मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से लकवाग्रस्त 50 वर्षीय मरीज को फरीदाबाद के एकॉर्ड हॉस्पिटल में मिला नया जीवन

फरीदाबाद(विनोद वैष्णव )। टाइम इज ब्रेन’ यानी स्ट्रोक के मामले में समय ही सबसे ज्यादा मायने रखता है। ग्रेटर फरीदाबाद स्थित एकॉर्ड अस्पताल के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट चेयरमैन डाॅ. रोहित गुप्ता और न्यूरोलजिस्ट डॉ. मेघा शारदा की टीम ने 50 वर्षीय ब्रेन स्ट्रोक के मरीज का मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी तकनीक से सफल इलाज कर मरीज को नया जीवन दिया है। खास बात यह की स्ट्रोक के आधे घंटे बाद मरीज का इलाज शुरू कर दिया गया। मरीज अब पूरी तरफ स्वस्थ है। उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
डॉ. रोहित गुप्ता ने बताया कि ग्रेटर फरीदाबाद निवासी 50 वर्षीय सुरेश नॉन डाईबिटिक, नॉन हाइपरटेंसिव है। हाल ही में उसे घर पर अचानक ब्रेन स्ट्रोक पड़ा। शरीर के राइट साइड का पूरा हिस्सा पैरालाइसिस हो गया। हाथ पैरों ने काम करना बंद कर दिया। मुंह का एक भाग टेडा हो गया। इससे वह बोल भी नहीं पा रहे थे। मरीज के परिजन उसे तुरंत इलाज के लिए एकॉर्ड अस्पताल लेकर पहुंचे। प्राथमिक जांच में पाया गया की ब्रेन को रक्त पहुंचाने वाली दो बड़ी नसे (आई सी ए और एमसीए) पूरी तरह बंद थीं। मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी तकनीक द्वारा नसों में फंसे क्लॉट को निकाल दिया गया। जिससे ब्रेन में रक्त का संचार दोबारा शुरू हो गया। राइट साइड की पैरालाइसिस पूरी तरह ठीक हो गया। मरीज कोमा की अवस्था से बाहर आ गया और अपनों को पहचानने लगा। उपचार के बाद मरीज अब स्वस्थ है। एक बार फिर से वह सामान्य तरीके से अपना जीवन जीने लगे है।

डॉ. रोहित ने बताया कि पिछले कुछ सालों में ब्रेन स्ट्रोक

युवाओं में तेजी से बढ़ने वाली बीमारी बनकर उभरी है। विश्व में हर दूसरे सेकेंड में एक मरीज ब्रेन स्ट्रोक का सामने आ रहा है। भारत में ही हर साल 15 लाख से ज्यादा स्ट्रोक के नए मरीज सामने आ रहे हैं। फरीदाबाद में प्रत्येक महीने लगभग 80 मरीज स्ट्रोक के आ रहे हैं। स्ट्रोक की पहचान चेहरा टेढ़ा हो जाना, आवाज बदलाना, शरीर केएक हिस्से में कमजोरी के साथ ताकत कम हो जाना प्रमुख है। लक्षणों को समझ कर तुरंत डॉक्टर को दिखाना जरूरी है। समय रहते यदि इलाज शुरू कर दिया जाए तो स्ट्रोक पर काबू पाया जा सकता है।

ब्रेन स्ट्रोक का नई तकनीक से उपचार -:
स्ट्रोक के इलाज के लिए थक्कारोधी दवाओं के अलावा अब मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी नामक नई तकनीक भी आ गई है। खून के थक्के के कारण मस्तिष्क में ब्लॉक हुई रक्त वाहिकाओं को खोलने के लिए यह एक प्रभावी नॉन-सर्जिकल तकनीक है। मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी प्रक्रिया तब इस्तेमाल की जाती है जब स्ट्रोक आने के 3 से 4 घंटे (गोल्डन पीरियड) के अंदर भी मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाता, थक्का-रोधी दवाएं कोई मेडिकल कारणवश मरीज को नहीं दी जा सकती या फिर दवाई देने के बाद भी ब्लॉक हुई खून की नस नहीं खुलती। डॉ. मेघा शारदा ने कहा की मैकेनिकल थ्रोमबेक्टोमी से लकवाग्रस्त मरीज का 12 से घंटे तक इलाज किया जा सकता है। इस तकनीक से लकवाग्रस्त मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *