रामनवमी यज्ञ महोत्सव की पूर्व संध्या पर विशाल शोभा-यात्रा का आयोजन

फरीदाबाद(विनोद वैष्णव ) । सतयुग दर्शन वसुन्धरा, गाँव भूपानी, फरीदाबाद, के प्रांगण में, रामनवमी-यज्ञ, वार्षिक-महोत्सव के अवसर पर पूर्ण हर्षोल्लास के साथ दिनांक 27/03/2023 को सायंकाल 5.30 बजे विशाल शोभायात्रा निकाली गई। आनंदमय वातावरण में शोभा-यात्रा जब समभाव-समदृष्टि के स्कूल “ध्यान-कक्ष”में पहुँची तब वहाँ उपस्थित सभी सजनों को संबोधित करते हुए श्री सजन जी ने कहा कि समय की गति को देखते हुए, इस बार इस यज्ञ-उत्सव के दौरान ब्रह्मांडकहो या विश्व की मायावी रचना का वास्तविक आधार ब्रह्म (जिसकी महिमा अवर्णनीय है), सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ अनुसार उसके प्रति मुक्कमल बातचीत का सिलसिला चलेगा। इस प्रयास द्वारा हर जन को ब्रह्म विद्या ग्रहण करने की विधिवत् युक्ति से भी, परिपूर्णत: परिचित कराया जाएगा ताकि वह अपने यथार्थ आत्मस्वरूप को पहचान, जगत में निर्लिप्तता से विचरने के योग्य बनने हेतु, अपने ख़्याल यानि सुरत का नाता ध्यानपूर्वक शब्द ब्रह्म के साथ अखंडता से जोड़े रख, स्वयंमेव आत्मिक ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम बनें और जीवन में जो भी करे वे सब वेद-विहित् कर्म ही करे। उन्होने कहा कि मानो हम में से जो भी सजन सहर्ष ऐसा पुरुषार्थ दिखाएगा, केवल उसी के मन में सत्यता का प्रतीक आत्मभाव स्थापित हो पाएगा और वह हिम्मतवान निष्पाप जीवन जीते हुए अंत अपने जन्म की बाज़ी जीत अक्षय यश कीर्ति को प्राप्त हो पाएगा।

फिर श्री सजन जी ने ब्रह्मऔर ब्रह्मसत्ता के अर्थ से परिचित कराते हुए कहा कि जानो ब्रह्म वह सब में बड़ी, उत्कृष्ठ, सर्वश्रेष्ठ, प्रधान, आद् परम तथा नित्य चेतनसत्ता है जो जगत का मूल कारण और सत-चित्त-आनंदस्वरूप मानी गई है तथा जिससे बढ़कर व जिसके ऊपर, आगे या अधिक कोई अन्य सत्ता अथवा शक्ति नही। इसे ईश्वरयानि क्लेश, कर्म, विपाक तथा आश्य से पृथक परमेश्वर/परमात्मा या सबका स्वामी व मालिक भी कहते हैं। इस संदर्भ में ज्ञात हो कि जहाँ जगत के कर्ता तथा परिचालक सगुण ब्रह्म को परमेश्वर के नाम से जाना जाता है, वही जगत से परे निर्गुण और निरूपाधि परब्रह्म को परमात्मा कहा जाता है। वेदशास्त्रों के अनुसार ब्रह्म ही इस दृश्यमान संसार का निमित्त और उपादान कारण है व इसके अतिरिक्त और जो कुछ प्रतीत होता है वह सब असत्य और मिथ्या है। इस से सजनों स्पष्ट होता है कि ब्रह्म ही सर्वव्यापक आत्मा और विश्व की जीव शक्ति है तथा यही वह मूल तत्व है जिससे संसार की सब वस्तुएं पैदा होती है तथा जिसमें फिर वे लीन हो जाती हैं। आगे श्री सजन जी ने बताया कि ब्रह्म जगत का कारण है, यह ब्रह्म का तटस्थ यानि निरपेक्ष लक्षण है तथा ब्रह्म सच्चिदानन्द अखण्ड, नित्य, निर्गुण, अद्वितीय इत्यादि है, यह उसका स्वरूप लक्षण है। इस आधार पर यह जगत वास्तव में ब्रह्मका परिणाम या विकार नहीं अपितु विवर्त है यानि मिथ्या या भ्रम रूप है। अत: मान लो कि ब्रह्म के अतिरिक्त और कुछ सत्य नहीं है तथा जो कुछ दिखाई पड़ता है, उसकी पारमार्थिक सत्ता नहीं है। इसी तरह ब्रह्म परिणामी या आरंभक नहीं अपितु आदि-अंत से रहित है।

फिर श्री सजन जी ने ब्रह्मसत्ता का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि विभिन्न रूप, रंग, रेखा वाले अस्तित्वों में जो ब्रह्म के होने का यानि विद्यमानता का भाव है, वह ब्रह्म की सत्ता है। यह ब्रह्म सत्ता वह शक्ति है जो अपने अधिकार/प्रभुत्व, बल या सामर्थ्य/योग्यता का उपयोग करके कोई काम करती, व कराती है तथा क्रियात्मक रूप में अपना प्रभाव दिखाती है। इस तरह यह ही वह साधन या तत्त्व है यानि चेतन एनर्जी है जिससे कोई काम अथवा अभीष्ट सिद्ध होता है। इसे अन्य शब्दों में प्रभुत्व व हुकूमत भी कहते हैं क्योंकि सारे ब्रह्मांडमें केवल इस ब्रह्म यानि मूलमंत्र आद् अक्षरॐ/आत्मा की सत्ता का ही वैभव व शासनाधिकार है। इसलिए तो सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में सजनों सजन श्री शहनशाह हनुमान जी ने मूल मंत्र शब्द को गुरू बताया और कहा कि हे इन्सान! यह तेरी ही ब्रह्म सत्ता हैं, अगर तू इस महान सत्ता को ग्रहण कर ले तो तू खुद ही भगवान है।अत: सजनों प्रणव मंत्र ॐ को गुरू मानकर, सर्वव्याप्त अपनी ब्रह्म सत्ता को युक्तिसंगत ग्रहण करो और उस द्वारा प्रदत्त आत्मज्ञान को आचरण में ला निष्कामता से सत्य धर्म के रास्ते पर चल पड़ो। यह आत्मसाक्षात्कार यानि अपने असलीयत स्वरूप की पहचान कर परमपद प्राप्त करने का सबसे सरल व सहज तरीका है। इससे स्वत: ही तीनों तापों का घटता-बढ़ता टेम्प्रेचर सम हो जाएगा और फिर समभाव-समदृष्टि जो एक निगाह एक दृष्टि देखनी होती है बिना यत्न के उसकी प्राप्ति हो जाएगी। यह होगा जन्म की बाज़ी को जीत इस जगत में अपना नाम रौशन करना।

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