नहाय खाय के साथ किया गया छठ व्रत का आरंभ कैसे हुई छठ पूजन की शुरुआत ?

फरीदाबाद ( पिंकी जोशी ) :- हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को महाछठ का पर्व मनाया जाता है । इस दिन सूर्यदेव की बहन छट मैया और भगवान सूर्य की पूजा का विधान है । धार्मिक मान्यता के अनुसार छट का व्रत संतान की प्राप्ति कुशलता और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है । चतुर्थी तिथि पर नहाय – खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है।

षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है । इस बार 8 नवंबर को नहाय खाय से छठ व्रत का आरंभ होगा । अगले दिन 9 नवंबर को खरना किया जाएगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन किया जाएगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को छठ पर्व के व्रत का पारणा किया जाएगा।

ऐसे हुई छठ पूजन की शुरुआत :-

ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुई इस कारण वे बहुत दुखी रहने लगे थे । महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती तो हुई लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया। पूरी प्रजा में मातम का माहौल छा गया। उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया .. जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं । जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे , उनका परिचय पूछा।

माता षष्ठी ने कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है । मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूँ और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं । इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया । देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा – आराधना की। मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा।

नोट : सभी जानकारिया सोशल मीडिया द्वारा ली गयी है।

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