एमबीएन स्कूल आफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज के सहयोग से सीपीई कंटिन्यूइंग फार्मेसी एजुकेशन का आयोजन किया गया

पलवल (विनोद वैष्णव )।हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल पंचकूला द्वारा एमबीएन विश्वविद्यालय में आज 7 अप्रैल को एमबीएन स्कूल आफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज के सहयोग से सीपीई कंटिन्यूइंग फार्मेसी एजुकेशन का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ0) जे बी देसाई, सी पी ई (कॉन्टिनयिंग फार्मेसी एजुकेशन) के चेयरमैन * कैलाश चंद खन्ना* एवं हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष धनेश अदलखा द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर के किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में विश्वविद्यालय के कुलपति (डॉ0) जे बी देसाई ने बताया कि दुनिया भर में फार्मास्युटिकल्स साइंस बहुत तेजी से बढ़ रहा है, अतः दवाओं के विनिर्माण, गुणवत्ता भंडारण एवं वितरण की तकनीकों से संबंधित जानकारी भी फार्मेसी प्रोफेशनल प्रशिक्षण के दौरान दिया जाना अत्यंत ही आवश्यक है। इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने के साथ-साथ विशाल सुधार की आवश्यकता है। इसी क्रम में हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष धनेश अदलखा ने बताया कि हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल सार्वजनिक और पेशेवर सेवा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है जो स्वास्थ्य देखभाल एवं रोगी देखभाल अभ्यास के लिए सतत शिक्षा प्रदान करती है।विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ राजीव रतन ने कहां की एमवीएन विश्वविद्यालय उद्योग एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान के रूप में उभरने की दिशा में लगातार काम कर रही है। इस अवसर पर सचिन गांधी ( मेडिसिन बाबा ट्रस्ट) ने दवाइयों एवं अंग अवशेषों के सुबद्ध एवं सुरक्षित निस्तारण का महत्व विस्तार से बताते हुए कहा कि असुरक्षित तरीके से फेंकी गई दवाइयां व अवशेष हमारे पर्यावरण, खेतों व तालाबों को प्रदूषित करती हैं जो हमारे पशुओं के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत ही हानिकारक है। इस कार्यक्रम में डॉ तनवीर* ने न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद के संभावित स्वास्थ्य लाभ के बारे में विस्तार से बताया। इसी क्रम में फार्मेसी विभाग की डीन डॉ0 ज्योति गुप्ता ने कहा कि एम एम विश्वविद्यालय अपने छात्रों को उनकी पूरी क्षमता के साथ-साथ उनके सतत विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करती है। फार्मेसी विभाग अध्यक्ष डॉ तरुण विरमानी ने कहां कि फार्मेसी अधिनियम 1948 के पहले फार्मेसी व्यवसाय में व्यक्तियों के प्रवेश पर व्यावहारिक रूप से कोई प्रतिबंध नहीं था कोई भी व्यक्ति जो डॉक्टर के पर्चे पढ़ सकता था, वह फार्मासिस्ट बन सकता था। फार्मेसी अधिनियम, 1948 के पश्चात गुणवत्ता युक्त फार्मासिस्ट के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए आवश्यक मानक शिक्षा का निर्धारण किया गया है।इस अवसर पर अनेकों फार्मासिस्ट, सतबीर सौरौत, गिरीश मित्तल, विकास जोगपाल, रेशू विरमानी, गीता मेहलावत, मोहित संधूजा, मोहित मंगला, माधुरी ग्रोवर, सादाब आलम, कपिल चौहान, किशोर कुमार झा, राम कुमार आदि अध्यापकगणों ने विद्यार्थियों के सफल भविष्य की कामना की।

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