विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रही है लिंग्याज यूनिवर्सिटी

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) | लिंग्याज डीम्ड-टू-बी- यूनिवर्सिटी की अपनी एक अलग पहचान है। यूनिवर्सिटी अपनी इसी पहचान में कई और कड़ियों को जोड़ रही है। भारत के अन्य प्रांतों के साथ-साथ अब विदेशों से भी यूनिवर्सिटी में छात्र पढ़ने आ रहे है। किसी भी छात्र के जीवन में हायर सेकेंडरी पास करने के बाद सबसे महत्वपूर्ण निर्णय होता है कि उसे किस कॉलेज में एडमिशन लेना चाहिए। अक्सर लुभावने विज्ञापन, सुनी-सुनाई बातों और दूसरों की देखा-देखी बच्चे और अभिभावक गलत कॉलेज का चुनाव कर लेते हैं जो स्टूडेंट के करियर के लिए बुरा साबित होता है। लेकिन लिंग्याज यूनिवर्सिटी अपनी टीम को विदेश भेजकर वहां काउंसलिंग करवाती है। ताकि यूनिवर्सिटी के हर पहलू को विदेशी छात्र समझ और परख सके कि उनके भविष्य के लिए क्या सही हैं और क्या गलत। इंटरनेळनल एडमिशन एंड रिलेशन के हैड इरशाद अरमानी ने बताया कि दिल्ली एनसीआर में जितनी भी यूनिवर्सिटीज है उनमें अभी तक यूएसए से कोई भी छात्र पढ़ने के लिए नहीं आया है। लिंग्याज ऐसी पहली यूनिवर्सिटी है जहां यूएसए से भी छात्र पढ़ने के लिए आ रहे है। उन्होंने बताया कि मैं खुद विदेशों में जाकर काउंसलिंग करता हूं। ताकि बच्चों को मैं उनके भविष्य के लिए गाइड कर सकु। यूनिवर्सिटी में यूएसए के अलावा अफगानिस्तान, नाईजीरिया, जिम्बाब्वे और कांगो से भी छात्र काफी मात्रा में एडमिशन ले रहा हैं। इरशाद अरमानी ने बताया कि इसी साल बेल्जियम की यूनिवर्सिटी थॉमस मोर यूनिवर्सिटी के साथ हमने टाइअप किया है। जिसके जरिए यहां के छात्र एक साल के लिए निशुल्क बेल्जियम में पढ़ सकेंगें और अगर कोई वहां का छात्र एक साल के लिए भारत में पढ़ना चाहे तो वो भी लिंग्याज में निशुल्क पढ़ सकेगा। इतना ही नहीं छात्रों के साथ-साथ अगर कोई टीचर यहां से
विदेश जाकर पढ़ाना चाहे या फिर वहां से कोई टीचर हमारी यूनिवर्सिटी में पढ़ाना चाहे तो वो भी यहां पढ़ा सकते है। इसके साथ बेल्जियम यूनिवर्सिटी से हमने रिसर्च कॉलेब्रेशन भी किया है। दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, नाईजीरिया, अफगानिस्तान से अगले सैशन में कम से कम 100 छात्रों को लाने का हमारा टारगेट है। हमारी कोशिश है कि यूनिवर्सिटी को ग्लोबल के साथ जोड़ सके। हमारा बाहर की बहुत सी यूनिवर्सिटी के साथ एमओयू (समझौता ज्ञापन) करने का भी प्लान है। लिंग्याज ग्रुप के चेयरमैन डा. पिचेश्वर गड्डे का कहना है कि ज्यादातर ऐसा होता है कि भारत के छात्र ही विदेश भागने में लगे रहते है, लेकिन हमारी ये कोशिश है कि अब विदेश से ज्यादा से ज्यादा छात्र भारत में आकर पढ़े। ग्लोबलाइजेशन का ट्रेंड बढ़ रहा है। छात्रों को क्या पढ़ना है। किस देश में पढ़ना है। इस बारे में सोचना चाहिए। इसलिए हमारी यही कोशिश है कि भारत के साथ-साथ विदेशों से भी ज्यादा से ज्यादा छात्र यहां आकर अपनी पढाई करे।

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