फरीदाबाद (विनोद वैष्णव) : सतयुग दर्शन ट्रस्ट का वार्षिक रामनवमी यज्ञ महोत्सव, भूपानी स्थित सतयुग दर्शन वसुंधरा पर प्रात: ८.०० बजे सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ व रामायण के अखंड पाठ के साथ आरंभ हुआ। आरम्भिक विधि के उपरांत सत्संग के दौरान ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने बड़े ही उत्कृष्ट व सुन्दर ढंग से, उपस्थित सजनों को कहा कि मानव जीवन बड़ा अनमोल है। एक विशिष्ट उद्देश्य के निमित्त इस जीवन का धरती पर प्रार्दुभाव हुआ है। वह उद्देश्य है-समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार सर्वव्याप्त निज परमात्म स्वरूप की पहचान कर, उसी के निमित्त व उसी के हुक्मानुसार निष्काम व सजन भाव से इस चराचर जगत की सेवा करना व इस प्रकार अपने मन-वचन-कर्म द्वारा सत्य को धर्मसंगत प्रतिष्ठित कर, अन्यों को भी तद्नुरुप सदाचरण अपनाने के लिए प्रेरित करते हुए परोपकार कमाना। उन्होंने कहा कि यदि गहनता से देखा जाए तो इस उद्देश्य पूर्ति को जीवन की एकमात्र आवश्यकता बनाना और तद्नुरूप क्रियाशील होना हमारा सर्वप्रथम कर्त्तव्य है।
इस संदर्भ में जिस प्रकार लक्ष्यभेद के लिए तीर को सही दिशा में छोड़ना आवश्यक होता है उसी तरह जीवन प्रयोजन को केन्द्र बिन्दु मानकर इसकी प्राप्ति हेतु सफलता-विफलता के भाव से मुक्त होकर, पूरी लगन, निष्ठा व शक्ति से उत्साहपूर्वक यथासंभव निरंतर प्रयास करना यानि समय का सदुपयोग करते हुए दृढ़ता व कर्मठता से जुटना अनिवार्य होता है। यह अनिवार्यता हमसे कर्त्तापन के अभिमान, सांसारिकता, मोह-माया व आत्मसुखों के त्याग की अपेक्षा करती है ताकि हम मैं-मेरा, तथा मानसिक दासता यानि अपने मन तथा इन्द्रियों की परिवर्तनशील, क्षणभंगुर, नाशवान लौकिक सत्ता से ऊपर उठकर अपनी पारलौकिक यानि चिरंतन शाश्वत सत्ता, उसकी अगाध शक्तियों व दिव्य गुणों को पहचाने। इसके लिए हमें आत्मज्ञान प्राप्त कर आत्मोत्थान/आत्मोन्नति के मार्ग पर प्रशस्त हो आत्मोद्धार करना होगा। वस्तुत: यही हमारे जीवन का ध्येय भी है जिसकी पूर्ति के निमित्त समस्त जप-तप, पूजा-पाठ, भजन-बन्दगी, सत्संग-संयम, आराधना-उपासना व नीति-नियमों की पालना की जाती है और आत्मशोधन द्वारा, अपने भीतर की गहराइयों में प्रविष्ट होकर परम शांति व आनन्द के स्थायी, शाश्वत, अमर और अनंत स्रोत के साथ एकाकार होने का प्रयास किया जाता है।
सजन ने आगे कहा कि नि:संदेह समभाव-समदृष्टि के स्कूल में कराई गई आत्मिक पढ़ाई द्वारा भी जीवन के इस प्रधान लक्ष्य को आत्मसात् कर अपना जीवन सकार्थ करने के प्रति निरंतर प्रेरित किया जा रहा है परन्तु जैसा कि कहते हैं कि अंधकार में तीर छोड़ने पर लक्ष्यभेद करना संभव नहीं हो पाता उसी प्रकार पर्याप्त सूझबूझ, दृढ़ता, एकाग्रचित्तता व मननकारी के अभाव में हम अज्ञानी, आदत से मजबूर होकर, द्वि-द्वेष, आलस्य, निद्रा, कलह, वाद-विवाद, वैभव, ऐश्वर्य, मान-मर्यादा, झूठी शान-ओ-शौकत, प्रतिस्पर्धा, आमोद-प्रमोद व अनेकानेक व्यसनों में समय बरबाद करने के कारण अपने लक्ष्य को नहीं भेद पाते और विघ्न उपस्थिति होते ही तुरंत विचलित हो जाते हैं। परिणामत: प्रयत्न को अधूरा छोड़ उद्देश्य पूर्ति से वंचित रह जाते हैं यानि दुर्लभ मानव जीवन पाकर भी असली मकसद को प्राप्त करने का अवसर खो बैठते हैं। यहाँ उन्होंने अपनी बात पर बल देते हुए उपस्थित सजनों को समझाया कि इस अनमोल मानव जीवन को प्राप्त कर उसे सँवारने का अवसर बार-बार हाथ नहीं आता और जो जन्म जन्मंतरों के पश्चात् आए अवसर को असावधानी या अचेतनता के कारण गँवा बैठता है वह मूर्ख बाद में पछताता है।
सजन ने कहा कि आप उपस्थित सजनों में से किसी के साथ ऐसा न हो इस हेतु आवश्यक पुरुषार्थ दिखाकर समय रहते ही आत्मज्ञान प्राप्त कर, आत्मोद्धार करने की महत्ता को समझो और जानो कि प्रत्येक व्यक्ति अपना उद्धार स्वयं आप ही यानि अपने आत्मिक बल की सहायता से कर सकता है। कोई बाह्य साधन इसमें कारगर सिद्ध नहीं हो सकता। अत: आत्मोद्धार की प्रबल चाहना, वैराग्य, अनुशासन और सतत अभ्यास के बल पर यानि अपने सहायक स्वयं बनकर, अपने आश्रय पर आप, समभाव-समदृष्टि की युक्ति प्रवान कर, आत्मविश्वास के साथ मैं-तूं के भाव से ऊपर उठ सजन भाव अपना लो और सम्पूर्ण मानव जाति को एकता के सूत्र में बाँध दो। इस प्रकार मोह-माया के बंधन तोड़ यानि अपने मन अपनी इन्द्रियों, अपनी इच्छाओं/कामनाओं पर नियन्त्रण स्थापित कर, जीवन के तमाम झमेलों, विपरीत परिस्थितियों व अंतर्निहित बुराईयों पर विजय पा मोक्ष प्राप्त कर लो।
सजन ने कहा कि मानो यही मुक्ति सर्वश्रेष्ठ है व परम संतोष व शांति की प्राप्ति का अमोघ साधन है। इसी की प्राप्ति होने पर जीवन सार्थक प्रतीत होता है। अतैव अपने आप पर विश्वास यानि परमात्मा में विश्वास को विजय प्राप्ति का सबसे बड़ा सम्बल मान हिम्मत से ऊपर उठो और अविलम्ब सद्ज्ञान प्राप्त करने का पुरुषार्थ दिखाओ। इस तरह अपने आप, अपने अज्ञान का नाश कर अपनी वृत्ति, स्मृति, बुद्धि व भावों के ताणे-बाणे को निर्मल बना जगत में विचार ईश्वर अपना आप के भाव से विचरते हुए इस परम लक्ष्य को पा अपना जीवन सफल बना लो।
संस्था की प्रबन्धक न्यासी रेशमा गांधी ने बताया कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी रामनवमी महायज्ञ में काफी संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से भाग लेंगे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए शहर के प्रमुख रेलवे-स्टेशनों एवं बस-अड्डों से भक्तजनों के लिए हर आधे घंटे में स्पेशल बसों का भी इंतजाम किया गया है। श्रद्धालुओं के रहने, खाने-पीने व अन्य सुविधाओं के प्रबंधन हेतु २०० से भी अधिक स्वयं सेवक कार्यरत हैं।