश्यक है। आहार की तीन श्रेणियां होती हैं- राजसिक आहार- जिसमें तीखे मसाले, ज्यादा चटपटा, आदि, जिससे मन अत्यन्त चंचल हो जाता है, दूसरा तामसिक- रात्रि का रखा हुआ बासा खाना, मादक पदार्थों एवं मांस इत्यादि, जिससे प्राणी आसुरी प्रवृति वाला हो जाता है। तीसरा सात्विक आहार- जिसमें पौष्टिक, संतुलित व सत्य रस युक्त होता है जो न केवल हमारेे स्वास्थ्य को ठीक रखता है बल्कि हमारे स्वभावों की कंचनता को भी यथासंगत बनाए रखता है।अत: सात्विक आहार ही सर्वोत्तम आहार है जो शरीर के तापमान को संतुलित बनाए रखने में सहयोगी सिद्ध होता है। वास्तव में आहार ही शरीर है और शरीर ही आहार है। भोजन सर्वप्रथम ईश्वर को समर्पित करें तत्पश्चात ग्रहण करें।अन्त में समस्त भारतवासियों के लिए सन्देश दिया कि – च्च्अपने आहार की महत्वता को भली-भांति समझते हुए अपने परिवार को स्वस्थता की खुशियों से महका दैं।

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