ध्यान कक्ष का संदेश . आत्मा.परमात्मा एक हैं और एक ही रहेंगे


ध्यान कक्ष में उपस्थित विभिन्न सजनों को आज कहा गया कि यह सत्य मानो कि भौतिक जगत का कारण रूप मूल तत्त्व प्रकृतिए सृष्टि की विविधता चराचर जगत के रूप में जिसकी देन हैए वह उस आदिए अनादिए परमादि एक परमात्मा का प्रतिबिम्ब रूप में अंश मात्र है। इस से यह बात स्पष्ट होती है कि वह परमात्मा एक हैए तो सब हैं और अगर वह नहीं तो कुछ भी नहीं। अतरू उस एक के संग सदा जुड़े रहने ही उत्तम मानो। जानो यदि किसी कारण भी हमारे मन का नाता उस एक संग नहीं जुड़ा रहता तो हम आत्मविस्मृत बुद्धिहीन इंसान इस जीवन में कुछ भी सक्षमता से नहीं कर पाते। परिणामतरू अपनी गुण.शक्ति से च्युत हो अपने जीवन का पुरुषार्थ सिद्ध करने की तरफ से हार खा जाते हैं।
इस ध्यान कक्ष में आने के पश्चात्‌ हम में से किसी के साथ भी ऐसा न हो इस हेतु मान लो कि ष्आत्मा.परमात्मा एक हैं और एक ही रहेंगेष्। जानो इस सर्वोत्तम विचार पर सुदृढ़ता से बने रहने पर ही हम अपने जीवनकाल में आद्‌ से लेकर अंत तकए एकनिष्ठा से शास्त्रविहित्‌ शब्द ब्रह्म विचारों को धारए एकमतता से निश्चयात्मक बुद्धि के साथए जीवन के विचारयुक्त सवलड़े रास्ते पर प्रशस्त रह आत्मोद्धार कर पाएंगे अन्यथा नहीं। इस प्रकार सजनों जब उस ईश्वर से एकनिष्ठ प्रेम हो जाएगा तो हमें बहिर्मुखी हो अपने ख़्याल को जगत संग जोड़ना किसी विध्‌ भी नहीं भाएगा। कहने का आशय यह है कि तब हमारे अन्दर न तो विविध भाव पनपेंगे और न ही किसी प्रकार के भय का वातावरण बनेगा अपितु इसके स्थान पर हमारी सुरत ऐक्य भाव अपना कर अंतर्मुखी हो जाएगी यानि ध्यानपूर्वक शब्द रूप परमात्मा के संग एकरस जुड़े रहने के स्वभाव में ढ़ल जाएगी। इस प्रकार हम आत्मज्ञान प्राप्त कर आत्मतुष्ट हो जाएंगे।


ऐसा होते ही हम समभाव.समदृष्टि की युक्ति अनुसार स्वतरू ही सबके प्रति समान भाव रखते हुए यानि सबको बराबर समझते हुए ष्वसुधैव कुटुम्कम्‌ष् की भावना से ओत.प्रोत हो जाएंगे व सबके साथ समान व्यवहार करने में सक्षम हो समान स्वभाव वाले बन जाएंगे। जब एक स्वभाव वाले बन गए तो हम सबके लिए मन में एकरूपता यानि एकात्मा का भाव रखते हुए एक जानध्प्राणए एक मनध्एकदिलए एक तानए एक तालए एक तारए एक दृष्टिए एक जातए एक धर्मीए एक निष्ठ व एकमति हो एक देशी होना यानि एक ही रंग में रंग एक ही प्रकार के मीठे व शिष्ट वचन बोलते हुए परस्पर मैत्री भाव से मिलजुल कर शांतिपूर्वक रहना सहज हो जाएगा। इस तरह सब के सब फिर सजनता के प्रतीक बन परम अर्थ के निमित्त जीते हुए मानव धर्म के सिद्धान्त अनुसार जो कुछ भी करेंगे सर्वहित को दृष्टिगत रखकर ही करेंगे।
कहने का अर्थ यह है कि इस प्रकार एक ही डोर में बंधने पर हमारे लिए स्वार्थपरता छोड़ परमार्थी बनना सरल हो जाएगा क्योंकि तब हम सब की मंजिल एक ही होगी और सब एकाग्रचित्तता से एकाक्षर ब्रह्म यानि परमात्मा को ही ध्याते हुए व उसी में लीन रहते हुए उसी के ही अस्तित्व को स्वीकारेंगे। इस तरह जब सब एक ही के अस्तित्व को स्वीकारते हुए एक मन या समान विचार वाले यानि समान मत वाले बन जाएंगे तो फिर तो इस भू पर यत्र.तत्र.सर्वत्र एक छत्र शासन यानि सतवस्तु का राज स्थापित हो जाएगा। यह सजनों अपने आप में ष्एक पंथ दो काजष् सिद्ध करने की बात होगी क्योंकि इस युक्ति पर दृढ़तापूर्वक बने रहने पर एक तो हम सहज ही अपने हृदय के साथ.साथए संसार रूपी इस घर को सतयुग बना लेंगे दूसरा अपने जन्म की बाजी जीत जीवन की परम पुरूषार्थ सिद्ध कर लेंगे। जानो इसी कार्य की सिद्धि के लिए ध्यान कक्ष यानि समभाव समदृष्टि कर स्कूल खोला गया है। अतरू यहाँ आओ और सद्‌.विचार प्राप्त कर अपना जीवन आनन्द से बिताओ। अधिक जानकारी के लिए क्ीलंद.ज्ञंोी के यू.ट्युबए फेसबुबए इन्सटाग्राम चैनल पर जाए

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