प्रश्न :-एंटेरियर क्रूसिएट लिगामेंट में चोट,एंटेरियर क्रूसिएट लिगामेंट क्या है?
एसीएल घुटने का एक महत्वपूर्ण स्थिर लिगामेंट है। यह जांघ की हड्डी
(फीमर) को पैर की हड्डी (टिबिया) से जोड़ता है। यह घुटने के उपर की हड्डी
(फीमर) को घुटने के नीचे की हड्डी (टिबिया) के उपर बहुत अधिक फिसलने या
अलग हटने से रोकता है।
प्रश्न :-एसीएल चोट के कारण क्या हैं?
उछलने-कूदने और फिसलने के दौरान एसीएल क्षतिग्रस्त हो सकता है। खेल-कूदने
या सड़क दुर्घटना के दौरान कई बार पैर एक दिशा में होते हैं और घुटने
दूसरी दिशा में मुड़ जाते हैं और इसके कारण एसीएल चोटिल हो जाता है।
प्रश्न :-एसीएल चोट के लक्षण क्या हैं?
एसीएल के चोटिल होने पर मरीज को घुटने में दर्द होने के अलावा घुटने में
सूजन हो सकती है, घुटना मोड़ने में दिक्कत होती है और चलने-फिरने में
परेशानी होती है। अगर मरीज लंबे समय तक खड़ा रहे तो उसे ऐसा लगता है कि
घुटने ने जवाब दे दिया है। उसका घुटना अस्थिर हो जाता है। मरीज को
आलथी-पालथी मारकर बैठने, घुटने के सहारे बैठने, सीढ़ियां चढ़ने-उतरने के
समय दिक्कत होती है।
प्रश्न :-एसीएल की चोट का इलाज क्यों आवश्यक है?
मरीज को दोबारा चलने-फिरने में सक्षम बनाने तथा दोबारा कामकाज करने तथा
खेल-कूद में सक्षम बनाने के लिए एसीएल चोट का उपचार आवश्यक है। घुटने में
स्थिरता लाकर मेनिस्कस, कार्टिलेज जैसी घुटने की अन्य संरचनाओं में आगे
होने वाली क्षति तथा भविष्य में ओस्टियो आर्थराइटिस होने की आशंका को हम
रोक सकते हैं।
प्रश्न :-एसीएल की चोट का इलाज कैसे किया जाता है?
एसीएल में चोट का इलाज सर्जरी तथा सर्जरी के उपरंात पुनर्वास की मदद से
या सर्जरी के बिना पुनर्वास की मदद से किया जाता है। सर्जरी करने का
निर्णय कई पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाता है जैसे व्यक्ति की उम्र
क्या है, उसकी गतिविधियां क्या है तथा क्या उसे घुटने में अन्य तरह की
समस्याएं है।
सर्जरी के बिना उपचार
अगर एसीएल में चोट लगे ज्यादा समय नहीं हुआ है तो उपचार के तहत मुख्य
ध्यान दर्द को घटाने तथा घुटने में सूजन को कम करने पर दिया जाता है।
आराम और दवाइयों की मदद से दर्द एवं सूजन को घटाने में मदद मिलती है। जब
सूजन घट जाती है तब घुटने की सामान्य गतिशीलता को बहाल करने तथा घुटने के
आसपास की मांसपेशियों में मजबूती प्रदान करने के लिए विशेष तरह के
व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। इससे मरीज को स्वास्थ्य लाभ में मदद
मिलती है।
सर्जरी के जरिए उपचार
जब एसीएल में लगी चोट का इलाज नहीं हो पाता तब सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
सर्जरी निम्न स्थितियों में की जाती है
जब घुटने अस्थिर हो जाते हैं
सर्जरी रहित पुनर्वास के उपाय सफल साबित नहीं होते
अगर मरीज खेल-कूद में संलग्न है अथवा उसकी नौकरी ऐसी है कि उसे घुटने की
मजबूती एवं स्थिरता जरूरी है
एसीएल संबंधी पुरानी दिक्कत है और इसके कारण उसके जीवन की गुणवत्ता
प्रभावित हो रही है।
प्रश्न :-अन्य लिगामेंटों में और/अथवा घुटने की मेनिस्कस में चोट लगी है |
एसीएल को ठीक करने के लिए की जाने वाली सर्जरी में बहुत छोटा चीरा लगाने
की जरूरत होत है। यह आर्थोस्कोपी के जरिए की जाती है। छोटे चीरे के जरिए
की जाने वाली सर्जरी के लाभ यह है कि इसमें बहुत कम दर्द होता है, मरीज
को कम समय तक अस्पताल में रहना पड़ा है और वह जल्दी ठीक हो जाता है।
ज्यादातर मरीज सर्जरी के अगले दिन घर जा सकते हैं।
एसीएल के पुनर्निमाण के लिए एक ग्राफ्ट की आवश्यकता होती है और आमतौर पर
सर्जरी के दौरान रोगी के शरीर से ही लिया जाता है। यह आम तौर पर पटेला
टेंडन ग्राफ्ट या हैमस्ट्रिंग टेंडन ग्राफ्ट होता है।
सर्जरी के बाद पुनर्वास
सर्जरी के बाद पहले दो सप्ताह के दौरान पुनर्वास के जरिए गतिशीलता की
सीमा को बढ़ाने (फ्लेक्सिंग और घुटने को आगे बढ़ाने), घुटने की शक्ति बहाल
करने, जख्म नहीं बनने देने तथा सूजन दूर करने पर ध्यान दिया जाता है।
ज्यादातर मरीज सर्जरी के अगले दिन ही बैसाखी के सहारे चलना शुरू कर देते
हैं।
सर्जरी के बाद तीसरे और बारहवें सप्ताह के बीच, पुनर्वास के जरिए
चलने-फिरने की क्षमता में सुधार करने, घुटने की शक्ति बढ़ाने, चलने के
दौरान मरीज के संतुलन बनाए रखने आदि पर ध्यान दिया जाता है। इस दौरान खास
व्यायाम कराया जाता है। सर्जरी के बाद चैथे से छठे महीने के दौरान, अधिक
कठिन व्यायाम कराए जाते हैं और व्यायाम की अवधि बढ़ाई जाती है। इसके अलावा
उछलने-कूदने जैसे व्यायाम कराए जाते हैं।
जिन मरीजों के एसीएल को सर्जरी के जरिए पुनर्निर्मित किया जाता है उनमें
बहुत अच्छहे परिणाम होते हैं और सर्जरी के छह माह बाद वे आम तौर पर पहले
की तरह ही सभी गतिविधियां करने में सक्षम होते हैं। एथलीट 9 से 12 माह
बाद खेल-कूद में हिस्सा ले सकते हैं – यह आम तौर पर इस बात पर निर्भर
होता है कि खेल-कूद किस प्रकार है और मरीज ने कितनी प्रतिबद्धता के साथ
पुनर्वास कार्यक्रम को पूरा किया।