परमपद प्राप्ति हेतु प्रणववाचक मूल मंत्र आद् अक्षर की महत्ता

( विनोद वैष्णव )| यज्ञ उत्सव के तृतीय दिवस ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने सत्संग में उपस्थित सजनों को समबोधित करते हुए कहा कि जीवन के परम लक्ष्य को सिद्ध कर परमपद प्राप्त करने हेतु च्ना किसी से प्यार कर, ना किसी से वैर रख, दोस्ती ला लै तूं आद् दे नाल दिलों दुई भाव नूं छडज्। उन्होंने बताया कि यहाँ आद् श4द से तात्पर्य सृष्टि के उस मौलिक, प्रथम, प्रधान व मु2य कारण से है जो कि वेदान्तियों के अनुसार ब्रह्म यानि सबसे बड़ी चेतन सत्ता है तथा जगत का मूल कारण और सत्, चित्त्, आनंदस्वरूप मानी जाती है। ओ3म् के ब्रह्म पर्याय के द्वारा उसकी सर्वरूपता सिद्ध है। इसी आद् को हिन्दी में प्रणव/ओउम्/अक्षर/ब्रह्मबीज, उर्दू में अलिफ, गुरुमुखी में ओंकार आदि नामों से समबोधित किया जाता है। उन्होने कहा कि सजनों नाम चाहे कुछ भी हो परन्तु हकीकत में इसे ही अत्यन्त पवित्र, नित्य, स्थिर, दृढ़, अनश्वर, अविनाशी, स्वयंभू व परब्रह्मवाचक यानि परमात्मा को व्यक्त, प्रकट या सूचित करने वाला श4द माना जाता है। इसी से सकल सृष्टि यानि जगत की उत्पत्ति होती है, पालन होता है व अंतत: इसी में सबका लय हो जाता है। उन्होंने सजनों को स्पष्ट किया कि हकीकत में रूप, रंग, रेखा से रहित परब्रह्म ही श4द ब्रह्म द्वारा संपूर्ण संसार को ब्रह्म सत्ता के रूप में, एक रस प्रकाशित करता हुआ, सभी प्राणियों में प्रवेश करता है और एक होकर भी अपने आपको अनेक रूपों में सृजित कर लेता है।

उन्होने कहा कि वास्तव में ओ3म् आद् अक्षर ही अजर-अमर आत्मा का निराकार रूप है। यही श4द ब्रह्म ही वह केन्द्र बिन्दु है जहाँ से ब्रह्म, जीव और जगत के सत्य का प्रगटन होता है। इसी में समस्त ज्ञान विज्ञान समाया/सिमटा हुआ है और इसी का वर्णन सब वेद शास्त्र व धर्म ग्रन्थ कर रहे हैं। यही अन्दरुनी व बैहरुनी वृत्ति की निर्मलता व सर्वांगीण उन्नति का एकमात्र साधन है और यथार्थ में दिव्यता की खिड़की खोलने की कुन्जी है। यही सुरत और श4द के मिलन का व विलीन होने का केन्द्र-बिन्दु है, जहाँ पहुँच जीव विश्राम को पाता है। इसी संदर्भ में श्री सजन जी ने यह भी बताया कि इस ब्रह्म के मूर्त और अमूर्त दो रूप है जो क्षर और अक्षर रूप में समस्त प्राणियों में स्थित है। अक्षर वह परब्रह्म है और क्षर संपूर्ण जगत है। इस आधार पर ओ3म ही परब्रह्म परमेश्वर से प्रकट हुआ उनका स्वरूप है। यह ही समग्र विश्व को ढके हुए है यानि सारे संसार का एक भी पदार्थ ऐसा नहीं है जो ओ3म से बाहर हो। इस नाते ओ3म ही जीवन है यानि संपूर्ण जगत का प्राण है। यह ही वेदो का सार, तपस्वियों का वचन, ज्ञानियों का अनुभव है। इसलिए तो कहा जाता है कि जिसने इस मंगलमय ओ3कार को जान लिया वही मुनि है अन्य कोई पुरुष नहीं। उन्होंने कहा कि जैसे बाँस के द्वारा खाई को लांघा जाता है, वैसे ही ओ3म के सेतु द्वारा जीवन, मृत्यु को पार करता है। इस तरह यह ही आत्मा को मुक्ति देने वाला है। श्री सजन जी ने यह भी कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए जो भी प्राणी ओ3म अक्षर का पाठ करके पूर्ण एवं दृढ़ विश्वास के साथ प्रभु की उपासना करता है उसे निश्चय ही प्रभु मिलन की राह मिल जाती है और वह अवश्य प्रभु को पाने में सफल हो जाता है। यही नहीं इस ओंकार अक्षर को श्रद्धाभाव के साथ ऊँचे स्वर में या मन में उच्चारण करने से अनेक प्रकार के शारीरिक-मानसिक लाभ तो प्राप्त होते ही हैं, साथ ही इस मूलमंत्र का निष्काम भाव से अजपा जाप करने वाला आत्मिक ज्ञान प्राप्ति का अधिकारी भी बनता है। इस तरह ओंकार की उपासना और चिंतन करके उसके द्वारा अपने इष्ट को चाहने वाला वह आत्मज्ञानी परमगति को प्राप्त करता है। सारत: उन्होंने कहा कि ओ3म अक्षर को जानकर मनुष्य जो कुछ भी चाहता है, जिसकी इच्छा करता है उसे वही मिल जाता है। उसे हर काम में सफलता मिलती है और बिगड़े काम बन जाते हैं। इस तरह ओ3म की ध्वनि उस सुन्दर वृक्ष के समान, जो प्रचण्ड सूर्य के ताप से झुलसते हुए मनुष्य को शीतल छाया प्रदान करता है, प्राणी को शीतलता प्रदान करती है।

अंत में उन्होंने इस संदर्भ में सब सजनों से निवेदन किया कि अगर आत्मा के परम तत्व को जान अभय पद प्राप्त करना चाहते हो यानि ब्रह्म नाल ब्रह्म हो दुनियां से आजाद रहना चाहते हो तो इस एकाक्षर श4द ब्रह्म की रटन लगा, इसे अपने ख़्याल यानि रोम-रोम में बसा लो। ऐसा करने से ही हृदय में ब्रह्म भाव पनपेगा और आप अपने अस्तित्व के मूलाधार च्आत्माज् व च्आत्मा में जो है परमात्मा उसे जान, च्विचार ईश्वर है अपना आपज् इस शाश्वत भाव पर खड़े हो, जीवन की वास्तविकता यानि यथार्थ ज्ञान का स्पष्टता व सत्यता से बोध व प्रयोग कर, अमरत्व को प्राप्त कर लोगे।

इस अवसर पर उपस्थित अनेक श्रद्धालुओं से बातचीत के दौरान पता चला कि यहाँ पर हर प्रकार से उनकी सुख-सुविधा का ध्यान रखा जा रहा है तथा उन्हें किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हो रही।

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