फरीदाबाद (पिंकी जोशी) : डीएवी शताब्दी महाविद्यालय में आर्य समाज की 150वें स्थापना दिवस पर “स्वामी दयानंद सरस्वती का वैदिक दर्शन” विषय को लेकर आयोजित संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के चतुर्थ सत्र में विश्वभर के विद्ववानों, आचार्यों, आर्यजनों व शोधार्थियों ने स्वामी जी के व्यक्तित्व, विचारधारा, कार्यों, कृतियों, अनुयायियों, जीवनयात्रा, आदि पर चिंतन-मनन, यशोगान किया | चतुर्थ सत्र के मुख्य अतिथि व आर्य समाज ध्वज को देशभर में फैलाने वाले आर्य प्रतिनिधि सभा, डीएवी कॉलेज प्रबंधकर्तृ समिति, नई दिल्ली के सत्यपाल आर्य ने स्वामी जी के समानता भाव को प्रेषित किया जिसमें स्त्री शिक्षा, पुरुष समान अवसर प्राप्ति, जाति प्रथा उन्मूलन, शिक्षा का मौलिक अधिकार, जैसे विषय शामिल रहे | मुख्य वक्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय, संस्कृत विभाग के प्रो वेद प्रकाश ने जीवन में होने वाले भ्रमों को लेकर लिखे भ्रम महाकाव्य की रचना और उसमें वर्णित विभिन्न भ्रमों को विस्तार से बताया | सत्राध्यक्ष प्रो आचार्य बलवीर, एमडीयू, रोहतक ने बताया कि हमें अधिक से अधिक समय विद्या अर्जन में लगाना चाहिए और जितना आप वेदों को पढोगे उतना आनंद ही आनंद अनुभव करोगे | पंचम सत्र के अध्यक्ष प्रो कमलेश चौकसे, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद ने दर्शन का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि दर्शन वह दृष्टि है जिसके जरिये हम स्वयं को बाकि अन्य लोगों से अलग रख पाते हैं |
मुख्य वक्ता डॉ. प्रियंका आर्य, जम्मू विश्वविद्यालय ने स्वामी जी द्वारा वेदों में लिखित बातों की वैज्ञानिक प्रमाणिकता को जांचने की आवश्यकता को समझाया | वेदों को तभी स्वीकारें जब वो सत्य और सिद्धांत पर आधारित हों | विशेष वक्ता पुष्पेंद्र जोशी, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला ने सांख्य, भागवत खंडनं, अद्वैत खंडनं, व्यवहार भानु जैसी कृतियों को संदर्भ में रखते हुए स्वामी जी के व्यावहारिक ज्ञान तथा 16 संस्कारों को साझा किया | डॉ. श्रुतिकांत ने बताया कि सभी विषयों में पहले समस्या फिर उसके समाधान की बात की जाती है परन्तु वेदों में समाधान पहले है | वेदों में कृषि, पर्यावरण, विज्ञान जैसे विषयों के साथ इस सृष्टि के सभी विषय समाहित हैं जिनकी उत्त्पत्ति वेदों के भी बाद हुई | डॉ. रामचंद्र, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने भी स्वामी जी के वैदिक चिंतन को समझाया | डॉ. कुलदीप सिंह आर्य, डीएवी कॉलेज, जालंधर ने सत्यार्थ प्रकाश के अध्धयन के लाभों के रूप में ईश्वर के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्ति, भक्ष्य-अभक्ष्य भेद, वेद -संस्कृत का ज्ञान, गृह क्लेश निवारण, सर्व शिक्षा की आवश्यकता, हिंदी भाषा का प्रचार, आदि को बतलाया | सत्राध्यक्ष, सत्यप्रिय आर्य, जम्मू विश्वविद्यालय, ने सनातन विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि सनातन का अर्थ ईश्वर है और स्वामी जी ने वेदों को ही सनातन बताया है |
समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ धर्मदेव विद्यार्थी, निदेशक, हरियाणा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, पंचकूला ने गुरुदत्त विद्यार्थी के स्वामी जी से मिलने की ललक व स्वामी जी के देहावसान के सातवें दिवस पर उनके द्वारा स्वामी जी के आदर्शों को लेकर लाहौर में डीएवी स्कूल खोलने की घोषणा पर जनमानस के उमड़े सैलाब और दान को व्याखित किया | विशेष वक्ता एटलांटा से जुड़े, आर्य प्रतिनिधि सभा अमेरिका के पूर्व अध्यक्ष, विश्रुत आर्य ने समझाया कि अगर हम वास्तव में प्रगति चाहते हैं तो हमारी शिक्षा शब्दों में नहीं व्यवहार में परिलक्षित होनी चाहिए, ज्ञान अर्जित करके उसका पालन करना चाहिए |
इस संगोष्ठी में भारत के लगभग 22 राज्यों के 130 प्रतिभागियों ने पंजीकरण किया है। प्रथम दिवस दो ऑनलाइन सत्रों तथा एक ऑफलाइन सत्र में लगभग 50 प्रतिभागियों ने विभिन्न विषयों पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये। द्वितीय दिवस तीन ऑनलाइन सत्रों तथा एक ऑफलाइन सत्र में लगभग 70 प्रतिभागियों ने विभिन्न विषयों पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये। इन सत्रों के सत्राध्यक्षों में डॉ सुषमा अलंकार, डी ए वी कॉलेज, सेक्टर 10 ,चंडीगढ़, डॉ देवी सिंह, जी जी एस डी कॉलेज, सेक्टर 32 चंडीगढ़, तथा डॉ भारद्वाज बरगई , पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़, तथा डॉ अखिलेश चंद्र शर्मा, पूर्व जिलाध्यक्ष, आर्य समाज इंदौर रहे। इस संगोष्ठी का आयोजन कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार के मार्गदर्शन, डॉ. अमित शर्मा (संस्कृत विभाग) के संयोजन, महाविद्यालय आर्य समाज इकाई व संगोष्ठी सचिव डॉ. अर्चना सिंघल के नेतृत्व में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ | इसके लिए तकनीकी सहायता प्रमोद कुमार, डॉ. रश्मि रतुरी, उत्तमा पांडेय व नेहा कथूरिया द्वारा प्रदान की गई |