( विनोद वैष्णव ) | विश्व एड्स दिवस के उपलक्ष पर एमवीएन विश्वविद्यालय में विश्व एड्स दिवस को मनाया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ) जे.वी देसाई ने बताया विश्व एड्स दिवस 1988 के बाद 1 दिसंबर को हर साल मनाया जाता है , जिसका उद्देश्य एचआईवी संक्रमण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना और बचाव के तरीकों को बताना है। वर्ष 2018 की थीम “नो योर स्टेटस” है। जिसके अनुसार लोगों को एचआईवी टेस्ट कराने के लिए प्रेरित करना है। सबसे पहले इस रोग का विषाणु एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) अफ्रीका के खास प्रजाति के बंदर में पाया गया और वहीं से पूरी दुनिया में फैला। आज पूरे विश्व में तकरीबन 3 करोड़ 70लाख लोग एड्स की समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं भारत में भी लगभग 21 लाख लोग इस समस्या से प्रभावित हैं।
इस अवसर पर फार्मेसी संकाय की संकायाध्यक्ष डॉ ज्योति गुप्ता ने बताया एड्स स्वयं में कोई बीमारी नहीं है। इस रोग में व्यक्ति अपनी प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता को खो देता है और जीवाणु और विषाणु आदि से होने वाली संक्रामक बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है । जिससे आम सर्दी, जुकाम से लेकर क्षय रोग जैसे रोग सहजता से हो जाते हैं। एचआईवी संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में 8 से 10 वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। एड्स की पहचान केवल औषधीय परीक्षण से ही संभव है।
इस अवसर पर फार्मेसी विभाग के विभागाध्यक्ष तरुण विरमानी ने बताया एचआईवी संक्रमण के तीन मुख्य चरण है। पहला तीव्र संक्रमण, दूसरा नैदानिक विलंब और तीसरा एड्स। तीव्र संक्रमण एचआईवी के संक्रमण के बाद आरंभ होती है उसे तीव्र रेट्रोवायरल सिंड्रोम कहते हैं। इसमें कई व्यक्तियों को 2 से 4 सप्ताह में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी, कुछ में बुखार, गले की सूजन, चकते, सिर दर्द, मुंह और जननांगों में घाव के लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ में जठरांत्र जैसी की बीमारियां जैसे उल्टी,मितली, दस्त के लक्षण दिखते हैं इसलिए किसी रोगी को बिना वजह बार बार बुखार आता है तो उसको एचआईवी परीक्षण करा लेना चाहिए। नैदानिक विलंब या पुरानी एचआईवी, उपचार के बिना एचआईवी संक्रमण 3 से 20 साल और औसतन 8 साल तक रह सकता है। इस के अंतिम चरण में कई लोगों को बुखार, वजन घटना,लसिका में सूजन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं और मांसपेशियों में दर्द का अनुभव होता है और इसी के अंत में इलाज के अभाव में अंततः वह एड्स में बदल जाता है।
इसके बचाव में तरूण विरमानी ने बताया एचआईवी संक्रमित या एड्स से पीड़ित व्यक्ति रक्तदान कभी ना करें और रक्त ग्रहण करने से पहले रक्त का एचआईवी परीक्षण करवाएं। भारत में एड्स से प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या के संभावित कारणों में आम जनता को एड्स के विषय में सही जानकारी का ना होना, शिक्षा में यौन शिक्षण व जागरूकता बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव का होना, गर्भनिरोधक के उपयोग को अनुचित ठहराना, असुरक्षित यौनसंबंध, संक्रमित रक्त के आदान-प्रदान,जीवाणु रहित सिरिंज का उपयोग, संक्रमित सेविंग ब्लेड का उपयोग से बचाव आती है।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ राजीव रतन ने बताया कि फार्मेसी विभाग के विद्यार्थियों ने विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के छात्र और छात्राओं को पोस्टर के माध्यम से एड्स और एचआईवी संक्रमण की जानकारी और बचाव के बारे में बताया। कार्यक्रम के अंत में डॉ राहुल वार्ष्णेय में विश्व एड्स दिवस के सफलतापूर्वक आयोजन पर फार्मेसी विभाग के समस्त विद्यार्थियों, अध्यापकों और कर्मचारीगणों का धन्यवाद किया और कहा की आम जानकारियां जिनसे हम एचआईवी संक्रमण से बचाव कर सकते हैं वह प्राप्त की।
इस अवसर पर रेशू विरमानी, विकास जोगपाल, माधुरी ग्रोवर, शादाब आलम, मोहित मंगला, चरण सिंह, सतवीर सौरौत, गिरीश मित्तल, गीता महलावत आदि उपस्थित थे।