फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) | भूपानी गांव फरीदाबाद स्थित, सतयुग दर्शन वसुन्धरा में, रामनवमी के शुभ अवसर पर बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है ट्रस्ट का वार्षिक उत्सव। इस उत्सव के द्वितीय दिवस सजनों ट्रस्ट के मार्गदर्शन श्री सजन जी ने कहा कि शब्द ब्रह्म अर्थात् प्रणव मंत्र ओ३म् ही वह सबसे बड़ी परम तथा नित्य चेतन सत्ता है जो सत्, चित्त्, आनंद स्वरूप मानी जाती है तथा यह ही सृष्टि का मौलिक, प्रथम, प्रधान व मूल कारण है। इस संदर्भ में उन्होंने सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ अनुसार कहा कि यही शब्द ब्रह्म ही हमारा गुरु भी है क्योंकि शास्त्र कह रहा है :-
हो हो हो गुरु ग्रन्थ, गुरु वाणी, गुरु शब्द, हो हो हो विचार करो सजनों प्रबल
अर्थात् अविनाशी शब्द गुरु ही, धुर की अमृत वाणी का वास्तविक स्त्रोत है। अत: जिन कुदरती ग्रन्थों में, इस दिव्य शाश्वत शब्द गुरु के माध्यम से प्राप्त, गुरुवाणी का वर्णन है, उन सद्ग्रन्थों का अध्ययन करते हुए, उनमें वर्णित विचारों का अपने मन में प्रबल मनन व चिंतन करो। इस प्रकार उस धुर की वाणी को धारण कर, प्रबल विचार के साथ उस पर सत्यनिष्ठा से हर पल स्थिर बने रहो और ए विध् अपना हृदय एकरस प्रकाशित रख आत्मज्ञानी बनो व परमात्मा के धर्म परायण सपुत्र यानि उत्तम पुरूष कहला अपने जीवन का कल्याण करने के साथ-साथ जगत के भी उद्धारक बनने का परोपकार कमाओ। आशय यह है कि शब्द ब्रह्म यानि सूक्ष्म परम नाद/वाणी ही, ब्रह्माण्ड का अव्यक्त नाद है तथा अर्थयुक्त सार्थक ध्वनि के रूप में सच्चा आत्मिक ज्ञान प्रदान करने वाला एकमात्र गुरु अथवा उस्ताद है। इसलिए तो कहा गया है:-
वेद पुराण कुरान सजनों, सब कोई अलफ़ दा मन्त्र बतांदा है।
यानि वेद-पुराण-कुरान, समस्त ग्रन्थ व वेद-शास्त्र इसी शब्द ब्रह्म यानि अलफ आद् अक्षर की व्याख्या करते हैं तथा इसी शब्द रूप गुरु का युक्ति अनुसार एकाग्रचित्तता से सिमरन करने पर ही इंसान, प्रभु नाल प्रभु हो आत्मपद की सार पा जाता है। श्री सजन जी ने कहा कि इसी महत्ता के दृष्टिगत ही ब्रह्मप्राप्ति के लिए निर्दिष्ट विभिन्न साधनों में इस की उपासना मुख्य व सर्वोत्तम मानी जाती है व इस अनादि, अनंत, शाश्वत, चिरंतन और दिव्यविभूति को जान लेने के बाद आत्मसंतोष यानि सब कुछ प्राप्त हो जाता है। इन अर्थों से सजनों यही शब्द ब्रह्म ही हमें सत्यनिष्ठा व धर्मपरायणता का पाठ पढ़ा, अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर व मृत्यु से अमरता की ओर ले जाने वाला है। अत: यदि प्रकाशमय अथवा ज्ञानमय अवस्था में आ, मन का अंधकार दूर भगा जीवन की सार पाना चाहते हो तो किसी भी नश्वर शरीर या तस्वीर को अपना गुरु मानने के स्थान पर इस शाश्वत, अजर-अमर, अविनाशी शब्द ब्रह्म को अपना आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक मान, इसी के साथ अपने ख़्याल का नाता अखंडता से जोड़ लो और आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर “आत्मा में जो है परमात्मा”, अपने उस असलियत ब्रह्म स्वरूप की पहचान कर लो और “ईश्वर है अपना आप के विचार” पर खड़े हो जाओ। अपने इसी असलियत ब्रह्म स्वरूप की स्मृति दिलाने हेतु सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अंतर्गत कहा भी गया है “असलियत स्वरूप है जे ब्रह्म जैंदा रूप रेखा नहीं रंग, ऊँ, ओ३म् विच विशेष हूँ ओ३म् तूं निर्लेप हूँ”। उन्होंने फिर कहा कि इस प्रकार युक्तिसंगत ब्रह्म भाव अपना कर अपने असलियत ब्रह्म स्वरूप की पहचान करने वाला ही, शारीरिक, मानसिक व आत्मिक रूप से सशक्त हो, स्वतन्त्रतापूर्वक निर्विकारिता से जीवन जीने की कला सीख पाता है और आत्मपद की सार को पा, ब्रह्म नाल ब्रह्म हो जाता है।
इस संदर्भ में उन्होंने सजनों से आगे कहा कि जानो प्रत्येक प्राणी को अपने इसी मूलाधार शब्द ब्रह्म से जोड़ने हेतु ही न केवल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपितु हमारी-आपकी, हर श्वास से सदा ओ३म् की ध्वनि गुंजायमान होती रहती है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यही ब्रह्माण्ड व हमारे श्वास की प्रत्येक गतिविधि को नियंत्रित करती है। अत: उससे सीधा सम्पर्क साधने हेतु मूलमंत्र आद् अक्षर यानि शब्द ब्रह्म का घड़ी की टक-टक की तरह जाप करते हुए मन को प्रभु में लीन कर लो और ऐसा पुरुषार्थ दिखा ब्रह्म, जीव और जगत की यथार्थता से परिचित हो, पुन: आत्मस्मृति में आते जाओ। जानो ऐसा करने से शब्द ब्रह्म से उद्धृत हो रही ब्रह्म सत्ता की पावन अविरल सत्य ज्ञानरूप धारा बहती हुई धीरे-धीरे आपके मन में प्रवेश करना आरम्भ कर देगी और हृदय में छाई जन्म-जन्मांतरों की मैल शनै:- शनै: धुलने लगेगी। परिणामत: मन उपशम, चित्त एकाग्र व शांत, बुद्धि निर्मल, ख़्याल अफुर व संकल्प कुसंगी, सजन और संगी हो जाएगा और एक निगाह एक दृष्टि, एक दृष्टि एक दर्शन में स्थित होने पर मन का संतुलन व समता सध जाएगी। इस समता में समदर्शन निज ब्रह्म स्वरूप का एहसास होगा और आप समभाव-समदृष्टि हो कह उठोगे:-
ओ३म् तत् सत् ब्रह्म, ओ३म् तत् सत् ब्रह्म
सत चित्त आनन्द स्वरूप, जैंदा रूप, रेखा न रंग
अन्य शब्दों में डनहोंने कहा कि यही ज्योतिर्मय शब्द ब्रह्म ही अंतर्घट में छाए अंधकार का विनाशक, सत्य ज्ञानस्वरूप का प्रकाशक, अज्ञानियों एवं पापचारियों का विनाशक तथा जीवन के परम पुरूषार्थों यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का दाता-दातार है। अत: तमोघ्न यानि भ्रम/अज्ञान/मोह आदि दोषों को दूर करने वाले इस शब्द ब्रह्म की पहचान करो और फिर उस द्वारा प्रदत्त आत्मिक ज्ञान यानि कुदरती वेद-विदित गुरुमत प्रवान कर, समस्त अवरोधो का नाश करो और आत्मविजय प्राप्त कर लो।