( विनोद वैष्णव )| किडनी फेल होने पर परिवार में मैचिंग डोनर न मिलने पर किडनी ट्रांसप्लांट की दिक्कत परिवार को बेसहारा कर देती है, एक साल से कुछ ऐसा ही महसूस कर रहे थे दिनेश गुप्ता और उनका परिवार! फिर उन्हे पता चला मिसमैच किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में, बावजूद इसके उनकी पत्नि को डायब्टिीज़ होने के कारण वह ट्रांसप्लांट कराने में अस्मर्थ थे, छोटे भाई दिनेश की हालत देख बडी बहन कोमल गुप्ता ने उन्हे किडनी डोनेट करने का फैसला किया । एशियन इंसटीटयूट आॅफ मेडिकल साइंसिस के किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर डाॅ रितेश शर्मा ने बताया कुछ साल पहले तक मिसमैच किडनी ट्रांसप्लांट नही होते थे लेकिन पिछले कुछ सालों से मिसमैच किडनी ट्रांसप्लांट अब दिल्ली एनसीआर में
होने लगे है । क्या है ब्लड ग्रप मिसमैच किडनी ट्रांसप्लांट डाॅ रितेश शर्मा ने बताया मिसमैच किडनी ट्रांसप्लांट में खून में मौजूद
प्लाज़मा से एंटीबौडीज कम की जाती हैं आमतौर पर प्लाज़मा एक्सचैज के माध्यम से यह एंटीबौडीज कम की जाती है लेकिन एशियन अस्पताल में इम्यूनोएबजोरबशन की आधुनिक तकनीक के माध्यम से एंटीबौडीज को नैगिटिव किया गया ऐसा करने से किडनी रिजेक्शन का रिस्क नही होता और शरीर अनमैच वाले ब्लड़ की किडनी को स्वीकार कर लेती हैं। एशियन इंसटीटयूट आॅफ मेडिकल साइंसिस के किडनी ट्रांसप्लांट विभाग सर्जन डाॅ विकास अग्रवाल ने बताया कि दिनेश के ट्रांसप्लांट में और भी दिक्कते थी कोमल के टैस्ट करने पर पता चला कि उनकी 2 यूरेटर, 2 खून ले जानी वाली धमनिया थी ऐसा सिर्फ हजारों में से किसी एक ही व्यक्ति में होता है दूरबीन के माध्यम से बिना चीर फाड किए कोमल की किडनी सुरक्षित निकाली गई फिर दोनो खून ले जाने वाली धमनिया जोडी गई और दिनेश के शरीर में दोनो यूरेटर की नलियों को अलग-अलग छेद बनाकर जोडा गया । डाॅ विकास अग्रवाल ने बताया की इस केस में बहुत सी तकनीकी चुनौतियां थी अलग-अलग यूरेटर और खून ले जाने वाली धमनिया होने के कारण सर्जरी का समय बढ़ गया और दिनेश के शरीर में भी अलग तरह से जोडा गया! ट्रांसप्लांट के अगले ही दिन दिनेश ब्लड रिपोर्ट नोरमल होने लगीं और बदली गई किडनी भी ठीक तरह से काम कर रही है । ट्रांसप्लांट के बाद दिनेश और उनका पूरा परिवार बेहद खुश है कि उन्हे नया जीवनदान मिला ।