जिस आंगन लड़की पैदा होती है ,
खुशिया भर देती है उस आंगन में |
खिल जाता है घर उसका ,
मुस्कुराहट भरी बातो से |
दादा – दादी की गुडिया ,
नाना – नानी की बीटिया ,
पापा की परी ,
मम्मी की राजदुलारी ,
ऐसे नामो से जानी जाती है |
एक दिन बाबा के आंगन से ,
जब वो चली जाती है ,
करोडो सपने अपने ,
वही छोड़ चली आती है |
न जाने वो हस्ती , खेलती ,मुस्कुराती गुडिया कहा खो जाती है ,
ज़िन्दगी उसे अपनी दौडती – भागती नज़र आती है |
अपने बारे में न सोचकर ,
दूसरो के बारे में सोचती है ,
फिर भी वह ज़िन्दगी भर उल्हाने सेहती है ,
न जाने ये लड़किया क्यो बड़ी हो जाती है |