मैकेनिकल थ्रोम्बैक्टॉमी से ब्रेन स्ट्रोक के 24 घंटे के अंदर मरीज का इलाज संभव : डॉक्टर रोहित गुप्ता

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव)। बदली जीवनशैली व अनियमित दिनचर्या से स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अचानक से होने वाली मस्तिष्क की इस समस्या में यदि समय पर इलाज मिल जाता है तो मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है। इलाज में देरी से शरीर विकलांगता का शिकार बन सकता है। यह जानकारी ग्रेटर फरीदाबाद स्थित एकॉर्ड अस्पताल के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट चेयरमैन डॉ. रोहित गुप्ता ने पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने कहा कि नई तकनीक मैकेनिकल थ्रोम्बैक्टॉमी से ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए बेहद कारगर साबित हुई है। इस तकनीक से 24 घंटे के अंदर भी स्ट्रोक के मरीज का इलाज संभव है।

डॉ. रोहित गुप्ता ने बताया कि स्ट्रोक के प्रति वैश्विक स्तर पर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष 29 अक्टूबर को विश्व स्ट्रोक दिवस मनाया जाता है। स्ट्रोक की समस्या दो कारणों से होती है। पहला कारण मस्तिष्क को मिलने वाले ब्लड की पर्याप्त मात्रा का बाधित होना है। जिससे आर्टिलरी फट जाती है और मस्तिष्क के किसी भी भाग में रक्त का थक्का बन जाता है। इसे माइनर स्ट्रोक कहते हैं। दूसरा कारण आर्टिरी के फटने से अधिक ब्लड निकलना है। इसमें रक्त मस्तिष्क के किसी भाग में जमा हो जाता है। इससे मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। इसे मेजर स्ट्रोक कहते हैं।

स्ट्रोक के लक्षण के लिए यह है बी-फास्ट फार्मुला :

बी-बैलेंस
अगर कभी ऐसा महसूस हो कि शहरी का संतुलन बिगड़ रहा है। चलते चलते पैर रुकने लगें या एक दम से चला न जा सके तो यह ब्रेन स्ट्रोक का लक्षण हो सकता है।
स्ट्रोक की प्रक्रिया को ऐक्रोनिम FAST से समझा जा सकता है।
फेस: मुंह तिरछा हो जाना।
आर्म: अचानक से एक या दोनों हाथों का बेजान हो जाना।
स्पीच: जुबान लड़खड़ाने लगना या पूरी तरह से आवाज चली जाना।
टाइम: ऐसा हो तो एंबुलेंस बुलाकर तुरंत पास के ऐसे अस्पताल में पहुंचें जहां 24 घंटे सीटी स्कैन की भी सुविधा हो।

स्ट्रोक के कारण :

ब्लड प्रेशर, शुगर, कोलेस्ट्रोल, मोटापा, वजन, हाइपरटेंशन को नियंत्रित करना जरूरी है। इनकी स्थित बिगड़ने पर ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
इस दौरान मैकेनिकल थ्रोम्बैक्टॉमी तकनीक से ठीक ब्रेन स्ट्रोक के मरीज सुरेश पाल ने भी अपने विचार सांझा किए। लोगों में जागरुकता के लिए अपने विचार रखे। डॉ. रोहित ने कहा की सुरेश को जैसे ही स्ट्रोक पड़ा। उनके पेरेंट्स उन्हें तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले आए। यहां पहुंचने पर टीम को अलर्ट कर दिया गया और तुरंत इलाज शुरू किया गया। इलाज के बाद अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।

युवाओं में बढ़ रहा खतरा :

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मेघा शारदा ने कहा कि ब्रेन स्ट्रोक उस समय पड़ता है, जब मस्तिष्क की किसी नस में खून का थक्का (कलॉट) बनने या नस फटने के कारण दिमाग को रक्त की सप्लाई कम हो जाती है। 87 प्रतिशत केस में आर्टरी कलॉट आने पर होते हैं, जिनका इलाज किया जा सकता है। हर मिनट में दिमाग के 19 लाख सेल निष्काम हो जाते हैं। नई तकनीक मैकेनिकल थ्रोम्बैक्टॉमी आने से 24 घंटे के अंदर मरीज का इलाज किया जा सकता है। इस तकनीक द्वारा बिना चीरफाड़ किए सफल इलाज संभव है।

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