परमपद प्राप्ति हेतु जीवन में संतुलन/समता की महत्ता

( विनोद वैष्णव )| रामनवमी की पवित्र बेला पर आज परमपद प्राप्ति हेतु, ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने समय की अमूल्यता के विषय में बताते हुए कहा कि कि संतोष, धैर्य, सच्चाई व धर्म ये चारित्रिक सुदृढ़ता के मु2य आधार एवं मानव व्यक्तित्व के मजबूत स्तंभ हैं। इन को धारण कर जीवन व्यवहार में लाने पर ही मानव की अन्दरूनी एवं बैहरूनी दोनों वृत्तियों में संतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे स्वत: सामय अवस्था पनपती है। सामय समान होने का भाव है, समानता है, समता है व मानव की मूल प्रकृति है। सामय से ही समभाव स्थापित होता है। फलत: मानव सुख-दु:ख, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, जय-पराजय में एक समान यानि निरपेक्ष बने रह, समदर्शिता अनुरूप अपने को सब प्राणियों में और सब प्राणियों को अपने में देखता है। उन्होंने कहा कि यह अपने आप में मानव की परिपूर्ण सचेतन अवस्था होती है जिसके अंतर्गत उसे अपने शाश्वत नित्य स्वरूप यानि च्च्ईश्वर है अपना आप प्रकाशज्ज् इस सत्य का बोध बना रहता है। ऐसा सत्य बोधी ही कुदरत प्रदत्त अपने विवेकशक्ति रूपा विशेष गुण का यथोचित प्रयोग कर पाता है और जगतीय उपज-बिनस के खेल के प्रभावों से अपनी मानसिकता को मुक्त रखते हुए, सदा एकरस सामय अवस्था में सुदृढ़ता से स्थिर बना रहता है।

श्री सजन जी ने आगे संस्था को समबोधित करते हुए कहा कि इस सम अवस्था में उसके लिए सहजता से विभिन्न पक्षों के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक विचारों में सामय स्थापित करना सरल हो जाता है। इस तरह उसके मन की गति स्थिर हो जाती है और समरसता उत्पन्न होती है। इस समरसता की स्थिति में उसके लिए अपने ख़्याल को समपूर्ण कायनात में अनवरत गुंजायमान अनहद श4द में अखंडता से लीन रखते हुए ब्रह्म सत्ता यानि ब्रह्म भाव को ग्रहण करना सहज हो जाता है। फलत: मानव कत्र्ता होते हुए भी, ईश्वर के निमित्त हर कर्म निष्कामता व अकत्र्ता भाव से समपन्न करते हुए संकल्प रहित बना रह, कर्मफल से बचा रहता है। इसलिए उस बलवान व बुद्धिमान इंसान के अंदर जगतीय क्षणभंगुर पदार्थों के प्रति आसक्ति व लिप्ति नहीं पनपती और वह अपनी मूल स्वरूप स्थिति में अडिग बना रह परोपकार कमाता है।

इस उपल4िध के दृष्टिगत सजन जी ने कहा कि जीवन में संतुलन एवं समता की परम आवश्यकता है। इस आवश्यकता पूर्ति हेतु युवावस्था की भक्ति यानि समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म जैसे अंतर्निहित सद्गुणों को पहचान कर निष्कामता से उनका वर्त-वर्ताव करो। इससे भाव संतुलन, मानसिक संतुलन, वैचारिक संतुलन व व्यावहारिक संतुलन तो पनपेगा ही साथ ही एक निगाह एक दृष्टि, एक दृष्टि एक दर्शन भी हो जाएगा। परिणामस्वरूप मन संकल्प रहित हो शांत हो जाएगा, वृत्तियाँ निर्मल हो जाएँगी और सजन-भाव अनुसार जीवनयापन करना सहज हो जाएगा। इस तरह जीवन जीने का वास्तविक आनन्द प्राप्त हो जाएगा। श्री सजन जी ने कहा कि यह अपने आप में शरीरधारी जीव की इस सगुण ब्रह्मांड में विचरते हुए भी इसके त्रिगुणात्मक प्रकृति के प्रभाव से मुक्त रह, स्थिरता से आत्म परमेश्वर स्वरूप में बने रहने की बात होगी जिसके परिणामस्वरूप बुखार की तरह घटने-बढऩे वाला शारीरिक स्वभावों का टमैपरेचर सम हो जाएगा और तीनो तापों का रोग मिट जाएगा। यह बिना यत्न के समभाव-समदृष्टि हो जन्म की बाजी जीत लेने की मंगलकारी बात होगी जिसके परिणामस्वरूप स्वार्थी व परमार्थी दोनों राज्य प्राप्त कर रूप, रंग, रेखा से रहित हो जाओगे।

चार दिन चले इस आयोजन के अंत में उन्होंने सजनों से कहा कि याद रखो ईश्वर सर्वव्यापक है, ग्रहों, ब्रह्मांडों को नियन्त्रित रखता है, फिर भी वह विचलित नहीं होता। यद्यपि वह इस संसार में है तथापि वह संसार से परे है। उसका अभिन्न अंश होने के नाते हमें उसी को ही प्रतिबिमिबत करना चाहिए। इस हेतु हमें अपना ख़्याल व दृष्टि (ध्यान) उसी के साथ जोड़े रख उससे प्राप्त शांति और आनन्द को बनाए रखना चाहिए और विशुद्ध प्रेम, अच्छाई व सामंजस्यता से परिपूर्ण विचारों का आदान-प्रदान कर उन्हें ही अपने मन-वचन-कर्म द्वारा प्रसारित करना चाहिए। याद रखो अंतर्मन्दिर की वेदी पर जहाँ अन्तज्र्ञान का प्रकाश है वहाँ चंचलता का व उससे उत्पन्न अशांति व असंतुलन का कोई स्थान नहीं, यानि व्याकुल प्रयत्नों और अन्तहीन खोज का कोई चिन्ह नहीं। अत: समभाव अपना कर समबुद्धि हो जाने का भरसक यत्न करो व अपनी वृति-स्मृति, बुद्धि व स्वभावों का ताणा-बाणा निर्मल रखते हुए, सदाचारी बन अपने सच्चे घर पहुँच विश्राम को पाओ।

संस्था की प्रबन्धक न्यासी श्रीमती रेशमा गांधी ने बताया कि रामनवमी महायज्ञ में भजन-र्कीान निरंतर चल रहा है। सारी वसुंधरा राममय हो गई है। भक्तजन सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ का अमृतत्व निरंतर प्राप्त कर रहे हैं। उन्होने बताया कि अब महायज्ञ अंतिम-चरण में है। उनके अनुसार आज पूरी रात्रि कीर्तन चलता रहा।

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