विशाल शोभायात्रा का आयोजन कर दिया गया आत्मज्ञान प्राप्त करने का आवाहन

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव) : रामनवमी-यज्ञ महोत्सव के शुभारंभ की पूर्व संध्या पर सतयुग दर्शन वसुन्धरागाँव भूपानीफरीदाबादमें दिनांक 06/04/2022 को भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा में श्रद्धालुओं ने हजारों की संख्या में सम्मिलित हो पूर्ण हर्षोल्लास के साथअद्‌भुत नजारे का आनंद उठाया। इस अवसर पर शोभा-यात्रा जब समभाव-समदृष्टि के स्कूल ‘ध्यान-कक्ष’’ में पहुँची तो वहाँ ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने सर्वप्रथम सब को रामनवमी यज्ञ की मुबारकबाद देते हुएसमय अनुसार जीवन में आत्मज्ञान प्राप्त करतद्‌नुरूप अपने आचारविचार व व्यवहार को ढालने का महत्व स्पष्ट किया।

इस संदर्भ में उपस्थित सब सजनों को सम्बोधित करते हुए उन्होने कहा कि एक आत्मज्ञानी सबसे बुद्धिमान होता है और बुद्धि अनुसार ही इंसान की गति होती है। अत: बौद्धिक स्तर को यथार्थ ज्ञान से भरपूर करने हेतुहर मानव का फर्ज बनता है कि वह आत्मउद्धार हेतु आत्मिक ज्ञान प्राप्त अवश्य करे क्योंकि एक आत्मज्ञानी ही अपने आप को जगत में विचरते समय मुक्त समझता है। नतीजा उसे अंत में निश्चित रूप से मुक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार वह जीवन भर आत्मस्मृति में बने रहते हुए जो भी करता है वह परमेश्वर की शास्त्रविहित आज्ञाओं के अनुसार ही करता है। इसके विपरीत सांसारिक बुद्धि वाला इंसानबद्ध होता है यानि वह अपने आप को बंधनमान समझता है। आशय यह है कि वह पराधीन होता है इसलिए स्वतन्त्र रूप से वह अपने मनबुद्धि व कर्म द्वारा कुछ भी सार्थक नहीं कर पाता। नतीजा सब गड़बड़ हो जाता है क्योंकि वह जिस कारज हेतु उसे यह मानव जीवन मिला है उस कारज को जीवन काल में सिद्ध कर आत्मउद्धार नहीं कर पाता और जन्म मरण की त्रास भुगतता है। इस तरह वह जीवन हार जाता है। उन्होने आगे कहा कि मानव चोला पाने के उपरान्तहमें इस दुर्दशा को प्राप्त नहीं होना यानि हमें विजयी होना ही होना है जिसके लिए आवश्यकता है आत्मज्ञान प्राप्ति की।

आत्मिक ज्ञान इसलिए क्योंकि आत्मज्ञान ही इंसान को वास्तविकता पूर्ण जीवन जीने की कला सिखाता है जिसके परिणामस्वरूप इंसान जीवन में सुकर्म करता हुआहर पल निर्विकारी अवस्था में सधा रहता है। यहाँ सजनों ज्ञात हो कि जहाँ निर्विकारता है वहाँ आत्मा में जो परमात्मा शोभित है उसका नित्य साक्षात्‌ दर्शन होता है। ऐसा इंसान फिर सहज ही ‘ईश्वर है अपना आप‘ के विचार पर खड़ा हो जाता है और एक सतयुगी इंसान की तरह अपना जीवन कारज सिद्ध कर अपने सच्चे घर पहुँच विश्राम को पाता है। सो सजनों जिस कारज की सिद्धि हेतु आपको जन्म जन्मांतरों उपरान्त यह मानव चोला मिला हैआत्मज्ञान द्वारा उस कारज को सिद्ध करने का पुरुषार्थ दिखाअपने सच्चे घर की भाल करो। मतलब यह है कि संसार में मत उलझो अपितु परमार्थ के रास्ते पर आगे बढ़ते हुएआनन्द से जीवन बिताओ। यह है सजनों वास्तविकता पूर्ण जीवन जीना और जो करने आए हो उसे वास्तविकता पूर्ण सिद्ध करईश्वर के कर्त्तव्यपरायण सुपुत्र यानि श्रेष्ठ आत्मा कहलाना। ऐसी सुरत फिर ईश्वर को प्यारी होती है। जानो सजनों जहाँ ऐसा निष्काम प्यार होता है वहाँ दूरी नहीं होती वहाँ आत्मा-परमात्मा का संग सदा बना रहता है और इंसान उसी इलाही शान अनुसार इस जगत में प्रसन्नतापूर्वक विचरता है।

सो हमे वास्तविकता व काल्पनिक जगतइन दोनो का भेद समझना है। जानो जो काल्पनिक है वह असत्य है। इसके विपरीत वास्तविकता सत्य है। एक बुद्धिमान आत्मिक ज्ञानी ही भ्रमरहित होकर इस काल्पनिक जगत व वास्तविकता के भेद को समझ पाता है। अत: दृढ़ संकल्प होकर आत्मज्ञान प्राप्त करो और उसे विधिवत्‌ जीवन में कुदरती रीति-नीति से व्यावहारिक तौर पर लागू करसजनता के प्रतीक बन जाओ। जानो आत्मज्ञान ही जीवन का सत्य बोध कराने में सक्षम है। इसी के द्वारा सुमतिवान बनइस जगत में निर्लिप्तता से निर्दोष जीवन जीने के काबिल बन पाओगे और अंतर्मन व सम्पूर्ण जगत में छाया अंधकार मिटा प्रकाशमान हो पाओगे। इस प्रकार सब द्धि-द्वेष मिट जाएगा और मन शांतबुद्धि तीक्ष्ण व चित्त प्रसन्न हो उठेगा। ऐसा होने पर ख़्याल-ध्यान कही नहीं बिखरेगा अपितु वह एकाग्रता से परमात्मा के चरणों में स्थित रहेगा।

नतीजा ईश्वर ऐसे पराक्रमी भक्त को संसारी व परमार्थी दोनों राज्य दे देंगे। इस उपलब्धि के दृष्टिगत सजनों बौद्धिक विकास हेतु आप तो आत्मज्ञान प्राप्त करो ही साथ ही अपने परिवारजनों व संगी साथियों को भी इस अनुकूल व्यवहार में लाने के लिए प्रेरित करो ताकि उच्च बुद्धिउच्च ख़्याल व उच्च विचार हो एकमतता से जीवन जी सको और ए विध्‌ श्रेष्ठता के प्रतीक बन सको। जानो श्रेष्ठता का प्रतीक ही मानव रूप में ईश्वर की सर्वोत्कृष्ठ कृति होने की सत्यता को सिद्ध कर सकता है और ईश्वर को प्रसन्न कर चराचर जगत में एकरूपता का दर्शन कर दर्शन नाल दर्शन हो परमधाम का नजारा देख सकता है। अंत में उन्होंने सभी उपस्थित सजनों से करबद्ध प्रार्थना की गई कि आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर सब ऐसे बनोहाँ ऐसे बनो और ऐसे बनकर आत्म उद्धार करो व अक्षय यश कीर्ति प्राप्त कर लो।

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