सूरजकुंड मेले में युग परिवर्तन नामक नृत्य-नाटिका का बेहतरीन प्रदर्शन

हरियाणा के फरीदाबाद जिले में मशहूर 37 वाँ सूरजकुंड मेला पूरे जोरोशोरो से चल रहा है। इस मेले में जहाँ एक तरफ विभिन्न राज्यों व विदेशोंकी सर्वश्रेष्ठ कला, परम्परा, शिल्प, लोक संगीत व संस्कृति का बेहतरीनप्रदर्शन हो रहा है वही दूसरी तरफ एक अनूठा स्टाल ऐसा भी है जहाँ सेमेले में आए इंसानों को स्वाभाविक परिवर्तन की राह दिखा, आने वालेसुनहरी युग – सतयुग की नैतिक संस्कृति से परिचित कर तद्नुरूप ढ़लने केलिए प्रेरित किया जा रहा है। जी हाँ, आप ठीक समझें यह स्टाल है "ध्यान-कक्ष" का। इस स्टाल के निष्काम सेवक बड़े ही आकर्षक ढंग से यानि तरह-तरह से मेले में रैली निकाल कर, गाकर, नाचकर सब आए हुए सजनों कोमानव-धर्म अपनाने का व आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर एकता में आने काआवाहन दे रहे हैं।इसी संदर्भ में शनिवार को इस स्टाल के सजनों ने मेले की बडी चौपाल परयुग परिवर्तन नामक नृत्य-नाटिका के माध्यम से "स्वर्णिम प्रभात आ हैरहा, अब तो आँखे खोलो जी"व आओ समभाव समदृष्टि की युक्ति प्रवानकरें नामक शानदार प्रस्तुति दी।

इस आइटम ने सबका मनमोह लिया। इसनाटिका के द्वारा सजनों को जनाया गया कि युग परिवर्तन कुदरत की एकमहत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत् निश्चित समय अवधि के पश्चात्युग बदलते रहते हैं तथा सतयुग से त्रेता, त्रेता से द्वापर, द्वापर से कलियुगतथा कलियुग के बाद फिर सतयुग आ जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में यदिवर्तमान स्थिति का आंकलन करे तो पाप और अधर्म का युग कलियुग जारहा है व सत्य, धर्म और पुण्य का प्रतीक सतयुग आ रहा है यानि जीवनका पुराना तरीका, अपना मूल्य खो रहा है और नया दिव्य युग जन्म लेरहा है। अत: इस सतयुग में प्रवेश पाने हेतु अपने ही भीतर छिपे दिव्यचेतना के रुाोत की खोज कर, सत्-वस्तु की विशेष प्रवृत्ति, नीति-रीति,चाल, आहार-आचार-विचार व व्यवहार आदि को दृढ़तापूर्वक आत्मसात्करने में कामयाब हो जाओ।फिर कहा गया कि इसी कार्य सिद्धि हेतु भूपानी लालपर रोड़ स्थित,सतयुग दर्शन वसुन्धरा, फरीदाबाद में खोला गया है समभाव-समदृष्टि कास्कूल यानि ध्यान कक्ष। स्थापत्य कला की अद्वितीय मिसाल व समभाव-समदृष्टि के स्कूल के रूप में विख्यात, एकता का प्रतीक यह ध्यान-कक्षआत्मिक ज्ञान प्रदान करने वाला, विश्व का पहला स्कूल है तथा चिर स्थाईशांति प्राप्त करने हेतु, सर्व सांझा, श्रद्धा स्थल है। यहाँ से प्रत्येक मानव कोन केवल कलियुगी भाव-स्वभाव छोड़, सतयुगी नैतिक आचार संहिताअपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है अपितु यहाँ से तो सबको मानवताअनुरूप संतोष, धैर्य अपना कर, सत्य-धर्म की राह पर निष्कामता से चलतेहुए, परोपकारी बनने की प्रेरणा भी दी जाती है। इसके अतिरिक्त यहाँ सेहर मानव को "समभाव-समदृष्टि की युक्ति" अनुकूल, समान भाव से युक्तहो व चराचर जगत को एकरूपता से देखते हुए, आपस में आत्मीयता काव्यवहार करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि आज का विषय ग्रस्त,निर्बल मानव, विचार, सत्-ज़बान, एक दृष्टि व एक अवस्था में आ, अपनीहस्ती की यथार्थता यानि ज्ञान, गुण व शक्ति को जान जाएं और एकता काप्रतीक बन, इस धरती पर पुन: सतयुग जैसा सर्वोत्तम समयकाल ले आएं।अंत में हम तो यही कहेंगे कि अगर आप भी एक श्रेष्ठ मानव बन अपनाजीवन सँवारना चाहते हो तो एक बार इस ध्यान कक्ष का अवलोकनअवश्य करो और यहाँ से निष्काम भाव से समभाव-समदृष्टि की युक्ति केअनुकूल प्रदान किए जा रहे आत्मिक ज्ञान का अनुशीलन कर एक अच्छेमानव बन जाओ।

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