Error loading images. One or more images were not found.

विकसित भारत -स्वर्णिम युग का आगाज” दिल्ली पवेलियन की ओर से 43 वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में जोरदार प्रदर्शन

Posted by: | Posted on: 8 months ago
विकसित भारत - स्वर्णिम युग का आगाज" दिल्ली पवेलियन की ओर से 43 वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में जोरदार प्रदर्शन

दिल्ली (विनोद वैष्णव) : प्रगति मैदान में लगा हुआ देश का 43 वां अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला अपने जोरो-शोरों पर है। जहाँ एक तरफ अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला में लोग खरीदारी का लुत्फ उठा रहे हैं वही दूसरी और एम पी थेयटर में आयोजित विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनन्द भी उठा रहे हैं। प्रत्येक दिवस कोई न कोई राज्य अपनी उत्कृष्ठ कलाकृतियों के जरिए दर्शकों का मन मोह लेता है।

इस अवसर पर आज दिल्ली दिवस के दिन माननीय अतिथियों के बीच विकसित भारत – स्वर्णिम युग का आगाज” की थीम पर आधारित नृत्य नाटिका ने सबका मनमोह लिया। इस नाटिका को सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा के तत्वाधान में चल रहे ध्यान कक्ष यानि आत्मिक ज्ञान प्रदान करने वाले, समभाव समदृष्टि के स्कूल के सदस्यों ने शानदार ढंग से प्रस्तुत किया व इसके अंतर्गत दर्शाया गया कि आध्यात्मिक उन्नति ही विकसित भारत व व्यक्तिगत स्तर पर हर मानव के विकास की कुंजी है। ऐसे समय में जबकि अज्ञान, पाप और अधर्म का युग कलियुग व्यतीत हो रहा है और चारों तरफ भयाक्रांत, आतंक का, मार-काट का व विषमता का घोर वातावरण बना हुआ है, अपनी मानसिकता को सुदृढ़ रखते हुए, सुख-शांतिमय तरीके से जीवनयापन करने हेतु इस आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करना और भी जरूरी हो जाता है।

अतः इस नाटक का द्वारा सबको आवाहन दिया गया कि समय रहते ही, सुसंस्कृत, समृद्धशाली, सभ्य व नैतिक रूप से विकसित भारत के निर्माण हेतु, समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, व्यक्तिगत रूप से अपने आचार-विचार व व्यवहार को परिष्कृत कर, यानि कलियुगी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार युक्त मलीन पोशाक बदल कर, सतवस्तु की सम, संतोष, धैर्य युक्त नवीन सुंदर पोशाक पाओ और सर्वांगीण रूप से शक्तिशाली बन जाओ। इस मकसद में कामयाब होने हेतु आत्मज्ञान पाओ और अपने ख़्याल को ध्यान वल व ध्यान को आत्मप्रकाश वल जोड़, सच्चाई, धर्म के निष्काम रास्ते पर सीधे चलते जाओ। इस तरह आपस में भिन्नता के स्थान पर सद्‌भाव, प्रेम और भाईचारे का संचार करो और अपनी आदिकालीन सतयुगी संस्कृति अनुरूप एकता, एक अवस्था में आ सज्जनता का प्रसार करो।





Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *