सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा आयोजित मानवता-फेस्ट-2018

( विनोद वैष्णव ) | सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा अपने ही विशाल परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में मानवता -फेस्ट २०१८, का आयोजन किया गया। इस समारोह में देश के विभिन्न भागों से सैकड़ो की सं2या में युवा सदस्य पधार रहे हैं। फेस्ट के आयोजको के अनुसार यह फेस्ट भौतिकता के प्रसार के कारण, नैतिक रूप से पथभ्रष्ट हो रहे बाल-युवाओं को अध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर, सद्मार्ग पर लाने का एक अभूतपूर्व प्रयास है। सबकी जानकारी हेतु इस फेस्ट में खेल-कूद, मौज-मस्ती, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जूमबा, योगा, पेंटिग प्रतियोगिता, पतंगबाजी, टेलन्ट हंट इत्यादि का भी समुचित प्रबन्ध किया गया है।

फेस्ट के आरंभ में ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने सब बाल युवाओं को आयोजित इस मानवता-फेस्ट के प्रयोजन के विषय में स्पष्ट करते हुए कहा कि यह फेस्ट हर इंसान को, आत्मिक ज्ञान के अभाव के कारण, अज्ञानवश धारण की हुई हर बुराई को छोडऩे व अपने अलौकिक स्वरूप में अटलता से स्थित रह, मनुष्यता अनुरूप गुणवान व निश्चयात्मक बुद्धि वाला इंसान बनाने हेतु आयोजित किया गया है ताकि इंसान प्रसन्नचित्तता व निर्लिप्तता से इस जगत में विचर सके और ए विध् सर्वरूपेण सफलता प्राप्त कर सबका कल्याणकारी सिद्ध हो सकें।

इस संदर्भ में सर्वप्रथम उन्होने सब बच्चों से प्रार्थना कि अज्ञानवश अब तक जो भी बुरे भाव-स्वभाव अपना चुके हो उसे त्याग दो 1योंकि यह बुरे भाव ही मानस के अन्दर विकार पैदा करते हैं और बुरे कर्मों का आधार बनते हैं। यहाँ विकार का अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होने कहा कि विकार वे दोष हैं जिनके कारण किसी वस्तु का रूप-रंग बदल जाता है और वह खराब होने लगती है। अन्य श4दों में विकार या बुराई मन में उत्पन्न होने वाला वह प्रबल प्रभाव या वृत्ति है जिसके परिणामस्वरूप इंसान के स्वभाव में दोष या बिगाड़ उत्पन्न हो जाता है और वह उपद्रवी बन अपने मन की शांति भंग कर बैठता है। इस तरह इस लापरवाही के कारण वह भ्रमित व भ्रष्ट बुद्धि हो सहजता से राग-द्वेष आदि में फँस जगत के भ्रमजाल में उलझ जाता है और फिर उसी का होकर रह जाता है। इस तरह अपने वास्तविक अविनाशी अस्तित्व को भूल वह मिथ्याचारी बन जाता है। उन्होने कहा कि यह जानने के पश्चात् अब बुरे से अच्छा इंसान यानि दुराचारी से सदाचारी बनने का संकल्प लो। इस हेतु विवेकशील बनो यानि भले-बुरे का ज्ञान रखने वाले बुद्धिमान इंसान बनो, सद्गुणी बनो यानि नैतिक दृष्टि से अच्छे आचरण करने वाले निर्दोष व धर्मात्मा इंसान बनो तथा आत्मिक ज्ञानी बनो। श्री सजन जी ने बच्चों को स्पष्ट किया कि ऐसा करने पर ही आप कलुकाल की विकृत विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचे रह सात्विक वृत्ति, स्मृति व बुद्धि वाले इंसान बन उच्च बुद्धि, उच्च ख़्याल कहला सकते हो। यहाँ सात्विक प्रकृति वाले इंसान की विशेषता बताते हुए उन्होने कहा कि ऐसा स्थिर मन-चित्त वाला बुद्धिमान इंसान इस जगत में जितने भी रूप हैं उसे प्रकृति का ही विभक्त रूप मानते हुए कभी भी किसी प्रभाववश अपना मूल गुण नहीं छोड़ता और सबके प्रति सजन भाव रखता है। इस प्रकार वह जगत को देखते-समझते व उसमें अकत्र्ता भाव से विचरते हुए सदा विचार, सत-जबान एक दृष्टि, एकता, एक अवस्था में बना रहता है और उसके लिए आत्मबोध कर ह्मदय सचखंड बना सत्य धर्म के निष्काम मार्ग पर चलते हुए परोपकार कमाना सहज हो जाता है।

अंतत: उन्होंने बच्चों से कहा कि इस तथ्य के दृष्टिगत सात्विक आहार-विचार व व्यवहार अपनाओ। कदाचित् राजसिक व तामसिक आहार व विचारों का सेवन मत करो। न ही माँसाहार, मद्यपान तथा नशीले पदार्थों का सेवन करने की लत में फँसो और न ही अश्लील विचार अपनाओ। ऐसा इसलिए 1योंकि प्रकृति विरूद्ध ऐसे आहार-विहार का सेवन करने से शरीर की स्वाभाविक वृद्धि एवं विकास क्रिया में तो अवरोध उत्पन्न होता ही है

साथ ही साथ शारीरिक अंगों में शिथिलता, रोग, आलस्य, जड़ता आदि भी पनप जाते हैं। इसी तरह यह मानसिक रूप से इन्सान की सोचने समझने की शक्ति को विकृत कर मन को अचेतन बनाते हैं व बुद्धि का सर्वनाश कर देते हैं। यही नहीं इनके अधिक प्रयोग से नाड़ीजाल व हारमोन्स का संतुलन भी बिगड़ जाता है। इस तरह यह शरीरस्थ नसों को मुरदा बना उनमें विष फैलाने का काम करते हैं और अत्याधिक नींद ला इन्सान को घोर तामसिक वृत्ति वाला इंसान बनाते हैं। उन्होने बच्चों से कहा कि अगर हम चाहते हैं कि हमसे ऐसी भूल न हो तो आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर सात्विक आहारी व विचारी बनो और इस तरह निर्विकारी बन सद्-व्यवहारी कहलाओ और अपनी सर्वोत्कृष्टता सिद्ध करो।

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