यूनिवर्सल अस्पताल ने फेफड़ा प्रत्यारोपण के मरीज की बचाई जान

फरीदाबाद, 28 जनवरी। यूनिवर्सल अस्पताल ने एक मरीज जिसके दोनों फेफड़े पूरी तरह से खराब हो चुके थे, उसकी जान बचाई है। मरीज ज्ञानचंद जिसकी उम्र 55 साल है, जो काफी समय से फेफड़े की तकलीफ से पीड़ित था और उसे 8 से 12 लीटर ऑक्सीजन लगातार दी जा रही थी, जिसके चलते जिसकी जीने की सारी उम्मीद खत्म हो रही थीं। हिन्दुस्तान के काफी अस्पतालों में घूमने के दौरान मरीज को फेफड़ों के ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई। फेफड़ों का ट्रांसप्लांट व प्रत्यारोपण एक ऐसा ऑपरेशन होता है जिसमें जो मरीज ब्रेन डेड हो चुका होता है या कोमा में जा चुका होता है, उसका फेफड़ा निकालकर इस मरीज को लगाया जाता है। इसी को फेफड़ों का ट्रांसप्लांट बोलते हैं।
इस कड़ी में उक्त मरीज यूनिवर्सल अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेष जैन से मिला। डा. शैलेष जैन ने अपनी टीम जिसमें हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. रहमान, फेफड़ा रोग विशेषज्ञ फिजिशियन डॉ. संजीव, फिजियोथेरेपिस्ट, गायडियिशन व अन्य विशेषज्ञों ने पाया कि मरीज का हृदय सामान्य रूप से कार्य कर रहा है। अगर उसका फेफड़ा प्रत्यारोपण हो जाए तो मरीज की जान बच सकती है और उसकी ऑक्सीजन के ऊपर जो निर्भरता है वह भी खत्म हो सकती है। लेकिन अभी यूनिवर्सल अस्पताल में फेफड़ा प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं है इसलिए यह आपरेशन यूनिवर्सल अस्पताल ने दिल्ली के एक अस्पताल में गत 22 जनवरी को करवाया, जिसके बाद मरीज को पुन: यूनिवर्सल अस्पताल में लाया गया। पिछले एक माह से ज्यादा समय से अस्पताल में उपचाराधीन मरीज अब पूरी तरह से स्वस्थ है और मरीज बिना ऑक्सीजन के सांस ले पा रहा है।
डॉ. शैलेष जैन ने बताया कि अच्छी बात यह है कि मरीज तेजी से रिकवरी कर रहा है जिसके चलते उसे शीघ्र ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। उन्होंने कहा कि फेफड़ा प्रत्यारोपण एक जटिल सर्जरी है, जिसमें फेफड़े उस व्यक्ति का लिया जाता है जो ब्रेन डेड या प्राय: कोमा में होता है। इस मरीज के दोनों फेफड़ों का प्रत्यारोपण हुआ। प्रत्यारोपण के लिए फेफड़ा गुजरात के अहमदाबाद से आए। डा. शैलेष जैन ने बताया कि एक ब्रेन डेड मरीज की अपनी आंख, दिल, फेफड़ा, किडनी, लीवर काफी मरीजों की जान बचा सकते हैं। सभी को अंगदान के लिए आगे बढ़कर सहयोग करना चाहिए।
डा. शैलेष जैन ने बताया कि लंग ट्रांसप्लांट होने के बाद मरीज की पूर्ण रिकवरी में तीन से छह महीने लगते हैं, जिसमें हम पहले छह हफ्ते चाहते हैं कि मरीज कोई भी भारी काम या कोई भारी वजन उठाना या स्कूटर-मोटरसाइकिल चलाना ऐसे कार्य न करे। इसके अंदर खास बात यह रहती है कि किसी दूसरे का लंग आपके फेफड़े में लगाया जाता है तो उसे आपकी बॉडी रिजेक्ट करने की कोशिश करती है, जिसे रिडेक्शन कहा जाता है। उसके लिए एम्युनिशन थेरेपी दी जाती है, इसमें मरीज को इंफेक्शन व फंगस आदि की शिकायत हो सकती है, जिससे बचने के लिए सावधानी व साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।
वहीं अस्पताल की एमडी डॉ. रीति अग्रवाल ने इस ऐतिहासिक सफलता के लिए अस्पताल की पूरी टीम को बधाई दी। यूनिवर्सल अस्पताल एक ऐसा जहां एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी व सर्जरी की आधुनिक व नई सुविधाएं उपलब्ध हैं।

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