आपदा में कर्मचारी कर कर सर्वे मर गए
कुछ अधिकारी पीढ़ियों का इंतजाम कर गए।
राशन पानी आएगा कुछ बाबूजी ने बोला था
इंतजार में यूं जनता के पेट खुद ही भर गए।
करना धरना कुछ नहीं टी वी पर आते हैं रोज
चुन के मुखिया सूबों के छाती पे ऐसे धर गए।
कोरोना योद्धा बने और, ले लिए प्रमाणपत्र
अखबारों में छप छपाकर,वो तो अपने घर गए।
आधा मिलता मेहनताना, काम दुगना हो गया
खुश होकर कर रहे गुजारा ,बेकारी से डर गए।
कोई भी अपना नहीं है मजदूरों ने जाना जब
सैंकड़ों मिलों चले और लौट अपने दर गए।
रक्षक,शिक्षक और चिकित्सक डटे हैं मैदान में
स्वच्छता के और सिपाही मन मेरा भी हर गए।
देवेंद्र गौड़ (कवि)