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डीएवी शताब्दी महाविद्यालय फरीदाबाद में पूर्ण मनोयोग के साथ मनाया गया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस

फरीदाबाद (पिंकी जोशी) : 11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर डीएवी शताब्दी महाविद्यालय परिसर में एनसीसी कैडेट्स, एनएसएस स्वयंसेवकों, वाइआरसी सदस्यों, खिलाडियों, शिक्षकगण व गैर-शिक्षक कर्मचारियों ने मिलकर के योग दिवस मनाया | सभी ने महाविद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार व योग प्रशिक्षक उमेश कुमार के दिशा निर्देशन में विभिन्न योग क्रियाओं संपन्न किया | प्राचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लोगो की तरफ ध्यानाकर्षित करते हुए समझाया कि लोगो और टैग लाइन ‘योगा फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ’ कि पृथ्वी पर 75% पानी है वैसे ही आपका शरीर भी 75% पानी से बना है और पृथ्वी की तरह ही इसको स्वच्छ, स्वस्थ, सुंदर और निरोगी रखने के लिए योग सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है | एक स्वस्थ समाज चाहे वो महाविद्यालय ही क्यों ना हो, योग सभी के जीवन का महत्वपूर्ण अवयव है | उन्होंने खेल प्रशिक्षकों व शिक्षकों को आगामी शिक्षण सत्र में योगा को पाठ्यक्रम का अंग मानते हुए रोजाना योग करवाने के लिए प्रेरित किया | एनसीसी सीटीओ नेत्रपाल सैन की अगुआई में महाविद्यालय के कैडेट्स ने खेल परिसर, सेक्टर -12 में मनाये जा रहे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में ‘1 हरियाणा नेवल यूनिट एनसीसी’ की तरफ से अपनी सहभागिता भी दर्ज की |
महाविद्यालय में एक सप्ताहीय योग शिविर का आज अंतिम दिवस आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के साथ संपन्न हो गया | एक सप्ताह चले योगाभ्यास ने सकारात्मक ऊर्जा और अनुशासन का वातावरण निर्मित किया तथा योग के शारीरिक, मानसिक व आत्मिक लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ाई। यह कार्यक्रम शारीरिक शिक्षा विभाग एवं योग प्रकोष्ठ द्वारा एनसीसी, एनएसएस, वाईआरसी, आईक्यूएसी, वीमेन सेल, स्वामी विवेकानंद यूथ क्लब, एंटी टोबैको कमिटी एंड ड्रग डी-एडिक्शन कमिटी एवं पर्यावरण क्लब के सहयोग से महाविद्यालय परिसर में उत्साहपूर्वक मनाया गया। प्रमुख रूप से वाईआरसी काउंसलर ओमिता जौहर, एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी कविता शर्मा तथा एनसीसी सीटीओ डॉ. रश्मि ने योग सत्र में भाग लेकर सभी को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया।
जिला जेल जीन्द में 11वे अंतराश्ट्रीय योग दिवस पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-कम-सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जीन्द एंव आयुश विभाग जीन्द के माध्यम से योग षिविर का आयोजन किया गया :-दीपक शर्मा अधीक्षक

जीन्द(विंनोद वैष्णव ) | जिला जेल जीन्द में 11वे अंतराश्ट्रीय योग दिवस पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-कम-सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जीन्द एंव आयुश विभाग जीन्द के माध्यम से योग षिविर का आयोजन किया गया, जिसमें जेल स्टॉफ एंव बन्दियों द्वारा बढ-चढकर भाग लिया गया। उक्त योग षिविर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अमित सिहाग मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित हुये। बलराज योग सहायक, श्रीमति बबीता, योग सहायक एंव सुनीता, योग सहायक द्वारा महिला एंव पुरुश बन्दियों एंव जेल स्टॉफ को उनके स्वास्थ्य पर योगिक अभ्यासों के सार के बारे मे अच्छी-2 जानकारियॉ दी गई तथा अनेक प्रकार के योगासन, प्रणायाम एंव मैडिटेषन करवाया गया |
इस अवसर पर दीपक शर्मा अधीक्षक जेल द्वारा 11वे अंतराश्ट्रीय योग दिवस पर मुख्य अतिथि अमित सिहाग, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जीन्द का हार्दिक अभिनन्दन किया गया तथा जेल में बन्द बन्दियों एंव जेल स्टॉफ को योग करवाने आये बलराज, योग सहायक, बबीता, योग सहायक एंव सुनीता, योग सहायक, जिला आयुर्वेद अधिकारी एंव माननीय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-कम-सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जीन्द का आभार प्रगट किया गया। इस अवसर पर उन्होने बताया कि योग, दैनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के लिए लाभप्रद होते है तथा बिमारियों से दूर रखते है तथा इस प्रकार के आयोजन अंतराश्ट्रीय योग दिवस के अतिरिक्त भी समय-2 पर करवाये जाते रहेगें ताकि जेल में बन्द बन्दियों को मानसिक तनाव से दूर रखा जा सके। निरन्तर योग व ध्यान करने से मनुश्य स्वस्थ रहता है तथा उसका षारीरिक व मानसिक विकास होता है जो सभी के लिए अति आवष्यक है।
डीएवी शताब्दी महाविद्यालय के छात्रों ने निकाली एंटी ड्रग्स जागरूकता रैली

फरीदाबाद (पिंकी जोशी) : डीएवी शताब्दी महाविद्यालय में डायरेक्टर हायर एजुकेशन हरियाणा के निर्देशानुसार एंटी ड्रग्स जागरूकता रैली का आयोजन किया गया। विद्यार्थियों ने नशा जागरूकता पोस्टर बना कर नशा के दुष्परिणामों को दर्शाया तथा नशा भगाओ देश बचाओ के नारे लगा कर आस-पास के लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
इस रैली आयोजन का मुख्य उद्देश्य राज्य में बढ़ते नशे और उसके दुष्प्रभावों के प्रति सजग करना रहा। महाविद्यालय की कार्यकारी प्राचार्या डॉक्टर अर्चना भाटिया ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए देश को नशा मुक्त करने का संदेश दिया। यह रैली संयोजक डॉ योगेश, सहसंयोजक डॉ सारिका सैनी व रेणुका मैडम की देखरेख में संपन्न हुई। इस रैली में लगभग 100 विद्यार्थियों ने भाग लिया ।
Vrinda International School की छात्रा प्राची शर्मा ने विद्यालय और हरियाणा राज्य का नाम किया रोशन
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद का लक्ष्य स्ट्रोक के बारे में जागरूकता बढ़ाने, स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों को रोकने और जीवन बचाने के लिए पूरे उत्तर भारत में डॉक्टरों को प्रशिक्षित करना है।

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव): ‘स्ट्रोक’ तीन सबसे बड़ी आपात स्थितियों में से एक है जिसमें लोगों की जान जा सकती है। बताया गया है कि दिल्ली एनसीआर में हर दिन स्ट्रोक के लगभग 600 मामले दर्ज होते हैं। भारत में हर साल होने वाले स्ट्रोक के अनुमानित 15 लाख मामलों में से, दिल्ली एनसीआर में सबसे ज़्यादा मामले हैं। जेंडर के आधार पर, जंक फूड, शराब और धूम्रपान का अत्यधिक सेवन करने वाले पुरुषों को स्ट्रोक का उच्च जोखिम रहता है, जबकि महिलाओं में मेनोपॉज यानी पीरियड बंद होने के बाद अधिक जोखिम रहता है। मोटापा, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, अत्यधिक जंक फूड का सेवन, उच्च कोलेस्ट्रॉल, शराब का सेवन और धूम्रपान भी स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। भारत में स्ट्रोक के लगभग 15% मामले 40 वर्ष से कम आयु के युवाओं में होते हैं। इसके अलावा, वर्तमान में, दिल्ली एनसीआर में अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं।
स्ट्रोक होने पर ‘सही उपचार के लिए सही समय पर सही हॉस्पिटल में पहुंचना’ बहुत जरूरी है। स्ट्रोक से होने वाली मौतों में वृद्धि और तुरंत कार्रवाई के बारे में जागरूकता की कमी के कारण, हेल्थकेयर इंडस्ट्री लोगों की जान जाते हुए देख रही है जबकि ‘गोल्डन ऑवर’ के दौरान समय पर इलाज मिलने से मृत्यु या विकलांगता को टाला जा सकता है। नेटवर्क को मजबूत करने और नर्सिंग होम, नर्सों एवं सहायक कर्मचारियों को तैयार करने के लिए, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने स्ट्रोकोलॉजिस्ट कार्यक्रम शुरू किया है, जिसका उद्देश्य फिजिशियन, क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट और आईसीयू और ईआर डॉक्टरों के समुदाय को प्रशिक्षित करना है और स्ट्रोक रोगी के उनकी देखभाल में आते ही समय पर डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट के लिए कौशल प्रदान करना है। कार्यक्रम का नेतृत्व मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद से न्यूरोलॉजी विभाग के क्लीनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी तथा स्ट्रोकोलॉजिस्ट प्रोग्राम के डायरेक्टर डॉ. कुणाल बहरानी द्वारा किया जा रहा है।
न्यूरोसाइंसेस में एक अच्छी तरह से कुशल टीम के साथ, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद सर्वश्रेष्ठ न्यूरो फिजिशियन, न्यूरो सर्जन और न्यूरो रेडियोलॉजिस्ट की चिकित्सा विशेषज्ञता, सर्वश्रेष्ठ न्यूरो कैथ लैब में से एक और सर्वश्रेष्ठ स्ट्रोक एम्बुलेंस प्रदान करता है, जो संकट कॉल का जवाब देकर सबसे कम समय मात्र 15 मिनट में रोगी के पास पहुंच जाती है। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद का सिद्धांत है ‘हम स्ट्रोक का इलाज और नियंत्रण ऐसे करते हैं जैसा कोई नहीं करता’। प्रत्येक बैच में 50-60 से अधिक डॉक्टरों और नर्सिंग होम के नेटवर्क की भागीदारी के साथ, एडवांस्ड ज्ञान के संदर्भ में तकनीक का लाभ उठाने के लिए प्रशिक्षित, डॉक्टर और सहायक कर्मचारी भी अधिक से अधिक जिंदगी बचाने के लिए मरीजों को विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए ज्ञान का लाभ उठाएंगे। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद की न्यूरोसाइंसेस की टीम डॉक्टरों और नर्सों को बैचों में प्रशिक्षित और प्रमाणित करेगी। यह निश्चित है कि देश भर के डॉक्टर स्ट्रोक के रोगियों में विकलांगता या मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लाने की बात पर अमल करेंगे। एडवांस्ड तकनीक डॉक्टरों की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और उन्हें गंभीर स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया के लिए उपकरणों से सशक्त बनाएगी। नेटवर्क में शामिल डॉक्टरों की कम्युनिटी इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रमाणित किसी भी डॉक्टर के पास आने वाले प्रत्येक मरीज के लिए एक कनेक्टर्स का काम करेगा, क्योंकि इससे अधिक से अधिक लोगों की जिंदगी बचाने में अत्यधिक और महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी।
डॉ. कुणाल बहरानी, क्लिनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी, न्यूरोलॉजी विभाग, तथा स्ट्रोकोलॉजिस्ट कार्यक्रम के डायरेक्टर कहते हैं, “स्ट्रोक युवाओं को तेजी से प्रभावित कर रहा है, जिससे यह धारणा चुनौती बन गई है कि यह मुख्य रूप से बुजुर्ग लोगों को प्रभावित करता है। दुःख की बात यह है कि अक्सर महत्वपूर्ण समय सीमा के भीतर चिकित्सा देखभाल न मिलने के कारण लोगों की जान चली जाती है। इस पहल का उद्देश्य डॉक्टरों को गोल्डन आवर के अंदर थ्रोम्बोलिसिस करने के लिए शिक्षित और सुसज्जित करना है। ऐसा करने से, यह न केवल चिकित्सा पेशेवरों को स्ट्रोक के मामलों के प्रबंधन में कुशल के रूप में प्रमाणित करता है, बल्कि स्कैन की सटीक व्याख्या करने और उचित दवाएं देने की उनकी क्षमता को भी बढ़ाता है। हम फरीदाबाद और उसके बाहर नर्सिंग होम के साथ एक हब-एंड-स्पोक नेटवर्क स्थापित कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक प्राथमिक स्ट्रोक केंद्र में एडवांस्ड तकनीक से सुसज्जित हो, जिससे विकलांगता को रोकने और स्ट्रोक के मामलों में जीवन बचाने के लिए तुरंत इलाज किया जा सके।”
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं ग्रुप सीईओ डॉ. राजीव सिंघल ने कहा, “हमारे “रोगी पहले” के दृष्टिकोण में, हर जीवन मायने रखता है, हर मिनट मायने रखता है। समय पर इलाज होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्ट्रोक से प्रति मिनट लगभग दो मिलियन मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। स्ट्रोकोलॉजिस्ट कार्यक्रम का उद्देश्य डॉक्टरों द्वारा तुरंत चिकित्सा प्रतिक्रिया को बढ़ावा देना तथा चिकित्सकों एवं आम जन के बीच सामाजिक जागरूकता बढ़ाना है। नर्सिंग होम के पूरे नेटवर्क के माध्यम से, हमारी पहल एडवांस्ड तकनीक की शुरुआत करती है और डॉक्टरों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करती है, ताकि इन सुविधाओं को उच्च डायग्नोस्टिक सटीकता के साथ स्ट्रोक केंद्रों में परिवर्तित किया जा सके। हमारा मिशन फरीदाबाद के हर कोने में, और यहां तक कि हरियाणा राज्य में भी, बड़े स्तर पर स्ट्रोक देखभाल का विस्तार करना है, जिसका उद्देश्य जानलेवा और विकलांगता पैदा करने वाले परिणामों को कम करना है। अत्याधुनिक तकनीक को सहानुभूतिपूर्ण देखभाल के साथ जोड़कर, हम महत्वपूर्ण ‘गोल्डन ऑवर’ के भीतर उपचार में तेजी लाने का प्रयास करते हैं। लगभग तीन दशकों से उच्च-स्तरीय थक्का-नाशक दवाओं की उपलब्धता के बावजूद, केवल दो प्रतिशत स्ट्रोक रोगियों को ही ये दवाएं मिल पाती हैं। हमारा कार्यक्रम इन दवाओं के प्रभाव को समझने में डॉक्टरों की विशेषज्ञता को बढ़ाने पर केंद्रित है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि विकलांगता या मृत्यु जैसी जटिलताओं को रोकने के लिए इन्हें प्रभावी ढंग से दिया जाए। निरंतर और नियमित प्रशिक्षण के माध्यम से, हमारा लक्ष्य अधिक डॉक्टरों को सशक्त बनाना और पूरे क्षेत्र में स्ट्रोक देखभाल स्टैण्डर्ड को ऊंचा उठाना है।”
सत्यम धीरज, फैसिलिटी डायरेक्टर, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद कहते हैं, “हमारा मानना है कि मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद स्ट्रोक के डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट में एक नया स्टैण्डर्ड स्थापित करेगा। एक हेल्थ केयर प्रोवाइडर के रूप में, हमने विभिन्न विशेषज्ञताओं में सुलभ और उच्च स्तरीय उपचार समाधान सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हमारा लक्ष्य देश भर में अधिक से अधिक डॉक्टरों को प्रशिक्षित और प्रमाणित करना है ताकि देश में विकलांगता और मृत्यु दर को जितना संभवत कम किया जा सके। स्ट्रोक देखभाल और नियंत्रण की इस पहल में हमारे साथ जुड़ने वाले डॉक्टर समाज को बेहतर स्वास्थ्य की ओर ले जाने में हमारे साथ भागीदार होंगे।”
प्रतिदिन लगभग 4000 स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं, जिनमें से 2 से 3 प्रतिशत का भी इलाज नहीं हो पाता। वर्तमान में विश्व भर में स्ट्रोक के 60 प्रतिशत रोगी भारत में हैं। 4 में से 1 से भी कम भारतीय स्ट्रोक के लक्षणों के बारे में जानते हैं। हर साल लगभग तीन मिलियन लोग स्ट्रोक के कारण मरते हैं। विश्व स्तर पर स्ट्रोक से होने वाली सभी मौतों में से लगभग 6% 15-49 वर्ष की आयु के लोगों में होती हैं। 69 मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें स्ट्रोक का अनुभव हुआ है। हर साल स्ट्रोक के कारण विकलांगता और मृत्यु के कारण 143 मिलियन से ज्यादा स्वस्थ लोगों की जान चली जाती है। चार में से एक व्यक्ति को स्ट्रोक होने का खतरा है। अब समय आ गया है कि जागरूकता लोगों को ऐसी परिस्थितियों में तुरंत प्रतिक्रिया करने के लिए सक्षम बनाए।
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने मरीजों को अपने अनुभव साझा करने एवं जागरूकता बढ़ाने के लिए आमंत्रित कर मनाया ‘सफल लिवर प्रत्यारोपण का जश्न’
फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) | मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने सर्जरी से पहले और बाद में अपने अनुभवों को साझा करने के लिए मरीजों को आमंत्रित करके लिवर प्रत्यारोपण की सफलता का जश्न मनाया। इस मौके पर मरीजों को एक ऐसा मंच मिला जहां उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को साझा किया कि वे लीवर ट्रांसप्लांट टीम के साथ कैसे जुड़े, सर्जरी के बाद उनकी जीवन शैली क्या है, और समाज को उनका इतना कहना है कि स्वास्थ्य कितना महत्वपूर्ण है और स्वास्थ्य चुनौतियों से मुक्त जीवन कितना बेहतरीन है। मरीजों के साथ टीम का नेतृत्व मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. पुनीत सिंगला ने किया। उनके साथ डॉ ऋषभ जैन, डायरेक्टर, एनेस्थेटिस्ट और आईसीयू केयर, और सर्जरी, एनेस्थीसिया और आईसीयू में टीम के अन्य सदस्य शामिल हुए।
लिवर व्यक्ति के शरीर में सबसे बड़े अंगों में से एक है और भोजन का पाचन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और मेटाबॉलिज्म (भोजन को पचाकर ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया) को ठीक बनाए रखने, रक्त को शुद्ध बनाने और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने, विटामिन और खनिजों को जमा करने और शरीर में पोषक तत्वों को इकट्ठा करने जैसे कुछ सबसे महत्वपूर्ण कार्य करता है। लिवर के ये सभी फंक्शन विभिन्न कार्यों और गतिविधियों को करने के लिए शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। लिवर खराब होने की आखिरी स्टेज में मरीज को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। ट्रांसप्लांट की नौबत जीवनशैली से जुडी कुछ स्वास्थ्य समस्याओं (मोटापा, हाई, डायबिटीज), संक्रमण की चपेट में आने और लिवर की बीमारी के कारण भी आ सकती है।
पंजाब से क्रॉनिक लिवर फेलियर, किडनी फेलियर, कोविड, मल्टीपल बीपी सपोर्ट मेडिसिन और पेट की दीवार से खून बहने की समस्या के साथ 40 वर्षीय सतविंदर सिंह (बदला हुआ नाम) मरीज डॉ. पुनीत के पास लाया गया था। ऐसे मरीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना (शिफ्ट करना) अपने आप में एक कठिन और जोखिम भरा काम है; उन्हें लगभग 400 किलोमीटर से सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया गया। मरीज को आईसीयू में कई विशिष्ट टीमों द्वारा सामान्य किया गया था। मरीज की पत्नी ने अपने उसे अपना लिवर डोनेट किया जो मरीज में सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया। वर्तमान में, मरीज पूरी तरह से ठीक हो गया है और फिर से सामान्य जीवन जी रहा है, अपने व्यवसाय में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। डोनर भी सामान्य जीवन जी रही है। यह मामला कई बीमारियों के एक साथ होने के कारण काफी चुनौतीपूर्ण था, सर्जन की टीम को एक बहुत ही बीमार मरीज की एक उच्च जोखिम वाली सर्जरी करनी थी। जिस गंभीर स्थिति में मरीज को हॉस्पिटल में लाया गया था, इलाज न मिलने पर 1-2 दिनों में उस स्थिति में मरीज की जान जा सकती थी।
उज्बेकिस्तान से क्रोनिक लिवर डिजीज लिवर कैंसर के साथ आये एक मरीज का इलाज करने के दौरान डॉक्टरों की टीम कई चुनौतियां का सामना करना पड़ा। अहमद, (बदला हुआ नाम) मरीज और उसकी पत्नी कोविड-संबंधी लॉकडाउन के कारण भारत में फंस गए थे। एक शाम को अपनी पत्नी के साथ टहलते समय, रोगी को अचानक भारी दिल का दौरा पड़ा; उसे पुनर्जीवित करने के लिए 45 मिनट का कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) दिया गया। आपातकालीन आधार पर मरीज की कोरोनरी एंजियोग्राफी और स्टेंटिंग की गई। डिस्चार्ज होने के बाद मरीज की लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई। नवीनतम सीटी स्कैन ने पुष्टि की कि अब मरीज को कोई कैंसर नहीं है।
डॉ पुनीत सिंगला, डायरेक्टर एवं एचओडी-लिवर ट्रांसप्लांट, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स ने कहा कि जब एक सर्जन अपने द्वारा अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से इलाज किए गए मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य स्थिति में देखता है तो उसके लिए इससे बढ़कर कुछ और नहीं हो सकता है। लिवर शरीर का एकमात्र ऐसा अंग है जिसमें फिर से आकार में बढ़ने की अदभुत क्षमता है। दूसरे शब्दों में, लिवर फिर से बढ़ जाता है। फिर से आकार में बढ़ने की अदभुत क्षमता के कारण ही आंशिक लिवर प्रत्यारोपण संभव है। एक बार लिवर के एक हिस्से या लोब को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, तो यह मरीज और डोनर दोनों में फिर से बढ़ जाएगा। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। इस कार्यक्रम के माध्यम से हमारा प्रयास सर्जिकल प्रक्रिया के बारे में किसी भी तरह की आशंकाओं या भय को दूर करना है। हम अपने मरीजों को बातचीत करने और इस बारे में जागरूकता फैलाने के लिए लाए हैं कि कैसे सर्जरी किसी भी व्यक्ति को लाभ पहुंचा सकती है जिसे बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए इस सर्जरी की आवश्यकता है।
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं ग्रुप सीईओ डॉ. राजीव सिंघल ने कहा कि लिवर प्रत्यारोपण का फील्ड (क्षेत्र) वर्षों से विकसित हो रहा है। भविष्य में रिसर्च कार्य को और आगे बढ़ाने के लिए और अधिक लोगों की जिंदगी बचाने के लिए, हमें अंग दान से जुड़े भय और आशंकाओं को दूर करने के लिए अधिक जागरूकता फ़ैलाने की आवश्यकता है। वर्तमान में, हम अच्छा क्लीनिकल (चिकित्सकीय) कार्य कर रहे हैं क्योंकि हमारे डॉक्टर के लिए मरीज ही सब कुछ हैं। हमारे डॉक्टर हर चुनौती या बाधा का सामना करने के लिए नई रणनीतियों और तकनीकों के साथ पूरी तैयार हैं। मरीजों की जान बचाना महत्वपूर्ण है। वे मरीजों के लाभ के लिए नए विकल्पों को आजमाने को तैयार हैं। यह चीज है जो स्वास्थ्य सेवा में नया बदलाव लाती है।
डॉ. अजय डोगरा, रीजनल डायरेक्टर-एनसीआर, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स ने कहा कि मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स की लिवर ट्रांसप्लांट टीम लिवर ट्रांसप्लांट में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (आकर्षण का केंद्र) का निर्माण करती है। डॉक्टर एंड-स्टेज लिवर फेलियर के मरीजों में बदलाव लाने के लिए पूरी तरह से समर्पित हो जाते हैं। लिवर की विभिन्न गंभीर बिमारियों और बेहद चुनौतीपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं के साथ आये सभी मरीजों का लिवर ट्रांसप्लांट सर्जनों की टीम द्वारा सफल इलाज किया गया। टीम ने चिकित्सकीय एक्सीलेंस के आधार पर सफल सर्जरी के साथ मरीजों का इलाज किया और वे सभी मरीज आज स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।
वर्तमान में, भारत में सालाना 1800 से अधिक लिवर प्रत्यारोपण (एलटी) किए जाते हैं। जहाँ भारत में 80 प्रतिशत से अधिक लिवर प्रत्यारोपण लिविंग डोनर (जीवित दाताओं) से होते हैं, वहीं पश्चिमी चिकित्सकों द्वारा लगभग 90% लिवर प्रत्यारोपण मृत दाताओं के लिवर से होते हैं। तकनीकी रूप से, जीवित डोनर के लिवर के साथ लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी मृत डोनर के लिवर को ट्रांसप्लांट करने की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, जो चीज समय पर सर्जरी की लगभग 95% सफलता दर के साथ सर्जरी को सफल बनाती है, वह चिकित्सकीय एक्सीलेंस, प्रतीक्षा समय को कम करना, अंग दान के बारे में जागरूकता और प्रत्यारोपण के बाद स्वस्थ जीवन जीना है।

फरीदाबाद के अमृता अस्पताल के एक प्रमुख डॉक्टर ने जानकारी देते हुए कहा कि थैलेसीमिया के मामले में सरकार और समाज का लक्ष्य इलाज के बजाय रोकथाम पर होना चाहिए, क्योंकि इस ब्लड डिसॉर्डर का इलाज बहुत महंगा और कष्टदाई है
फरीदाबाद (विनोद वैष्णव )| फरीदाबाद के अमृता अस्पताल के एक प्रमुख डॉक्टर ने जानकारी देते हुए कहा कि थैलेसीमिया के मामले में सरकार और समाज का लक्ष्य इलाज के बजाय रोकथाम पर होना चाहिए, क्योंकि इस ब्लड डिसॉर्डर का इलाज बहुत महंगा और कष्टदाई है।
अमृता अस्पताल के हेमेटोलॉजी और बीएमटी विभाग के प्रमुख डॉ. (प्रो.) प्रवास मिश्रा ने कहा, “आज समाज के सामने थैलेसीमिया की चुनौती का एकमात्र समाधान थैलेसीमिया बच्चे के जन्म से बचना है। जब कोई महिला गर्भवती होती है तो उसे इस रोग की जांच करानी चाहिए। यदि वह कैरियर पाई जाती है तो पति का भी परीक्षण किया जाना चाहिए। यदि दोनों पॉजिटिव पाए जाते हैं, तो अजन्मे भ्रूण का परीक्षण आवश्यक है। यदि भ्रूण प्रभावित पाया जाता है, तो माता-पिता गर्भपात के विकल्प पर विचार कर सकते हैं और थैलेसीमिक बच्चे के जन्म को टाल सकते हैं। चूँकि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रूप से फैलने वाली बीमारी है, बच्चा या तो थैलेसीमिक या कैरियर होगा। एक कैरियर बच्चा बीमारी से पीड़ित नहीं होता है।”
थैलेसीमिया एक आनुवंशिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो माता-पिता दोनों से बच्चों में फैलता है, जिसके परिणामस्वरूप हीमोग्लोबिन कम हो जाता है, और शरीर की लाल रक्त कोशिकाएं, जो शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन ले जाती हैं, ठीक से काम नहीं कर पाती हैं। इससे एनीमिया हो जाता है, जिससे रोगी को थकान या सांस लेने में तकलीफ महसूस होती है। गंभीर एनीमिया शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, बार-बार रक्त चढ़ाने से आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे यदि ढंग से मैनेज नहीं किया जाता है, तो यह अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
डॉ. (प्रो.) प्रवास मिश्रा ने कहा, “थैलेसीमिया के बोझ को कम करना महत्वपूर्ण है। थैलेसीमिया का एकमात्र स्थायी इलाज स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट है, जो बहुत महंगा है, जिसकी कीमत 12-15 लाख रुपये है। यह भी तब संभव है, जब रोगी के परिवार में कोई मैचिंग डोनर मिल जाए, जो केवल 25-30% मामलों में होता है। बाकी मरीजों को असंबंधित डोनर को खोजने के लिए इंतजार करना पड़ता है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट करने का सबसे अच्छा समय रोगी के किशोरावस्था में प्रवेश करने से पहले का है। बाद के वर्षों में, शरीर में आयरन की अधिकता के कारण शरीर इलाज के प्रति कम रिस्पॉन्स देता है और ट्रांसप्लांट के दुष्प्रभाव भी ज्यादा होते हैं।

थैलेसीमिया के मरीजों को बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है और कभी-कभी तो महीने में कई बार ब्लड ट्रांसफ्यूज़न करना पड़ जाता है। डॉक्टर के मुताबिक, अच्छी गुणवत्ता और जितनी बार आवश्यक हो, उतनी बार रक्त मिलना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, “कई थैलेसीमिया सोसायटी आज मौजूद हैं, जो रोगियों को स्थानीय ब्लड बैंकों और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जोड़कर उनकी मदद करने की कोशिश करती हैं, जहां उनका मुफ्त रक्त ट्रांसफ्यूज़न हो जाता है, लेकिन अभी भी अधिकांश रोगियों तक इसकी पहुँच नहीं है। थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया अब राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा हैं, इसलिए इस बीमारी से निपटने के लिए सरकार में काफी जागरूकता है।”
डॉ. (प्रो.) प्रवास मिश्रा के अनुसार, थैलेसीमिया आनुवंशिक रूप से अगली पीढ़ी में कैसे फैलता है, इस बारे में समाज में जागरूकता की कमी के कारण, आज भी माताओं को बच्चे का इस बीमारी से पीड़ित होने के लिए दोष मिलता है। उन्होंने आगे कहा, “भारत में महिलाओं को बच्चों से संबंधित किसी भी चीज़ के लिए सबसे अधिक दोष दिया जाता है, चाहे वह बेटे को जन्म देने में असमर्थता हो, या किसी स्वास्थ्य समस्या या मानसिक विकार से पीड़ित बच्चे हों। थैलेसीमिया के लिए भी यही सच है। कई महिलाएं स्वस्थ बच्चे को जन्म न देने के लिए खुद को जिम्मेदार भी ठहराती रहती हैं। लोगों को यह एहसास नहीं है कि थैलेसीमिया के साथ पैदा होने वाले बच्चे के लिए, माता-पिता दोनों को स्वयं थैलेसीमिया रोगी या थैलेसीमिया जीन के वाहक होने की आवश्यकता होती है। बच्चे को बीमारी के लिए एक नहीं बल्कि माता-पिता दोनों से दोषपूर्ण जीन होना जरूरी होता है। इसलिए, बच्चों में थैलेसीमिया के लिए मां को दोष देना, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में अज्ञानता और सामाजिक पूर्वाग्रहों का परिणाम है।”
भारत में थैलेसीमिया वाले बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक 1 से लेकर 1.5 लाख तक है। देश में हर साल थैलेसीमिया वाले लगभग 10 से 15 हजार बच्चे पैदा होते हैं।
पंडित एलआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस कबूलपुर बांगर बल्लभगढ़ के प्रांगण में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया
फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) | पंडित एलआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस कबूलपुर बांगर बल्लभगढ़ के प्रांगण में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया यह रक्तदान शिविर लायंस क्लब ऑफ डिवाइन व डिवाइन चैरिटेबल ब्लड सेंटर के द्वारा आयोजित किया गया
रक्तदान शिविर का शुभारंभ भाजपा फरीदाबाद जिला अध्यक्ष पंडित गोपाल शर्मा व चेयरमैन पंडित एल आर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस एवं जिला उपाध्यक्ष भाजपा फरीदाबाद पंडित लखमीचंद भारद्वाज ने दीप प्रज्वलित कर किया रक्तदान शिविर के मुख्य व्यवस्थापक संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आरपी आर्य, एकेडमिक डीन भरत राज बुंदेल, एसोसिएट प्रोफेसर गवर्नमेंट कॉलेज डॉ सुनील शर्मा, पंडित एलआर कॉलेज ऑफ फार्मेसी के प्रिंसिपल डॉ रवि मल्होत्रा थे
पंडित एलआर ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूशंस के चेयरमैन पंडित लखमीचंद भारद्वाज ने जानकारी देते हुए बताया कि इस रक्तदान शिविर में युवाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया खासकर महिलाओं में ज्यादा उत्साह देखने को मिला इस रक्तदान शिविर में महिला व पुरुष ने 70 यूनिट रक्तदान दान किया जिसमें 15 महिला व 55 पुरुषों ने रक्तदान किया
और उन्होंने कहा कि जनकल्याण के लिए रक्तदान शिविर का आयोजन समय-समय पर होता रहना चाहिए रक्तदान एक श्रेष्ठ कार्य है हमारे द्वारा किए हुए रक्तदान से ना जाने कितने लोगों की जान बचाई जाती है इसलिए अपनी शारीरिक जांच करा कर कम से कम 6 महीने में एक बार रक्तदान जरूर करना चाहिए

फरीदाबाद स्थित अमृता अस्पताल और आईएपी ने जन्मजात हृदय रोग पर सीएमई का आयोजन किया
फरीदाबाद(vinod vaishnav) देश के सबसे बड़े मल्टी स्पेशियलिटी निजी अस्पताल, फरीदाबाद स्थित अमृता हॉस्पिटल ने फरीदाबाद चैप्टर की इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के सहयोग से जन्मजात हृदय रोग (सीएचडी) पर एक सीएमई का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में फरीदाबाद, बल्लभगढ़ और पलवल के 25 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया।
अमृता अस्पताल के प्रमुख विशेषज्ञों ने दर्शकों को संबोधित किया, जिसमें बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी और वयस्क जन्मजात हृदय रोग के हेड डॉ. एस राधाकृष्णन और बाल चिकित्सा और जन्मजात हृदय सर्जरी के हेड डॉ. आशीष कटेवा शामिल थे। फरीदाबाद चैप्टर की इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अध्यक्ष डॉ. अनिल नागे और सचिव डॉ. धनसुख कुमावत भी मंच पर मौजूद थे।
अमृता अस्पताल के बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी और वयस्क जन्मजात हृदय रोग विभाग के हेड डॉ. एस राधाकृष्णन सीएचडी के लक्षणों के बारे में बात की और साथ ही सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता कब होती है इस बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, “पश्चिमी देशों में 95% की तुलना में, भारत में अभी भी जन्मजात हृदय रोग वाले 2% से कम बच्चों का गर्भ में निदान किया जाता है। जन्म के बाद निदान होने पर भी बच्चे बेहद क्रिटिकल स्टेज में हॉस्पिटल पहुंचते हैं, उस वक़्त उनकी जान बचाना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। फीटल ईसीएचओ और ईसीएचओ कार्डियोग्राफी जैसी तकनीकों से अब हम सीएचडी का आसानी से निदान कर पाते हैं। बाल रोग विशेषज्ञों को सीएचडी के चेतावनी संकेतों के बारे में शिक्षित करने और इसे जल्दी पहचानने के तरीके की तत्काल आवश्यकता है। इस सीएमई का आयोजन उसी दिशा में एक कदम है।”
अमृता अस्पताल के बाल चिकित्सा और जन्मजात हृदय सर्जरी के हेड डॉ. आशीष कटेवा ने अपने बच्चे में सीएचडी का पता चलने पर माता-पिता द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में बात की। उन्होंने कहा, “जब माता-पिता को उनके बच्चे में सीएचडी का पता चलता है, तो उनके दिमाग में कई सवाल आते हैं। ये सवाल बीमारी से संबंधित होते हैं, उनके बच्चे को यह क्यों हुआ, क्या वे इसे रोकने के लिए कुछ कर सकते थे, क्या सीएचडी उनके दुसरे बच्चों को भी हो सकता है, क्या होगा अगर बच्चे की सर्जरी नहीं होती है, सर्जरी के जोखिम, सीएचडी के साथ उनके बच्चे की जिंदगी कैसी होगी आदि। बाल रोग विशेषज्ञ के लिए उनकी चिंताओं को सहानुभूति के साथ दूर करना बहुत आवश्यक है।
डॉ कटेवा ने आगे कहा, भारत में सबसे ज्यादा सीएचडी मामले सामने आते हैं, जहां हर साल 200,000 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित पैदा होते हैं। हालांकि इनमें से बड़ी संख्या में बच्चों का पता नहीं चल पाता है और इसलिए उनका इलाज नहीं किया जाता है, हम बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी और कार्डियक सर्जरी के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहे हैं। जन्मजात हृदय दोष के बारे न केवल जनता के बीच बल्कि चिकित्सकों के बीच भी में काफी गलत जानकारी है, जो इस बीमारी के इलाज में एक बड़ी चुनौती है। इस बातचीत का उद्देश्य उन सवालों का जवाब देना था जो माता-पिता और उपचार कर रहे बाल रोग विशेषज्ञ के पास सीएचडी के कारणों और रोकथाम, उपचार के परिणामों और सर्जरी के बाद लॉन्ग-टर्म में रोग के निदान के बारे में हो सकते हैं।
फरीदाबाद चैप्टर की इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अध्यक्ष डॉ. अनिल नागे ने कहा कि सीएमई बाल रोग विशेषज्ञों को सीएचडी के बारे में शिक्षित करने के लिए आयोजित किया गया था, विशेष रूप से खतरनाक स्थितियों के लिए जिन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा, “भारत में, अधिकांश बाल हृदय देखभाल सुविधाएं शहरों में हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में सीएचडी के उचित निदान और उपचार को मुश्किल बनाती हैं।सीएचडी की बेहतर समझ के लिए बाल रोग विशेषज्ञों के उचित प्रशिक्षण के साथ हमें भारत के सभी हिस्सों में इस तरह की और सुविधाओं की आवश्यकता है।
अमृता अस्पताल के परिसर में एक अत्यधिक विशिष्टताओं के साथ बच्चों का अस्पताल है जो मातृ, प्रजनन और भ्रूण चिकित्सा और बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी, हृदय शल्य चिकित्सा और प्रत्यारोपण, रुमेटोलॉजी, एंडोक्रिनोलॉजी, पल्मोनोलॉजी, न्यूरोसाइंसेस, बाल चिकित्सा आनुवंशिकी, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, बाल चिकित्सा आर्थोपेडिक्स और बाल चिकित्सा और भ्रूण की सर्जरी सहित सभी बाल चिकित्सा उप-विशेषताओं से परिपूर्ण है।

राजकीय महाविद्यालय, फ़रीदाबाद तथा ऑल इण्डिया मैंनेजमेन्ट एसोसिएशन (AIMA) के बीच समझौता ज्ञापन
राजकीय महाविद्यालय, फ़रीदाबाद तथा ऑल इण्डिया मैंनेजमेन्ट एसोसिएशन, नई दिल्ली (AIMA) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया | ऑल इण्डिया मैंनेजमेन्ट एसोसिएशन, प्रबन्धन के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करने वाले शीर्ष संस्थानों में से एक है | यह समझौता ज्ञापन राजकीय महाविद्यालय, फ़रीदाबाद में छात्रों को प्रबन्धन के क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों को करवाने के लिए सक्षम करेगा जैसे पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैंनेजमेंट (PGDM), पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफ़िकेट इन मैंनेजमेंट (PGCM) तथा ओपन डिस्टैंस लर्निंग के माध्यम से अन्य शॉर्ट टर्म कोर्स | यह समझौता ज्ञापन फ़रीदाबाद, पलवल तथा निकटवर्ती क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को इन रोजगार परक पाठ्यक्रमों में नामांकन करने की सुविधा प्रदान करेगा जो वर्तमान उद्योगों की जरूरतों को पूरा करेगा |
समझौता ज्ञापन पर डॉ. महेन्द्र कुमार गुप्ता, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय, फ़रीदाबाद तथा डॉ. राज अग्रवाल, निदेशक सैंटर फ़ॉर मैंनेजमेंट एजुकेशन, नई दिल्ली (CME) ने प्रोफ़ेसर आर.के. सिंह, डिप्टी डायरेक्टर, CME AIMA, किरित दास, असिस्टैंट डायरेक्टर, CME AIMA, डॉ. राजेश कुमार, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, भौतिक विज्ञान, राजकीय महाविद्यालय तथा अंकित कौशिक, असिस्टैंट प्रोफ़ेसर, रसायन विज्ञान, राजकीय महाविद्यालय फ़रीदाबाद की उपस्थिती में हस्ताक्षर किए | ऑल इण्डिया मैंनेजमेन्ट एसोसिएशन तथा राजकीय महाविद्यालय फ़रीदाबाद के बीच यह समझौता ज्ञापन एक तरह का पहला समझौता ज्ञापन है | PGDM कोर्स में छात्र छात्राओं का चयन मैंनेजमेंट एप्टीट्युड टैस्ट (MAT) में प्राप्तांकों के आधार पर किया जाएगा तथा कक्षाएं सप्ताहान्त में आयोजित की जाएंगी | महाविद्यालय भविष्य में AIMA का परीक्षा केन्द्र स्थापित करने के लिए भी प्रयासरत है | महाविद्यालय द्वारा ICSI के साथ समझौता ज्ञापन पहले ही हस्ताक्षर किया जा चुका है | ये समझौता ज्ञापन NAAC मान्यता के लिए भी बहुत लाभदायक होंगे | डॉ. वी. त्यागराजन, Executive Director, श्रीमती सलोनी कॉल, अध्यक्ष तथा अन्य FMA सदस्यों के साथ प्रवेश, प्लेसमेंट, विशेषज्ञों के व्याख्यान और औद्योगिक प्रदर्शन के उद्देश्य से फरीदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन (FMA) के साथ भी सहयोग किया है ।
इस समझौता ज्ञापन को सफ़ल बनाने में महाविद्यालय के कॉमर्स तथा प्रबन्धन संकाय के डॉ. प्रीती कपूर, डॉ. लीना वशिष्ठ, कल्पना, अनुराग तथा डॉ. निधि गुप्ता का विशेष योगदान रहा |

विधायक सीमा त्रिखा ने किया मेट्रो अस्पताल में लेडीज क्लब का विधिवत उद्घाटन

फरीदाबाद (दीपक शर्मा /विनोद वैष्णव ) |फरीदाबाद के सेक्टर-16ए स्थित मेट्रो अस्पताल में रविवार को बडखल की विधायिका सीमा त्रिखा ने लेडीज क्लब की विधिवत रूप से शुरूआत की। इस अवसर पर मुख्य रूप से अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर एवं डायरेक्टर कार्डियोलॉजी डा. नीरज जैन, चीफ आप्रेटरिंग ऑफिसर एवं मेडिकल सुपरीडेंट डा. मनजिंदर भट्टी के अलावा महिला रोग विशेषज्ञ डा. चंचल गुप्ता एवं विनीता खरब मौजूद रहे। इस दौरान डा. नीरज जैन ने विधायक सीमा त्रिखा का अस्पताल पहुंचने पर फूलों का बुक्के देकर स्वागत किया। इस लेडीज क्लब का उद्देश्य महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना एवं उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाना है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से इस मौके पर विधायक सीमा त्रिखा ने मेट्र्रो अस्पताल द्वारा शुरू किए गए लेडीज क्लब की शुरूआत की जमकर सराहना करते हुए कहा कि यह महिलाओं को सशक्त एवं उन्हें स्वस्थ्य रखने की दिशा में उठाया गया कदम है और उन्हें उम्मीद है कि अस्पताल ने जो प्रयास शुरू किया है, उस प्रयास में वह अवश्य सफल होगा। उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वह भी अपने स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच करवाकर इस प्रकार के क्लबों की पहल का लाभ उठाएं। वहीं अस्पताल के फाउंडर चेयरमैन, पदम विभूषण, पदमभूषण एवं डा. बी.सी. राय नेशनल अवार्डी डा. पुरूषोत्तम लाल ने बताया कि आज के दौर में जानकारी के अभाव के कारण अधिकतर महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं रहती और बीमारियों से जूझती रहती है। मेट्रो अस्पताल के लेडीज क्लब की एक कोशिश है, जिसके माध्यम से फरीदाबाद की महिलाओं को न केवल वरिष्ठ डाक्टरों की सलाह मुफ्त मुहैया करवाई जाएगी, बल्कि हृदय रोग, मासिक रोग, खान पान, चमड़ी रोग, हड्डी रोगों से बचाव के प्रति भी महिलाओं को जागरूक किया जाएगा। उन्होंने आशा जताई कि मेट्रो अस्पताल की यह कोशिश कारगर साबित होगी और महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होंगी। कार्यक्रम में डा. नीरज शर्मा ने कहा कि भारत में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत दर केवल 65 है, जबकि 23 प्रतिशत महिलाएं लेबर फोर्स पर है। उन्होंने आंकड़े बताते हुए कहा कि 80 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अपने परिवार पर आश्रित रहती है और जिसके चलते वह अक्सर बीमारियों को गंभीरता से नहीं लेती और जब बीमारी विकराल हो जाती है, तब उसका इलाज करवाती है, जिससे कई बार उनकी जान जाने की नौबत तक आ जाती है। उन्होंने कहा कि अस्पताल का लेडीज क्लब इस दिशा में कार्य करके महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का प्रयास करेगा। कार्यक्रम में डॉ. मनजिंदर भट्टी ने बताया कि भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी इकोनॉमी है जबकि काम काजी महिलाओ का प्रतिशत कम होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट ऑफ वूमेन 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने इसका प्रतिशत केवल 23 फीसदी है जबकि पाकिस्तान में महिलाओं का वर्कफॉर्स 24 फीसदी, श्रीलंका 35 फीसदी, अमरीका 59 फीसदी एवं चाइना में इसका प्रतिशत 61 फीसदी है। इन सब आंकड़ों का निष्कर्ष है कि भारत में 70 से 80 प्रतिशत महिलाएं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अपने परिवार पर निर्भर करती है और मेट्रो लेडीज़ क्लब की शुरुवात इसी गैप को ध्यान में रख कर की जा रही है। कार्यक्रम में महिला रोग विशेषज्ञ डा. चंचल गुप्ता व डा. विनीता खरब ने संयुक्त रूप से कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और गलत खानपान के कारण महिलाओं में कई प्रकार के रोग पनपने लगे है, जिनका समय पर अगर उपचार न किया जाए तो वह गंभीर रूप ले लेते है इसलिए प्रत्येक महिला को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते हुए निरंतर अपनी जांच करवानी चाहिए। उन्होंने कहा कि फरीदाबाद की महिलाएं अब मेट्रो अस्पताल के डाक्टरों की सेवाएं निशुल्क ले सकेंगी।