शिक्षा में कृत्रिम बौद्धिकता का सदुपयोग और दुरुपयोग : प्रधानाचार्य डॉ. सी.वी. सिंह (रावल इंटरनेशनल स्कूल)

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव) : तकनीक का प्रयोग किसी भी कार्य के गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक होता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। यही बात शिक्षा के संदर्भ में भी सही है। गुरुकुल को मौखिक शिक्षा पद्धति से लेकर चॉक और बोर्ड प्रणाली से होते हुए हम डिजिटल क्लासरूम की स्थिति में आए हैं। हर स्तर पर तकनीक ने शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारा है। इसकी सुलभता बढा़ई है और इसे अधिक वस्तुनिष्ठ बनाया है।

अब हम कृत्रिम बौद्धिकता (ए॰आई॰) के युग में प्रवेश कर रहे हैं। शिक्षा में इसका क्या सदुपयोग और दुरुपयोग हो सकता है, गंभीर मंथन का विषय है। मेरे अनुसार कृत्रिम बौद्धिकता का अगर शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग किया जाए तो क्लासरूम पढ़ाई को व्यक्तिनिष्ठ‌ बनाने में मदद मिलेगी। वर्तमान शिक्षा पद्धति की सबसे बड़ी कमी यही है कि यह सामूहिक है। क्लासरूम में शिक्षक सभी बच्चों को सामूहिक रूप से पढा़ता है। अपने सीमित समय में उसे विषय को पढ़ाना भी होता है और बच्चों की समस्याएं भी हल करनी होती है। अतः वह एक-एक बच्चे की व्यक्तिगत कठिनाइयों का पुरी तरह समाधान नहीं कर पाता। ए॰आई॰ इस समस्या का कारागर निदान हो सकता है। पाठ्यक्रम निर्धारण, प्रश्न पत्र बनाने में, साथ ही साथ परीक्षाओं के कदाचार रहित, एवं निष्पक्ष निस्पादन में भी अत्यंत सहायक सिद्ध होगी।


बच्चों की रोज-रोज की प्रगति पर नजर रखने में ए॰आई॰ का उपयोग उचित होगा। नई शिक्षा नीति 2020 भी व्यक्ति निष्ठ है। इसे छात्रों की जरूरत के अनुसार तैयार किया गया है। विषयों की बहुलता और उसमें से छात्रों को विषय चुनने में स्वतंत्रता, इस शिक्षा नीति की विशेषता है। कृत्रिम बौद्धिकता शिक्षकों की कमी को पुरी कर सकती है। परंतु कृत्रिम बौद्धिकता का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह मौलिकता को नष्ट कर देगा। छात्र पढ़ना, लिखना तथा मनन करना तीनों ही गुणों से धीरे-धीरे दूर हो जाएंगे।‌ उनकी अपनी बौद्धिक क्षमता का हा्स होगा। कृत्रिम बौद्धिकता छात्रों में भटकाव भी ला सकती है। तथा उनकी निजता का उल्लघंन भी कर सकती है। यह शिक्षकों को विस्थापित कर देगी और नौकरियों की समस्या भी उत्पन्न होगी।

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