फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) | एसएसबी अस्पताल के डॉ दानिश जमाल ने विश्व अस्थमा (दमा) दिवस के उपलक्ष्य पर बताया कि हम सभी को बीच-बीच में खांसी होने की शिकायत अक्सर होती रहती है परन्तु कभी-कभी कुछ लोगो में यह परेशानी लगातार रहने लग जाती है। इससे हमारे काम-काज यहां तक बातचीत और स्कूल-कॉलेज और पढ़ाई में भी बाधा आती है। इस प्रकार की खांसी अथवा गले की शिकायत, उसको लोग इन्फेक्शन मानकर बार-2 एंटीबॉयोटिक, सिरप या कुछ एलर्जी की दवाईयाँ खुद ही लेकर इलाज करते रहते है। इन सब तरीको के बावजूद अगर खांसी, साँस की घुटन, जुकाम-नजला में आराम ना मिले अथवा बार-बार हो तो यह शिकायत वायरल या गले का इन्फेक्शन समझकर लोग इससे काफी परेशान रहते है। कई बार तो इससे बुखार या छाती में दर्द या साँस फूलना भी होता है। कभी कभी स्वयं आराम आ जाता है तो लोग इसको गंभीरता से नहीं लेते, अथवा डॉक्टर से सही सलाह परामर्श नही करते। क्या आप जानते है इस प्रकार की खांसी आपकी एलर्जी, दमा या टी.बी. के कारण हो सकती है। लोग अक्सर यह सोचते है के दमे की शिकायत केवल साँस के फूलने से होती है परन्तु यह अक्सर खाँसी से शुरू होती है। इसी प्रकार सूखी खाँसी के साथ अगर हल्का बुखार रहता हो, साथ ही भूख कम लगती हो और कमजोरी या वजन घट रहा हो तो यह टी.बी. के लक्षण हो सकते है, ऐसी परिस्थिति में टी.बी. रोग का पता आसानी से नहीं चल पाता और यह बीमारी फेफडे को काफी नुकसान पहुँचा जाती है और खांसी के अलावा और कोई लक्षण नहीं बनती।
एस.एस.बी अस्पताल के डा. दानिश जमाल, वरिश्ठ विशेषज्ञ, छाती, श्वाँस, एलर्जी रोग ने बताया कि इस तरह के मरीज जानकारी के अभाव से अस्पताल में काफी देर में आते है जब तक की उनकी बीमारी काफी बढ़ नहीं जाती है वे घरेलू उपचार कर रहे होते है।
एलर्जी और टी.बी. में फर्क करना कई बार कठिन हो जाता है परन्तु अगर आपकी खाँसी सुबह और सायं में ज्यादा होती है, एक लगातार फंदे जैसी होती है तो यह एलर्जी के कारण हो सकती है और अगर दिन में बीच-बीच में होती है और इसके साथ हल्का बुखार, कमजोरी और थकान रहती हो तो टी.बी. के कारण हो सकती है। इन दोनों ही परिस्थितियों में घरेलू उपचार या दवा की दुकान से स्वयं उपचार करने से केवल कुछ समय के लक्षण दब जाते है और बीमारी अंदर ही अंदर बढ़ती जाती है और आने वाले समय में गंभीर हो सकती है। कई लोग अक्सर दवा की दुकान से खाँसी की दवाईया, कफ सिरप और एंटीबायोटिक को स्वयं ले लेते हैं इनमें अक्सर सेटरीजीन, मोनटील्यूकास्ट जैसे एलर्जी की दवाईयाँ होती है जिनके दुरउपयोग से हार्ट, लीवर, किडनी और अन्य शरीर के अंगो पर काफी नुकसान हो सकता है इनके अलावा कफ सिरप में कई ऐसी दवाईया जैसे स्यूडोइफेड्रीन और परोक्लोरपेराजीन और कोडीन जैसी दवा होती है तो मस्तिष्क और खासकर बच्चों में काफी नुकसान पहुँचा सकती है। इन लक्षणों का पूर्ण उपचार अब ममुकिन है अगर आप समय से डॉक्टर से परामर्श करे।
लोग अक्सर बलगम का बनना, उसमें खून आना ही लोग अक्सर टी.बी. के लक्षण मानते है परन्तु यह लक्षण काफी आखिर में बनते है और केवल हल्की-2 सी खांसी लगतार आना साथ में बुखार आना सबसे मुख्य और शुरूवाती लक्षण होते है जोकि लोग नजर अंदाज करते है। इसी तरह लोग एलर्जी या दमा को तेज साँस का अटैक सोचकर चलते है और यह नहीं समझ पाते कि तकरीबन 90 प्रतिशत में शुरूवाती लक्षण केवल खाँसी होती है और नजला जुकाम और गला खराब होता है।
50 वर्ष की उम्र के बाद या अक्सर धूम्रपान करने वाले में सुबह-सायं खासी रहना, बलगम रहना ब्व्च्क् जैसे बीमारी के लक्षण होते है जिससे आगे जाकर फेफेडे काफी डेमेज हो सकते है। इसके अलावा धूम्रपान से कान-नाक-गला और फेफेडो का कैंसर हो सकता है।
इन छोटी-2 शिकायतों को नजरअंदाज ना करे अगर डॉक्टर से परामर्श करे तो एलर्जी और दमा से पूरी तरह से बच सकते है। खतरनाक बीमारी जैसे टी.बी. रोग की जांच कर समय से इलाज करवाकर बढ़ी समस्या से बच सकते है। इसी प्रकार धूम्रपान त्याग कर श्वाँस रोग और कैसर से बचा जा सकता है। डॉक्टर के परामर्श के द्वारा धूम्रपान से होने साँस रोग और इससे होने वाले तेज शिकायत से बचा जा सकता है। इसी प्रकार कैंसर का कर्क रोग भारत देश में समय से डॉक्टरी सलाह ना मिलने के कारण काफी देर से पता चलता है, जिससे की वह इलाज से बहार हो जाता है। समय से परामर्श पर फेफडो का कैंसर पता चलने से इसको पूरी तरह कंट्रोल किया जा सकता है। और रोगी को लम्बी और अच्छी जिदंगी जीने का पूरा मौका मिलता है।
डा. दानिश जमाल
MD, EDRM, FCCP, FERS
वरिष्ठ विशेषज्ञ
छाती, श्वाँस एवं एलर्जी रोग