अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंतीबाई पर लोधी राजपूत जन कल्याण समिति द्वारा बलिदान दिवस समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया गया

फरीदाबाद( विनोद वैष्णव )। अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी चौक पर लोधी राजपूत जन कल्याण समिति रजि फरीदाबाद द्वारा बलिदान दिवस समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में विधायक श्री नगेन्द्र भडाना, भाजपा नेता सतीश फागना,अजेन्द्र राजपूत, निजी सहायक, माननीय उमाश्री, भारती केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार, संस्थापक लाखन ङ्क्षसह लोधी, अध्यक्ष रूप सिह लोधी, एवं उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने पुष्प अर्पित कर श्रृद्धाजंलि दी और दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम की शुरूआत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता अमरजीत रन्धावा ने की व मंच संचालन उमेश कुण्डु द्वारा किया गया। इस अवसर पर संस्थापक लाखन सिंह लोधी ने शहीद की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महारानी का जन्म 16 अगस्त 1831 को मनकेडी के जमीदार राव जुझार ङ्क्षसह के यहां हुआ था। इनका विवाह रामगढ के राजा विक्रमादित्य के साथ हुआ था इनके दो पुत्र अमान सिंह और शेर ङ्क्षसह हुए। राजा विक्रमदित्य अत्याधिक धार्मिक प्रवृतित के होने के कारण अंग्रेजो ने अयोग्य ठहराने का कुचक्र रचा। मई 1857 में राजा का स्वर्गवास हो गया अब सारी राज्य की बागडौर रानी के हाथो में थी। जगह जगह स्वतंत्रता की आग फैल चुकी थी रानी ने अंग्रेजो से एकजुट होकर संग्राम करने के लिए क्रांति का संदेश जमीदारो, मालगुजारो, मुखियो को निम्र प्रकार पत्र भेजे। कागज का टुकड़ा और सादा कांच की चूड़ी भिजवाई देश की रक्षा करो या चूडी पहनाकर घर में बैठो। तुम धर्म ईमान की सौगन्ध है। रानी ने अपने राज्य से अंग्रेज अधिकारियों को भगा दिया। जिसका उल्लेख श्री ध�मन सिंह की कृति अवंतीबाई काव्य रानी के समकाली मदनभात के छन्दो में, अंग्रेज एफ.आर.आर रैडमैन, आईसीएस द्वारा सन 1912 में स�पादिक मण्डला गजेटियर श्री वृन्दावन कलाल वर्मा के उपन्यास, रामगढ़ की रानी सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रकाशित महिलाएं और स्वराज पर पृष्ठ 65 पर इसी मंत्रालय द्वारा सन सन्तावन के भूले बिसरे शहीद के पृष्ठ 81 पर लेखिका उषा चन्द्रा का कथन है केप्टन ब्रंाडिगंटन आक्रमण के लिए आगे बढ़ा की और देशद्रोही रीवा नरेश ने अंग्रेजों का साथ दिया। मेजर अर्थकिन द्वारा जबलपुर पत्र व्यवहार केस की फाईल 10 और 33/1857 में लिखा है कि शंकर शाह की मृत्यु से कू्र द्ध लगभग 4000 विद्रोही रानी के साथ हो गये हैं। रानी ने मण्डला राज पर घेरा डाल दिया। किसी प्रकार ब्रंाडिगंटन अपनी जान बचाकर भाग गया। उसने पुन: अपने साथ जनरल हुईट लॉक, ले�िटेनेंट वार्टन, ले�िटनेंट कालवर्न को सेनाओं सहित बुलाया तथा रीवा नरेश ने अंग्रेजों का साथ दिया। किले को घिरा देख रानी देवरागढ की पहाडिय़ों में निकल गयी और 18 दिनो तक छापामार युद्ध चला। अंत में रानी के बाये हाथ में गोली लगी समस्त सेना धीरे लड़ते हुए शहीद हो चली थी। रानी ने अन्त में स्वयं की कटार से 20 मार्च 1858 को आत्म बलिदान कर देश पर शहीद हो गयी। इस अवसर पर मीनू शर्मा और मोनिका राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता भारत को इन बेटियों को आज बलिदान दिवस पर लोधी राजपूत जन कल्याण समिति रजि फरीदाबाद द्वारा शहीद की प्रतिमा भेंट कर स�मानित किया गया। इस अवसर पर लाखन ङ्क्षसह लोधी, रूप सिंह लोधी, अनार सिंह लोधी, नरेन्द्र लोधी, ओमप्रकाश, पूर्ण सिंह लोधी, ओमकार सिंह लोधी, महीपाल लोधी, मुकेश लोधी, अ.भा. हिन्द महासभा से भुवनेशवर शर्मा, जगविजय वर्मा, डौली चौधरी, अ�िबका शर्मा, देव मानव ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष संगीता रावत, संतोष शर्मा, बिजेन्द्र गोला, गिर्राज लोहिया, लच्छू भैया, प्रदीप राणा, सुरेश माथुर, सैन समाज, पूजा यादव,सुरेश चौहान, सुरेन्द्र दत्त शर्मा, यशोदा रावत, अलका आर्या, सीतराम, धर्मपाल लोधी, अर्जुन सिंह, लेखराज, महेन्द्र लोधी, विजयपाल सिंह लोधी आदि मौजूद रहे।

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